7 Days Hindi weekly

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GAYA KA VISHNUPAD MANDIR

GAYA KA VISHNUPAD MANDIR
GOD VISHNU CHARAN

Friday, July 20, 2012


हाय रे भगवान इंद्र तुम्हे दया क्यों नहीं आती !
जहानाबाद में अकाल से तबाही शुरू
इंद्र को मनाने के लिए लड़कियों ने खेतों में नंगा हो चलाया हल
पटना से मंगलानंद/जहानाबाद से संजय कुमार

भगवान इंद्र को मनाने के लिए किसानों के पास जितना जतन था सब करके थक चुके हैं। भगवान इंद्र को मनाने के लिए यहां तक हुआ कि नाबालिग लड़कियों ने खेतों में नंगे होकर हल तक चलाया परंतु भगवान इंद्र हैं कि उन्हें दया आती नहीं। रात के 12 बजे जब सारा गांव सो रहा था तो गया-जहानाबाद जिले के कई गांवों में गांव की लड़कियां खेतों में नंगी हो हल चला रही थी। बिहार की पुरानी परंपराओं में यह भी एक बड़ी परंपरा रही है। पुरानी पंरपराओं के अनुसार गांवों में हर प्रकार के अनुष्ठान हुए परंतु नतीजा कुछ भी नहीं निकला। भगवान इंद्र ने भी सारी परीक्षाऐं ली परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। कम बारिष ने गया-जहानाबाद के किसानों के चेहरे पर उदासी ला दी है। किसानों को रात में न चैन है न दिन में। हर समय किसान बादलों की ओर टकटकी लगाए रूंआसे हो भगवान इंद्र को कोस रहे हैं। कम बारिष के कारण किसानों को इस बार भीषण तबाही झेलनी पड़ रही है। पानी का भूमिगत जलस्तर काफी नीचे रहने के कारण डीजल सेट भी पानी खींचने में नाकामयाब साबित हो रहे है। धान के बिचड़े बचाते बचाते किसान भी मानों झुलस से गए हैं। किसान डीजल चालित पंप सेटों का भी सहारा ले रहे है परंतु आसमान से पानी नहीं होने के कारण अब तक धान की रोपनी शुरू भी नहीं हो सकी है। जहानाबाद जिले के कृषि विभाग के अधिकारियों का भी मानना है िकइस साल जिले में भीषण अकाल की संभावना है। सावन माह भी खत्म होने को आ गया है ऐसे हालात में धान की रोपनी नहीं होने से अब धान की उपज पर पूरी तरह ग्रहण लग सा गया है। जेठुआ और भदई फसलों की रोपाई का काम पानी के बिना पूरा नहीं हो सका है। मानसून की मार ने जहानाबाद में सबको रूला दिया है। पूरे इलाके में बेरोजगारी की मार लोगों को झेलने पड़ रहे हैं। बेरोजगार युवक और खेतीहर मजदूर दूसरे राज्यों के पलायन में लग गए हैं। एक गैर सरकारी संस्था द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार जहानाबाद और अरवल जिले में मात्र एक फीसदी ही धान की रोपायी हो सकी है। बाकी केे 99 प्रतिषत भूभाग अभी परती पड़े हैं। आद्र्रा नक्षत्र में लगाए गए बिचड़े तो पूरी तरह तैयार होकर सूख चुके है। जहानाबाद जिले के 95 प्रतिषत आहर, तालाब आदि जलाषयों में पानी देखने को भी नहीं मिल रहा है। भूर्गभीय जल श्रोतों के इस साल काफी नीचे चले जाने के आसार है। बिहार की मौजूदा हालत यह हो गयी है कि कही बाढ़ से लोग मर रहे हैं तो कही चुल्लु भर पानी नहीं है लोगों के लिए।

सुषासन का मधुषाला
स्कूलों और मंदिरों के बगल में चलते हैं मदिरालय
पटना से मंगलानंद/धर्मेन्द्र कुमार

