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GAYA KA VISHNUPAD MANDIR
Saturday, May 8, 2010
मगध प्रमंडल के दुर्गम वन क्षेत्र में शुद्ध पेयजल मयस्सर नहीं
ग्रीष्म ऋतु अपने साथ ग्रामीणों के लिए परेशानी की सौगात लेकर आती है। शहरी क्षेत्र की तस्वीर तो जागरूक लोग व पदाधिकारी देख रहे है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र की हालत सिर्फ क्षेत्रवासी ही बता सकते है। मगध प्रमंडल के दुर्गम वन क्षेत्र में अवस्थित ग्रामों की स्थिति तो अत्यंत नारकीय है। गांवों में ग्रामीणों को शुद्ध पेयजल मयस्सर नहीं है। आज भी लोग नाले का गंदा पानी अथवा चुआं बनाकर प्यास बुझा रहे है। मगध प्रमंडल के प्राय: सभी जिले नक्सली गतिविधियों के चलते हमेशा सुर्खियों में रहते हैं। सूबे में राजग सरकार के आने के बाद ग्रामीण इलाकों में नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने की कवायद शुरू हुई। ग्रामीण इलाकों के लिए पेयजल आपूर्ति योजना शुरू की गयी। अकेले गया जिले में पिछले चार साल के अंदर 25 करोड़ रुपये से ऊपर की राशि ग्रामीण जलापूर्ति योजना पर व्यय हो चुकी है। कई करोड़ की योजनाएं जारी हैं। लेकिन गर्मी के आते ही जल स्तर के नीचे जाने से ग्रामीण परेशान हैं। पहाड़ी इलाकों के ग्रामीणों को पेयजल के लिए लम्बी दूरी तय करनी पड़ रही है। जहानाबाद के बराबर पहाड़ी के आसपास ग्रामीण मवेशियों के साथ पानी के लिए जहां-तहां भटक रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार मगध प्रमंडल के पांच जिलों के ग्रामीण अंचलों के लोगों की प्यास बुझाने के लिए लगभग सात हजार चापाकल गाड़े गए है। लेकिन आधे से अधिक चापाकल खराब है। हालांकि विभागीय पदाधिकारियों के उपलब्ध कराये गए आंकड़े इससे मेल नहीं खाते। अधिकारियों ने बताया कि करीब छह हजार चापाकल दुरुस्त है। लेकिन वास्तविक स्थिति कुछ और है। दुर्गम क्षेत्र के हैण्डपम्पों की स्थिति विभाग की जानकारी में ही नहीं है। पेयजल उपलब्ध कराने के लिए जिम्मेदार विभाग पीएचईडी के अधिकारी संसाधनों एवं कर्मचारियों की कमी का रोना रोते है। जबकि हैंडपंपों की बोरिंग के समय कर्मी डीजल-पाइप के जुगाड़ तथा ठेकेदार से कमीशन लेने में मशरूफ रहते हैं जिसके चलते मानक से कम ही बोरिंग हो पाती है। लिहाजा बरसात या ठंड के समय जितनी गहराई में हैंडपंप से पानी मिलता है। गर्मी के दस्तक देते ही सूख जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग कई किमी की दूरी तय कर पानी का किसी तरह जुगाड़ कर रहे है। गया के कार्यपालक अभियंता अजय कुमार सिंहा भी मानते हैं कि ग्रामीण इलाकों में 7 से 10 फिट नीचे भू-गर्भीय जल स्तर चला गया है। जहां पीने के पानी के लिए ग्रामीण परेशान है। ग्रामीण पेयजल आपूर्ति योजना के अर्न्तगत वित्तीय वर्ष 2009-10 में लक्ष्य था 7110 का पर लगे 2285 चापाकल। वहीं शेष का निर्माण प्रगति पर है। 26 ग्रामीण पाइप जलापूर्ति योजनाओं में 6 का ही निर्माण सिर्फ पूरा हो सका है। बांकेबाजार ग्रामीण जलापूर्ति योजना में 71.232 लाख, गुरूआ ग्रामीण जलापूर्ति में 95.41 लाख, बेलागंज में ग्रामीण जलापूर्ति पर 82.61 लाख, वजीरगंज के रामपुर-रूपसपुर ग्रामीण जलापूर्ति में 25.8435 लाख, एवं शेखा विगहा जलापूर्ति में 7.688 लाख, शेरघाटी अर्द्धशहरी पाइप जलापूर्ति योजना में 276.31 लाख, शेरघाटी/टिकारी अस्पतालों में जलापूर्ति पर 17.98 लाख, वहीं प्लोराईट प्रभावित पांच गांव में नवीनतम ट्रीटमेन्ट यूनिट एवं सोलर ऊर्जा सिस्टम आधारित मिनी पाइप योजना में 220.80 लाख खर्च किये गये जिसका उद्घाटन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बोधगया प्रवास यात्रा के अवधि में किया। वहीं मुख्यमंत्री ने जिले के ग्रामीण क्षेत्र के 21 जलापूर्ति योजनाओं का शिलान्यास किया जिसमें बोधगया के फतेहपुर ग्रामीण योजना के लिए 163.12 लाख, अतरी के मकसुदपुर जलापूर्ति को 55.409 लाख, इमामगंज के रानीगंज जलापूर्ति को 144.37 लाख, डुमरिया ग्रामीण के लिए 127.65 लाख, टिकारी के मेन