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GAYA KA VISHNUPAD MANDIR

GAYA KA VISHNUPAD MANDIR
GOD VISHNU CHARAN

Friday, July 20, 2012

षादी के लिए बिहार में होता है लड़कों का अपहरण
होनहार नवयुवकों की होती है जबरन षादी
पटना से मंगलानंद मिश्र

आपने अब तक जबरन पैसे वसूलने या कोई पुरानी रंजिश तथा हत्या करने के लिए लोगों को अगवा करने की बात सुनी होगी परंतु ऐसा शायद ही सुना होगा कि शादी करने के लिए किसी का अपहरण किया गया। बिहार में ऐसा बहुत समय पहले से होता आ रहा है। खास बात यह है कि ऐसे घटनायें शादी-ब्याह के मौसम में और बढ़ जाती हैं। पुलिस मुख्यालय से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक इस वर्ष अब तक 359 अविवाहित युवकों की अपहरण शादी के लिए की जा चुकी है। आंकडों के अनुसार ऐसी घटनाएं राज्य के मुंगेर, गया, नवादा, नालंदा, जहानाबाद, नवगछिया, पटना जैसे क्षेत्रों में अधिक घटती हैं। आंकड़े बताते हैं कि इस वर्ष जनवरी महीने में जहां 87 युवकों को शादी के लिए अगवा किया गया वहीं फरवरी में 126 ऐसे युवकों का अपहरण किया गया था। मार्च में तो ऐसे युवकों की संख्या बढ़कर 146 तक जा पहुंची। सूत्रों का कहना है कि पढ़े-लिखे तथा खाते-पीते परिवार से संबंधित अविवाहित युवकों का लड़की वाले अपहरण कर लेते हैं और फिर इनका जबरन विवाह करा दिया जाता है। बताया जाता है कि जब सब कुछ निपट जाता है तब लड़के के परिजनों को आशीष देने के लिए खबर की जाती है। ऐसे में कई शादियां सफल भी हो जाती हैं तो कई बुरी तरह नाकाम हो जाती हैं। पुलिस विभाग के अधिकारियों का भी मानना है कि ऐसे में लड़के के परिजन तो अपहरण का मामला थाना में दर्ज करवाते हैं परंतु जब जांच होती है तो पता चलता है कि यह अपहरण विवाह के लिए किया गया। ऐसे में पुलिस के पास भी बहुत कुछ करने के लिए नहीं रह जाता है। सामाजिक कार्यकत्र्ता पं. आनंद मोहन मिश्र कहते हैं कि ऐसे विवाह से अभिभावक तो अपनी लड़कियों का विवाह कर मुक्त हो जाते हैं परंतु इस बेमेल विवाह का नकारात्मक प्रभाव पति-पत्नी के जीवन भर देखने को मिलता है। इस बेमेल विवाह के कारण उन परिवारों का संतुलित विकास भी नहीं हो पाता क्योंकि जीवन भर उस लड़की को ताने सुनना पड़ते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं का मुख्य कारण दहेज तथा जाति-बिरादरी में अच्छे और कमाऊ लड़कों की कमी है।

औरंगाबाद के गांवों में आज भी चल रही माओवादियों की हुकूमत
देव और इसके आसपास के इलाकों में षाम में नहीं चलते वाहन
औरंगाबाद से आलोक कुमार