ये अलग बात है साकी कि मुझे होष नहीं है होष इतना है कि सुषासन मदहोष नहीं है। हमने इतना ख्याल रखा है स्कूल और मंदिरों के बगल में मधुषाला का लाइसेंस आम कर दिया है। इसलिए कि ये बच्चे ही और धर्मगुरू ही देष की रीढ़ हैं। हम लाए थे तुफान से कष्ती निकाल के इस देष को रखना मेरे बच्चों संभाल के। बिहार सरकार का नषा इतना बढ़ गया है कि वो सर चढ़ कर बोल रहा है। इतना होष भी नहीं है कहां स्कूल है और कहां मंदिर है। आप को हर कदम कोई न कोई नाली में गिरा हुआ मिल जाय तो समझ लिजीए आप बिहार में हैं। जहरीली षराब से गुजरात में मौत की लोमहर्षक घटना को हमने देखा और सुना। देष के अन्य जगहो में कुछ इसी तरह की घटनाएं दोहरायी जा रही है । इसके बावजूद मौत का सामान बेचने की नीति को बढावा देने की प्रवृति रूक नहीं रही है। विकास पुरूष नीतीष कुमार बिहार के निर्माण के बजाय पूरे बिहार में षराबखोरी को बढावा देने बाली एैसी नीति (आबकारी नीति-.2007) बनायी है जिससे कृषि प्रधान बिहार में कृषि क्रांति , ष्वेत क्रांति के बजाय मदिरा कं्राति को बढावा मिल रही है। लोग हैरत में है कि कृषि एवं पषुपालन को बढावा देने के वायदे के साथ बनी नीतीष सरकार पूरे बिहार के गांव-गांव में ष्षराबखोरी को बढावा देने बाली नीति पर क्यों कदम आगे बढा रही है ? आखिर सरकार उसी अंतिम व्यक्ति का आर्थिक नुकसान नहीं कर रही है जो किसी तरह नरेगा से सौ-पचास रूपये कमाकर घर लौटता है, लेकिन घर पहंुचने के पहले वह देषी ष्षराब से अपने गले को तर कर लेता है । बीबी -बच्चों के लिए रोजमर्रे की चीजों के प्रबंध करने बजाय वह खाली हाथ घर मदहोष होकर लौटता है। गांधी यह मानते थे जो षराब पीते है उनके परिवार सदा अभाव में जीते है। षराबखोरी से उपजी आर्थिक बदहाली ने ही गांधी को ष्षराबबन्दी हेतु प्रेरित किया था। बुद्व, महावीर की जन्मस्थली और गांधी, बिनोबा एवं जयप्रकाष नारायण की कर्मस्थली बिहार में हिंसा को और हवा देने की घटना हादसे की तरह ही है। हिंसा के लिए बदनाम रही बिहार की छवि बदलने के बजाय प्रदेष सरकार ने हिंसा एवं अपराध को बढावा देने बाली एैसी आबकारी नीति बनाई है जिसके तहत सभी प्रकार की खुदरा षराब दुकानों की बंदोबस्ती अनिवार्य रूप से लाटरी द्वारा की जा रही है। इससे आम व्यवसाइयों के साथ साथ बेरोजगारों को भी इस व्यवसाय से जुडने का मौका मिला है। इस दिषा में सरकारी दावों की माने तो षराब व्यापार के एकाधिकार की समाप्ति होने के साथ ही खुदरा षराब के मूल्य पर नियंत्रण होगी। सरकार ने पंचायतों के लिए लक्ष्य निर्धारित किया है कि पहले 5500 रूपये के बजाय 8500 रूपये तक के षराब बेचे। लोगों को आकषर््िात करने के लिए सेल लगाये जा रहे है।वीडियो का इंस्तेमाल किया जा रहा है । सरकार की इस नीति की आढ में गांव -गांव में अवैध षराब निर्माण एवं बेचने का अभियान सा चल पडा है। हिंसा और अपराध के लिए बदनाम बिहार में विकास और सुषासन के नारों के साथ बनी नीतीष सरकार ने पिछले तीन वर्षों में अपराधियों और बाहुबलियों को सीखचों के अंदर भेजकर यह साबित करने का प्रयास किया कि सूबे में सुसासन स्थापित करने के प्रति वे प्रतिबद्व हैं मगर रेवेन्यू और रोजगार सृजन के नाम पर नीतीष सरकार के इस कवायद ने विरोधाभास की स्थिति पैदा कर दी है। प्रदेष के गांवो में बेतहाषा बढ रही षराब के दुकानों ने षराब पीने बालों की नयी फौज तैयार हो रही है । मद्यनिपेध के विरोध में सक्रिय संगठनों का कहना है कि इससे सर्वाधिक महिला एवं बच्चो के उपर चैतरफा दुप्प्रभाव पड रहा है । बिहार के कई इलाको में पूर्व से चल रहे वैध-अवैध षराब निर्माण के दौरान यह देखा गया है