जलापूर्ति को 81.18 लाख, बेलागंज के बिथोशरीफ की योजना में 95.65 लाख, टिकारी के खैरा जलापूर्ति में 95.68 लाख, वजीरगंज, खिजरसराय, टिकारी, परैया, कोंच, गुरूआ के ग्रामीण जलापूर्ति एवं सोलर पम्प एवं वैकल्पिक ऊर्चा स्त्रोत पर 80 -80 लाख का हुआ है। जबकि राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम अन्तर्गत बन्द चापाकलों की विशेष मरम्मत के लिए 305.070 लाख रुपये खर्च की योजना बनी है। फिर भी ग्रामीण क्षेत्र का दृश्य देखा जाए तो साफ पता चल जाता है कि कितनी योजना धरातल पर उतरी और कितनी कागज पर ही लोगों की प्यास बुझ रही है। कुछ ताजा दृश्य देखिये :- डुमरिया में कुएं की सफाई के लिए कोई योजना आज तक बनी ही नहीं। थे तो क्षेत्र में हजारों, लेकिन पूजा-अर्चना से लेकर पीने का पानी तक इससे नहीं मिल रहा। टनकुप्पा में चार साल से लाखों की लागत से बन रही पाइप लाइन पेयजल आपूर्ति योजना अभी भी अधूरी है। पानी को लोग भटक रहे है। बाराचट्टी के केन्दुआ गांव में भोक्त परिवार कुएं का गंदा पानी पीने को मजबूर है। एक भी चापाकल नहीं लगा है। अतरी के 300 आबादी वाला टीकरा गांव का सहारा पैमार नदी बनी है। चुंआ खोदकर महिलाएं पानी जमा करती है। गांव में 5 चापाकल लगे लेकिन शोभा के लिए। कोच के अदई, सिमरा, उतरेन में 150-200 फिट पर भी पानी नहीं मिल रहा है। पानी के अभाव में पशु-पक्षी भी तड़प रहे है। फिलहाल लाखों रुपये खर्च कर तत्कालीन प्रयास किये जा रहे हैं। सरकार ने भी पेयजल आपूर्ति योजना को मंजूरी दे दी है। अगर धरातल पर पूरी योजना आयी तो अगले पचास सालों तक पानी के लिए कोई परेशानी नहीं होगी। नवादा में 1967 के भयंकर अकाल के वर्षो में जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल के लिये लोक स्वास्थ्य प्रमंडल के 45 ग्रामीण पाइप जलापूर्ति योजनाओं की स्थापना की गयी थी। इनमें से शत-प्रतिशत योजनाएं या तो बिजली आपूर्ति के अभाव में बोरिंग फेल होने या फिर मोटरों के जले रहने से ठप हैं। इन केन्द्रों पर कार्यरत कर्मी घर बैठ वेतन पा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में वर्ष 9-10 में 74.5 गांवों में नलकूप निर्माण की योजना में 453 पर कार्य शुरू हुआ। लेकिन एक भी पूर्ण नहीं हो सका है। प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में 1116 चापाकल लगाने थे पर लगे 290। भूजल गिरावट 24.8 चापाकल में 171 चापाकल लगाये गये हैं। जबकि पुराने बन्द पड़े 47 ग्रामीण पाइप जलापूर्ति योजना पर 243 चापाकलों में से 122 लगाये गये हैं। विभागीय आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में शुरू की शुद्ध पेयजल पूर्ति योजनाओं का कार्य अधूरा है। तथा लोगों के लिये शुद्ध पेयजल अब भी दिवास्वप्न है। कार्यपालक अभियंता परमानन्द शर्मा कहते हैं अधिकांश योजनाओं पर कार्य युद्ध स्तर पर कराया जा रहा है। जल्द ही लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध हो जायेगा। औरंगाबाद में अधिकांश ग्रामीण जलापूर्ति केन्द्र बंद हैं। विभागीय अधिकारी ने बताया अम्बा, सुंदरगंज, मदनपुर, डिहरा में जलमिनार व पाइप लाइन पूरी न होने से पेयजल आपूर्ति नहीं हो रही है। देव, झिकटीया, चंद्रगढ़ पेयजल आपूर्ति केन्द्र चालू है। परंतु बिजली के न रहने से ये सभी केन्द्र बंद रहते हैं। ओबरा, गोह, हसपुरा एवं दाउदनगर में ग्रामीण जलापूर्ति की स्थिति दयनीय है। ग्रामीण जलापूर्ति केन्द्र की स्थिति दयनीय होने से ग्रामीणों को शुद्ध पेयजल नहीं मिलता है। सहायक अभियंता मुकेश कुमार बताते हैं कि जहां केन्द्र चालू है वहां पेयजल आपूर्ति की जाती है। जहानाबाद में एनडीए सरकार बनने के बाद इनमें से कुछ जलापूर्ति केन्द्रों को चालू कराने के लिये ग्रामीण जलापूर्ति योजना का पुनर्गठन किया। कई योजनाओं पर कार्य शुरू की गयी। लेकिन सवा चार वर्ष में भी योजना धरातल पर नहीं उतर सकी। जैसे-जैसे गर्मी की तपिश बढ़ती जा रही है। गांवों में पेयजल संकट गहराता जा रहा है।
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