औरंगाबाद। यहां के कई गांव लालगढ के रास्ते पर है। गांवों में माओवादियों की हुकूमत सी स्थिति है। वे जन अदालत लगाते है। कई इलाकों में शाम के बाद वाहनों का परिचालन रोक दिया गया है। टार्च तक जलाने पर पाबंदी है। पुलिस सब कुछ जानती है। उसने ऐसे गांवों को अति नक्सल प्रभावित गांव घोषित कर रखा है। सबसे बुरा हाल जिले के जीटी रोड के दक्षिणी इलाके के गांवों का है। इन गांवों के लोग आज भी 18वीं शताब्दी में जीने को विवश हैं। गांवों में न तो सड़क है और न ही नक्सलियों द्वारा ध्वस्त किए गये पुल की मरम्मत हो पाई है। बिजली, अस्पताल के हालात बदतर हैं। ग्रामीण नक्सलियों के भय से मोबाइल नहीं रखते। गांवों में शादी विवाह के मौके पर सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं होते हैं। अधिकांश गांव दलित व महादलित बाहुल्य है। माओवादियों के भय से शायद ही कोई अधिकारी इन इलाकों में जाता है। इलाके की भौगोलिक स्थिति माओवादियों की बड़ी ताकत की खास वजह है। पहाड़ी व जंगली इलाका। पुलिस परेशान है। नक्सलियों के फरमान के विरोध की हिम्मत ग्रामीणों में नहीं है। नक्सली जब चाहते है सड़क, विद्यालय, पुल व मोबाइल टावर ध्वस्त कर देते है। पिछले वर्षों में सिर्फ ढिबरा में 22 व सलैया में 36 ऐसे मामले दर्ज हुए। पुलिस इन क्षेत्रों में अपने अस्तित्व खातिर माओवादियों से लगातार भिड़ रही है। मदनपुर एवं देव थाना में टंगी सूची में मदनपुर के जमुआं, ढकपहरी, मुरगडा, चरैया, तिलैया, कनौदी, सहजपुर, नावाडीह, अम्बाबार, वकीलगंज, लालटेनगंज, दलेल बिगहा, छेछानी, छाली दोहर, कोईलवां, चिलमी, पितम्बरा, बादम, मनवा दोहर, नवा बांध, पिछुलिया, लंगुराही, पचरुखिया, खुटीडीह जैसे गांवों को अति नक्सल प्रभावित बताया गया है। ढिबरा थाने के सभी गांव नक्सल प्रभावित हैं। दुलारे, विशुनपुर, जगदीशपुर, छुछिया, गोल्हा, झगरडीह, घुरनडीह, जुरा, मंझौली, केवलहा, तेंदुई, तेतरडीह, आजाद बिगहा, पक्का बांध, पथरा, करमा, बहादुरडीह, लिलची, झरना, महुलान, दुर्गी, बारा, भलुआही, बंधन बिगहा, बरवासोई गांव में नक्सलियों की हलचल हमेशा रहती है। इसी तरह देव थाना के चैता बिगहा, दोसमा, विश्रामपुर, केताकी, पड़रिया, चंदेल बिगहा, भटकुर नइभुम, विशुनबांध, वकीलगंज, नकटी, गंजोई, ढाबीपर, बरहा, नारायणपुर, बाबू बिगहा, भंडारी गांव नक्सल प्रभावित हैं। सलैया, कासमा, अम्बा, कुटुम्बा, टंडवा, नवीनगर, गोह, उपहारा व देवकुंड थाना के भी कई गांवों में नक्सलियों का आना-जाना लगा रहता है।



सुषासन सरकार में मां को बेचना पड़ा जिगर का टुकड़ा
ऽ गरीबों का पुर्साहाल लेने में नाकाम है सुषासन सरकार
ऽ पति को मारा लकवा, मासूम को 62 रु में बेचा
पटना से धर्मेन्द्र कुमार की रिपोर्ट