कि ष्षराबखोरी के प्रचलन से सबसे अधिक महिलाओं को जूझना पडता है। कई जगहों पर नये दुकान खोले जाने के खिलाफ नागरिकों ने विरोध प्रदर्षित भी किया है। पिछले कुछ वर्षों से चल रहे अवैध कच्ची षराब निर्माण का कारोबार आज स्थानीय लोगों के लिए बडी समस्या है। कई बार पुलिसिया कार्रबाई भी हुई किन्तु ष्षराब माफिया के सषक्त नेटवर्क ने पुलिस की कार्रवाई को प्रभावहीन कर दिया। ष्षराबनिर्माण के अवैध निर्माण से गांवों के लोग त्रस्त रहे है। पिछले कुछ वर्पो में इन गांवों में षराब के अडडों पर हत्या हो चुकी है ।पुलिस के अनुसार हत्या की वजह पियक्कडों की आपसी कहासुनी तथा षराब निर्माण में लगे बाहुबलियों के बीच वर्चस्व की लडाई रही है। समय-समय पर ग्रामीणों का प्रतिरोध भी होता रहा ह,ै लेकिन अवैध षराबनिर्माण के कारोबार ने पूरे इलाके का अपनी चपेट मे ले लिया। ष्षराब के अड्डों या ष्षराब के दुकानों से होकर महिलाओं या स्कूल की छात्राओं का गुजरना दूभर हो गया है। इन गांवों की महिलाएं आज भी अपने खेतो, खलिहानों, टोलो में खुद को असुरक्षित मानती है। बीते कुछ वर्पों में पूर्व से चल रहे गांवों के करीब पचहत्तर प्रतिषत घरों में पियक्कडो की फौज तैयार हो गयी है जिनके उपर षाम ढलते ही नषे का षुरूर चढ जाता है। रात के अंधेरों में महिलाओं के चीखने- चिल्लाने की आवाजें सुनाई देना आम दिनचर्या का हिस्सा हो गया है। जाहिर है षराबियों का कहर सबसे पहले अपनी पत्नियों के उपर ही टूटता है। ष्षराब के नषे में पति, पत्नी को पीटता है । उसे होष ही नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है। कई बार नषे की हालत में ही दुर्घटना हो जाती है और परिवार बिखर जाता है। इससे मासूम बच्चों के मानसिक दषा का अनुमान भी लगाया जा सकता है।सबसे दुखद बात यह है कि षराब निर्माण में नन्हे गरीब बच्चों को भी लगाया जाता है। कच्ची ष्षराब के अडृडों का जायजा लेने पर अजीबोगरीब दृष्य मिलता है । बजबजाती गंदगी, गंदगी के बीच खेलते बच्चे, भभकती भट्ठियां, षराब निर्माण में लगी महिला एव बच्चे। पास ही पियक्कडो का हुजूम जो बात -बात पर बजबजाती गंदगी से भी अधिक भद्दी गालियां बक रहा होता है। जाहिर है महिला हिंसा के लिए बदनाम बिहार में वर्तमान आबकारी नीति से हिंसा को बढावा ही मिलेगा। है। एन एफ एच एस- 3 के आंकडों के अनुसार राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों मेें 59 प्रतिषत पुरूष अपनी पत्नी को पीटते है। एक ओर नीतीष सरकार महिलाओं के सषक्तिकरण के पचास प्रतिषत आरक्षण भी देती है तो दूसरी ओर इन महिलाओं के मानमर्दन के लिए नषाखोरी को भी बढावा दे रही है। प्रदेष में युवाओं की चालीस प्रतिषत आबादी हैं। आंकडों के हिसाब से युवाओं कीे 4 करोड संख्या है। प्रदेष सरकार के विचाराधीन युवानीति के अभाव मे ंप्रदेष के सर्वांगिण विकास में इनकी भुमिका सुनिष्चित नहीं हो पा रही है एैसे में इन युवाओं में नषे की लत से कम-से-कम समाज का निर्माण तो नहीं ही किया जा सकता। दरअसल तमाम राज्य सरकारें आबकारी नीति घोषित करती है। ष्षराब राज्यों की कमाई का प्रमुख जरिया होती है। हर साल राज्य आबकारी लक्ष्य बढाते हैं। बाकायदा घोषित आबकारी नीति में ं पियक्कडों और ठेकेदारों का ख्याल रखा जाता है। गत वर्ष सरकारी राजस्व में वृद्वि हुई है। सरकारी आंकडों के अनुसार यह वृद्वि पिछले वित्तीय वर्प के अपेक्षाकृत 31.37 प्रतिषत अधिक है यानि बिहार सरकार ने इस वित्तीय वर्प में षराब निर्माण से 417.95 करोड की राजस्व प्राप्त की है। क्या महज राजस्व के लिए मानव संसाधान की इतनी बडे हिस्से के भविष्य के साथ खिलवाड उचित है ?


‘‘ लुकिंग लंदन गोईंग टोक्यो ’’
गया से नारायण मिश्रा
‘‘ जरा हौले हौले चलांे मेरे साजना हम भी पीछे हैं तुम्हारे ’’ आड़ी तिरछी रफ्तारों के मालिक इनदिनों टिकारी-गया के टेम्पो आपरेटर हो गए हैं। आपको बैठते ही ऐसा महसूस होगा ‘‘ लुकिंग लंदन गोईंग टोक्यो’’ आपको महसूस होने लगेगा कि शायद आप अपनी मंजिल के बगैर कही और जा रहे हैं। शायद यह आखिरी मंजिल भी हो सकती है। अधिकांष टेम्पो चालकों के पास ड्राईविंग लाइसेंस हैं ही नहीं। जिनकी उम्र 18 साल से नीचे हैं। सुबह से लेकर शाम तक छोटे कस्बों से लेकर शहर तक तेज रफ्तार में गाड़ी चलती है। गाड़ी रूकी पैसेंजर सवार हुआ या नहीं ट्रेन की तरह कभी गाड़ी 70 कभी 80 कभी बाऐं कभी दाऐ बैठने वालों का कलेजा मुहं को आ जाता है। जिला प्रषासन को टेम्पो वालों से कोई मतलब नहीं है। ट्राफिक पुलिस वालों का पैसा चाहिए किसकी जान जाएगी और किसकी बचेगी ये डीटीओ साहब तय करेंगे।