कोई भी मां अपने जिगर के टुकड़े को बेच नहीं सकती वह भी 62 रू. में लेकिन बिहार के सुषासन की सरकार में हो रहा है। यकीनन ये कानूनी अपराध है, लेकिन उस हालात का अंदाजा लगाइए जब एक मां परिवार का बोझ कम करने के लिए अपने जिगर के टुकड़े से दूर होने के लिए तैयार हुई होगी। बिहार के फार्बिसगंज स्टेशन पर रहने वाली शन्नो के तीन बच्चे थे। पति को लकवा मारने के बाद रोजी-रोटी की सारी जिम्मेदारी उसी पर आ पड़ी। परिवार चलाने में आ रही दिक्कत को देखते हुए शन्नो ने अपना एक बच्चा नेपाली नागरिक को दे दिया। बिहार में एक महिला को परिवार का खर्चा चला पाने में नाकाम होने पर अपना बच्चा बेचना पड़ा। एक नन्हे से मासूम की कीमत लगाई गई सिर्फ 62 रुपए। लाचारी और बेबसी इंसान को कहां तक पहुंचा सकती है इसका अंदाजा इस मां से लगाया जा सकता है। इस मां ने अपने परिवार का पेट नहीं भर सकने की मजबूरी में अपने मासूम बच्चे को 62 रुपए में बेच दिया। हालांकि इस परिवार का दावा है कि उसने अपना बच्चा बेचा नहीं बल्कि घर का खर्च नहीं चला पाने की वजह से ऐसे ही दे दिया है। इस मामले के सामने आने के बाद जिले के अफसरों में खलबली मची हुई है। पुलिस जांच की बात तो कर रही है, लेकिन इस लाचारी के साथ कि वो ज्यादा कुछ कर नहीं पाएगी। सबसे बड़ी बात ये कि ये सब कुछ हुआ है नीतीश कुमार के सुशासन की सरकार में दूसरी बात सत्ता में पहुंचे नीतीश ने कभी वायदा किया था गरीबों को भरपूर सहायता देने का। लेकिन विकास के दावों से अलग राज्य की ये हकीकत शर्मसार करने वाली है।

सुषासन के मुखिया ने माना
भाजपा-जदयू में किसी तरह का मतभेद नहीं
पटना से धर्मेन्द्र कुमार

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि भाजपा और जदयू में किसी तरह का मतभेद नहीं है। सबको अपनी जिम्मेवारी का एहसास है। यही वजह है कि हम जो कहते हैं, वही बात उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार कहते हैं और उनकी बात को हम कहते हैं। उपराष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवारी के मसले पर एनडीए एकजुट है। मुख्यमंत्री जनता दरबार के बाद संवाददाताओं से बात कर रहे थे। उनके अनुसार एनडीए की बैठक में उपराष्ट्रपति पद के लिए जो नाम (जसवंत सिंह) तय हुआ है, उस पर सबकी सहमति है। राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ (पार्टी लाइन) से उपराष्ट्रपति चुनाव का कोई मतलब नहीं है। जसवंत सिंह की जीत के संबंध में पूछे जाने पर मुख्यमंत्री ने कहा-श्युद्ध के मैदान में हार-जीत की चिंता नहीं होती है । बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के मसले पर भाजपा द्वारा अलग रैली किए जाने के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार की हकमारी के खिलाफ सभी पार्टियां आंदोलन कर रही हैं। ऐसा करना भी चाहिए। जदयू-भाजपा के मजबूत संबंधों क हवाला देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि आपस में कुछ बयानबाजी हो सकती है, हो जाती है मगर यह बहुत दिन तक खींचने वाला नहीं है। हमने अपने प्रवक्ताओं की बैठक कर उनसे कहा है कि व्यक्तिगत आक्षेप वाले बयान से परहेज रखा जाए। भाजपा और जदयू में स्पष्ट समझ है कि वे एक-दूसरे के लोगों (नेताओं) को अपनी पार्टी में शामिल नहीं कराएंगे। इसी दौरान संजय झा से जुड़ा सवाल भी उठा। मुख्यमंत्री ने कहा-संजय झा की बात काफी पहले से चल रही थी और भाजपा से सहमति मिलने के बाद ही वे जदयू में शामिल हुए हैं।

सड़क नहीं बनने पर कोर्ट ने किया सरकार को तलब
फुलवारीषरीफ से हीरा प्रसाद

पटना हाईकोर्ट ने फुलवारीशरीफ में स्वीकृत स्थान पर सड़क नहीं बनाए जाने के मसले पर राज्य सरकार से एक महीने में जवाब मांगा है। न्यायाधीश टी.मीना कुमारी एवं न्यायाधीश चक्रधारी शरण सिंह की खंडपीठ सोमवार को निवारण सेवा संस्थान की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि विधायक कोष के 2 करोड़ रुपए का गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया। इसका मुख्य कारण पूर्व विधायक एवं वर्तमान विधायक के बीच खींचतान रहा। परिणामस्वरूप जहां सड़क बननी चाहिए थी, वहां नहीं बन पाई। राज्य सरकार का जवाब आने के बाद अगली सुनवाई होगी।
















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