आज भी अधूरा है माउंटेन मैन का सपना
विकास को मोहताज है गेहलौर घाटी
गया से नारायण मिश्रा

बिहार सरकार चाहे लाख वादा करे फिर भी गेहलौर घाटी के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों की हालत में सुधार की गंुजाईष नहीं दीखती। कुछ यादें ऐसी होती हैं जो अतीत के गहवारे में ले जाती हैं। शायद गेहलौर घाटी अनाथ हो गया हो। गेहलौर घाटी की हालत बिलकुल वैसी ही हो गयी है जैसे किसी बच्चे के सर से बाप का साया उठ जाना। गांव बिलकुल वीरान हो गया है। ये लगता ही नहीं है कि कभी यहां माउंटेन मैन रहा करते थे। पत्रकारों के अपने दरवाजे पर पहंुचते ही बाबा के चहेरे पर खुषी झलकने लगती थी। वे उम्मीद करने लगते थे उनकी मेहनत पत्रकारों के कलम के द्वारा रंग लाएगी। बिलकुल उसी तरह सम्मान करते थे जैसे सबरी रामजी के लिए बैर चख-चख कर रखती थी। अपनी कुटिया में पत्रकारों को बैठाना और जो उनके वष में हो उसे खिलाकर ही विदा करना लेकिन शायद ये सारी बातें धुंधली हो गयी हैं। दषरथ बाबा भविष्य के गर्भ में समा चुके हैं, गेहलौर घाटी का कोई पुर्सानेहाल नहीं है। शहीदों के मजार पर हर बरस लगेंगे मेले वतन पर मरने वालों की बाकी यहीं निषां होगी ’’ आज बाबा की पहली पुण्यतिथि मनायी गयी, सरकारी अधिकारियों का भाषण और आष्वासन गांव वालों को मिला और सरकारी अधिकारी वापस लौट गए। बाबा का सपना कब और कैसे पूरा होगा ये बिहार सरकार जानती है या जिला प्रषासन। दषरथ बाबा के बिना आज भी गहलौर घाटी सुना-सुना सा लगा। बाबा एक छेनी और एक हथौड़ी के सहारे 20 वर्षों में पहाड़ का सीना चीरकर दो प्रखंडों को जोड़ने वाली सड़क का निर्माण किया था। इस कार्य में न किसी का श्रम लगा और न कोई आर्थिक सहायता मिली वरण इस सड़क के निर्माण होने के बाद इस जिले के वजीरगंज और अतरी प्रखंड की दूरी 80 किलोमीटर से घटकर 14 किलोमीटर हो गयी। 860 फीट लम्बा व 20 फीट चैड़ा सड़क का निर्माण हो गया। इस साहसिक कार्य के लिए 1999 में लिम्का बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में दषरथ मांझी का नाम दर्ज कर लिया गया। इससे प्रभावित होकर मुख्यमंत्री नीतीष कुमार ने दषरथ मांझी को एक दिन अपने कुर्सी पर बैठा दिया। उनका नाम पदम्श्री पुरस्कार के लिए अनुषंसित कर दिया गया था। दषरथ मांझी के अधूरे कार्यो को पूरा करने की सरकारी घोषणा कर दी गयी। आनन-फानन में दषरथ बाबा ने भी सरकार से मिली 5 एकड़ जमीन सरकार को लौटाते हुए उस जगह अस्पताल खोलने की इच्छा व्यक्त कर डाली। इस बीच दषरथ मांझी अस्वस्थ हुए उपचार के लिए राज्य सरकार ने दिल्ली एम्स हाॅस्पीटल भेजा गया। इसी अस्पताल में दषरथ मांझी ने अपनी जिन्दगी की आखरी सांस ली। मौत के एक वर्ष बीत जाने के बाद दिल्ली एम्स हाॅस्पीटल ने दषरथ मांझी के परिवार को एक पत्र भेजा है। जिसमें दषरथ मांझी के उपचार में आयी खर्च का ब्योरा भेजा गया। इस पत्र को लेकर तरह-तरह का कयास लगाया जाता रहा है। समझा जाता है कि पत्र से उत्पन्न भ्रम की स्थिति को दूर करने के उद्देष्य से राज्य सरकार के दो मंत्रियों ने इस गांव का दौरा किया है। डा. गीता प्रसाद निदेषक प्रमुख द्वारा स्थानीय आयुक्त को भेजे गये पत्र में कहा है कि स्वास्थ्य विभाग के संकल्प सं. 2363/ 14 दिनांक 12-02-08 1484/ 14 दिनांक 26-11-07 के प्रसंग में मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष के लिए गठित अधिकृत समिति की स्वीकृति के आधार दषरथ मांझी ग्राम-गहलौर, पो-ऐरु, जिला-गया के स्वयं की कैंसर रोग की एम्स नई दिल्ली अस्पताल में चिकित्सा में हुए व्यय का मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष रुपया 171018/ एक लाख एकहत्तर हजार 18 रुपये को विमुक्त किया जाता है। उक्त राषि जिस मद से आपके द्वारा कर्ज के रुप में ली गई थी उसका सामंजन उपरोक्त स्वीकृत राषि से कर ली जाये। आपके पत्र के नाम से निर्गत उक्त राषि का काॅस चेक संख्या ......... मुल्य रुप में सलंगन है। दषरथ मांझी के स्वयं की चिकित्सोपरान्त चिकित्सा प्रमाण पत्र सम्पूर्ण व्यय ब्यौरा के साथ अनुदान राषि की उपयोगिता का प्रमाण पत्र स्वास्थ्य विभाग पटना को निष्चिित रुप से उपलब्ध कराने का कष्ट करे। जिसे समीक्षा निदेषक प्रमुख स्वास्थ्य सेवाएं बिहार पटना प्रतिहस्ताक्षरित करेगें। बहरहाल आरोपुर गांव में मंगुरा नदी पर पुल निर्माण, पथ निर्माण और गहलौर घाटी में अस्पताल निर्माण कार्य में हाथ नहीं लगाया जा सका है। दषरथ मांझी के पुत्र और पुत्री विकलांग है उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है।





असीम संभावनाओं के बावजूद बांकेधाम का विकास ठप
षेरघाटी से राजेष कुमार/बांकेबाजार से कमल कुमार वर्मा

बांकेधाम में श्रावणी मेला इनदिनों बांकेधाम में जोर पकड़ चुका है और मेले की व्यवस्था के नाम पर कुछ भी ऐसा नहीं हुआ है जिससे यहां आने वाले दर्षनार्थियों को सहुलियतें मिल सके। सरकार चाहे तो बांकेधाम को बिहार का एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल जरूर बनवा सकती है। जिसकी यहां असीम संभावनाऐं हैं। मगध प्रमण्डल के मुख्यालय से पचास किलोमीटर दक्षिण-पष्चिम में अवस्थित बांकेबाजार की पहाड़ी। जिसे अब यहां की जनता बांकेधाम के नाम से पुकारती है। बांकेधाम धरती चप्पा-चप्पा ऐतिहासिक अवषेषों से भरा पड़ा है। प्रकृति की अनुपम छटाओं के बीच पर्यटन एवं पुरातत्व विभाग के उपेक्षा का षिकार है। यहां पर्यटन की असीम संभावनाएं है बांकेधाम में। यह पहाड़ी दो किलोमीटर लम्बी एवं एक किलोमीटर से अधिक चैड़ी है। जिसके पष्चिम कोर पर है मडावर नदी की दक्षिणी वाहिनी धारा प्रवाहित होती रहती है। इन पहाड़ी पर कई श्रृंखलायें है जिन पर मिले भग्नावषेषों एवं नवनिर्मित मंदिरों के आधार पर अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। पहाड़ी के पुरब दूसरी श्रृखंला पर भगवान आषुतोष षिव का भव्य नूतन मंदिर बन चुका है। जहां प्रारंभ में खुदाई में स्लेटी हरि तिमारिये पत्थर का गणेष की द्विमुणी और पार्वती की प्रतिमाएं मिली थी। षिवलिंग का एक प्रस्तर खण्ड से ढका था जिसे हटाने पर नीली आभालिए षिवलिंग अर्धे के साथ निकले। तालाब की खुदाई से एक सिक्का भी प्राप्त हुआ है जिसके एक पहलु पर हनुमानजी का चित्र तो दूसरे पहलु पर श्री राम परिवार लक्ष्मण के साथ है। जिसपर 47340 हनुमान सनू लिखा अष्टधातु के मोटा सिक्का है। जिसे मध्य बिहार ग्रामीण बैंक में सुरक्षित रखा गया है। इस पहाड़ के आस-पास एक सौ एक मंदिर के भी प्रमाण मिलते है और इस पर्वत पर अनेक गुफाएं है जो ऋषि मुनियों के तपोस्थली माना जाता है। जहां से सभी लोगों को देखा जा सकता है, लेकिन उस पर बैठे जगह पर कोई नहीं देख सकता है। पहली पहाड़ी की श्रृखंला पर सूर्यपुरी में सूर्य की तीन मग्न प्रतिमाएं अवस्थित है जो काले पत्थर की बनी सप्त अष्वरथ सारथी के साथ भगवान सूर्य की मूर्ति दिखाई गई है। जिसके दोनों ओर पत्निया संज्ञा और छाया है। एक ओर तालाब के अवषेष निकले है जिसे श्रमदान से खुदाई कर बनाया गया है। सूर्यपुरी के पुरब सपाट चैरस स्थल पर इन के टुकड़े ढ़ेर के रुप में बिखरे पड़े है। इसी के सटे मंदिर के बगल में मंडप बना हुआ है। प्रत्येक वर्ष यहां दान एवं चढ़ावा से लाखों रुपया का आय होता है जिसमें षिव मंदिर, सूर्यमंदिर एवं विषला धर्मषाला का निर्माण कराया गया है। यहां श्रावणी मेला एक माह तक लगता है जिसे मंदिर समिति के अनुवाई में खेल तमाषा एवं मीना बाजार लगाया जाता है। इसके आय से मंदिर के आवष्यकता अनुसार कार्य को कराया जाता है। यद्यपि बांकेधाम को पर्यटन विभाग से विकसित किया जाये तो यह एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल बन सकता है।


गोह में कैसे ढह गया लाल झंडे का गढ़
भाकपा में रामशरण जैसे नेताओं का अभाव
दाउदनगर (औरंगाबाद) से आलोक कुमार

1977 ई0 से गोह विधानसभा भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का गढ़ माना जाता था। आज इसका परिदृश्य ऐसा हो गया है कि लगता है कि अगर भाकपा अपने बूते चुनाव लड़ना चाहे तो शायद जमानत भी बचाना मुश्किल हो जायेगा। आखिर क्यों? जिस समय 1977 में इस विधानसभा क्षेत्र से कम्युनिष्ट रामशरण यादव ने चुनाव लड़ा था उस समय पार्टी का संगठन काफी मजबूत तो था ही रामशरण यादव का व्यक्तित्व भी ऐसा था कि न चाहकर भी जो लोग उन्हंे वोट दे दिया करते थे वहीं कम्युनिष्ट कहीं यादव की जीत का मूल फार्मूला था। जातीय आधार पार्टी का संगठन पिछड़ी, अति पिछड़ी एवं दलितों का समर्थन। इतने लोगों के वोटों पर कम्युनिष्ट यादव को जबर्दस्त पकड़ थी। यही कारण था कि दूसरे उम्मीदवार हाथ-पांव मारने की कोशिश तो करते थे, परंतु उन्हंे सफलता नहीं मिल पाती थी। उनकी जीत का प्रमुख आधार जातीय आधार था। यादव जातीयों ने उन्हें अपना नेता मान लिया था। ऐसे भी इस क्षेत्र में सबसे अधिक वोट यादव जाति का ही है। कम्युनिष्ट, यादव के बाद जो भी यादव जाति से उम्मीदवार आये उन्हें यहां के यादवों ने पचा नहीं सका। दूसरे दो-तीन उम्मीदवार होने की वजह से आपस में वोटों का विखराव होता रहा और तीसरा यह कि कम्युनिष्ट रामशरण यादव को अन्य जितनी जातियों का समर्थन मिलते रहा था, नहीं मिला। परिणामस्वरूप पराजय का ही मुंह हमेशा देखना पड़ा। ऐसे भी कम्युनिष्ट रामशरण यादव जब-जब चुनाव लड़े थे तो उनके साथ भुमिहार जाति के भी उम्मीदवार चुनाव लड़ते रहे थे। इस बीच राजपूत जातियों ने अपना खेल खेलना नहीं छोड़ा था। राजपूत जाति भूमिहार को वोट देना नहीं चाहते थे। इसलिए, वह उस वोट का कम्युनिष्ट रामशरण यादव को मिल जाया करता था और इनकी जीत पक्की हो जाया करती थी। इसी बीच 1985 ई0 में भूमिहार जाति से एक लोकप्रिय नेता डी0 के0 शर्मा चुनाव लड़ने आये थे। उनमें लोकप्रियता का अजीब जादू था। मिलने जूलने और लोगों को प्रभावित करने की अजीब तरकीब थी। उस दौरान शर्मा को अन्य तमाम जातियों का वोट तो मिला ही था कुशवाहा और राजपूत जातियों का भी वोट मिला था। फलस्वरूप, चुनाव जितने में सफल हो गये थे। फिर दूसरी बार वे चुनाव हार गये थे। परन्तु तीसरी बार उनके द्वारा किये गये विकास के नाम पर फिर उनकी जीत हुयी थी। परन्तु इस बार लोगों की उम्मीद पर पानी फिर गया। जब 2005 मंें चुनाव हुआ तो गोह विधानसभा क्षेत्र से लोजपा के टिकट पर रंजीत कुशवाहा को चुनाव लड़ जाने से और दो-दो यादव जातियों का उम्मीदवार बनने का सीधा लाभ जदयू प्रत्याशी डा0 रणविजय कुमार को मिला था और वे चुनाव जीत गये। इस दरम्यान न कम्युनिष्ट रामशरण यादव इस दुनिया में रहे न हीं डी0 के शर्मा। कई टर्म तक कम्युनिष्ट रामशरण यादव को इस विधानसभा क्षेत्र से प्रतिनिधित्व करते रहने से इससे भाकपा का गढ़ माना जाता था। जबकि, काॅ0 रामशरण यादव पार्टी गत आधार पर विधायक नहीं बने थे। यह सबकुछ उनके व्यक्तिगत व्यक्तित्व का परिणाम था। वे ऐसे व्यक्ति थे जो गरीब-अमीर सभी के दिलों पर राज करते थे। हां इतना जरूर है कि वे जबतक इस क्षेत्र का विधायक रहे तबतक भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का जनाधार सुदृढ़ जरूर रहा था। पार्टी में अनुशासन तो था ही पार्टी काफी सक्रिय थी। कम्युनिष्ट रामशरण यादव को इस दुनिया से कूच करते ही भाकपा का जनाधार भी कूच कर गया। अब पार्टी में वैसी सक्रियता भी नहीं रही। न रामशरण यादव की तरह व्यक्तित्व वाले पार्टी में नेता ही हैं जो अपनी लोकप्रियता से पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलितों और राजपूतों के वोट को प्रभावित कर सकें। वैसे तो भाकपा में कई नेताओं ने कम्युनिष्ट रामशरण यादव बनने का स्वांग रचा। परन्तु उनके व्यक्तित्व को समाहित नहीं कर सका। आज पार्टी का जनाधार भी काफी खिसक चुका है। पार्टी में पूर्व की तरह अनुशासन भी नहीं है। इससे नहीं लगता है कि आने वाले दिनों में पुनः गोह विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का सुनहला अवसर भाकपा को मिल सकती है। अगर कोई सोंच रहा होगा तो वह दिवास्वपन्न की तरह ही होगा।





हाय रे भगवान इंद्र तुम्हे दया क्यों नहीं आती !
जहानाबाद में अकाल से तबाही शुरू
इंद्र को मनाने के लिए लड़कियों ने खेतों में नंगा हो चलाया हल
पटना से मंगलानंद/जहानाबाद से संजय कुमार
भगवान इंद्र को मनाने के लिए किसानों के पास जितना जतन था सब करके थक चुके हैं। भगवान इंद्र को मनाने के लिए यहां तक हुआ कि नाबालिग लड़कियों ने खेतों में नंगे होकर हल तक चलाया परंतु भगवान इंद्र हैं कि उन्हें दया आती नहीं। रात के 12 बजे जब सारा गांव सो रहा था तो गया-जहानाबाद जिले के कई गांवों में गांव की लड़कियां खेतों में नंगी हो हल चला रही थी। बिहार की पुरानी परंपराओं में यह भी एक बड़ी परंपरा रही है। पुरानी पंरपराओं के अनुसार गांवों में हर प्रकार के अनुष्ठान हुए परंतु नतीजा कुछ भी नहीं निकला। भगवान इंद्र ने भी सारी परीक्षाऐं ली परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। कम बारिष ने गया-जहानाबाद के किसानों के चेहरे पर उदासी ला दी है। किसानों को रात में न चैन है न दिन में। हर समय किसान बादलों की ओर टकटकी लगाए रूंआसे हो भगवान इंद्र को कोस रहे हैं। कम बारिष के कारण किसानों को इस बार भीषण तबाही झेलनी पड़ रही है। पानी का भूमिगत जलस्तर काफी नीचे रहने के कारण डीजल सेट भी पानी खींचने में नाकामयाब साबित हो रहे है। धान के बिचड़े बचाते बचाते किसान भी मानों झुलस से गए हैं। किसान डीजल चालित पंप सेटों का भी सहारा ले रहे है परंतु आसमान से पानी नहीं होने के कारण अब तक धान की रोपनी शुरू भी नहीं हो सकी है। जहानाबाद जिले के कृषि विभाग के अधिकारियों का भी मानना है िकइस साल जिले में भीषण अकाल की संभावना है। सावन माह भी खत्म होने को आ गया है ऐसे हालात में धान की रोपनी नहीं होने से अब धान की उपज पर पूरी तरह ग्रहण लग सा गया है। जेठुआ और भदई फसलों की रोपाई का काम पानी के बिना पूरा नहीं हो सका है। मानसून की मार ने जहानाबाद में सबको रूला दिया है। पूरे इलाके में बेरोजगारी की मार लोगों को झेलने पड़ रहे हैं। बेरोजगार युवक और खेतीहर मजदूर दूसरे राज्यों के पलायन में लग गए हैं। एक गैर सरकारी संस्था द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार जहानाबाद और अरवल जिले में मात्र एक फीसदी ही धान की रोपायी हो सकी है। बाकी केे 99 प्रतिषत भूभाग अभी परती पड़े हैं। आद्र्रा नक्षत्र में लगाए गए बिचड़े तो पूरी तरह तैयार होकर सूख चुके है। जहानाबाद जिले के 95 प्रतिषत आहर, तालाब आदि जलाषयों में पानी देखने को भी नहीं मिल रहा है। भूर्गभीय जल श्रोतों के इस साल काफी नीचे चले जाने के आसार है। बिहार की मौजूदा हालत यह हो गयी है कि कही बाढ़ से लोग मर रहे हैं तो कही चुल्लु भर पानी नहीं है लोगों के लिए।

सुषासन का मधुषाला
स्कूलों और मंदिरों के बगल में चलते हैं मदिरालय
पटना से मंगलानंद/धर्मेन्द्र कुमार
ये अलग बात है साकी कि मुझे होष नहीं है होष इतना है कि सुषासन मदहोष नहीं है। हमने इतना ख्याल रखा है स्कूल और मंदिरों के बगल में मधुषाला का लाइसेंस आम कर दिया है। इसलिए कि ये बच्चे ही और धर्मगुरू ही देष की रीढ़ हैं। हम लाए थे तुफान से कष्ती निकाल के इस देष को रखना मेरे बच्चों संभाल के। बिहार सरकार का नषा इतना बढ़ गया है कि वो सर चढ़ कर बोल रहा है। इतना होष भी नहीं है कहां स्कूल है और कहां मंदिर है। आप को हर कदम कोई न कोई नाली में गिरा हुआ मिल जाय तो समझ लिजीए आप बिहार में हैं। जहरीली षराब से गुजरात में मौत की लोमहर्षक घटना को हमने देखा और सुना। देष के अन्य जगहो में कुछ इसी तरह की घटनाएं दोहरायी जा रही है । इसके बावजूद मौत का सामान बेचने की नीति को बढावा देने की प्रवृति रूक नहीं रही है। विकास पुरूष नीतीष कुमार बिहार के निर्माण के बजाय पूरे बिहार में षराबखोरी को बढावा देने बाली एैसी नीति (आबकारी नीति-.2007) बनायी है जिससे कृषि प्रधान बिहार में कृषि क्रांति , ष्वेत क्रांति के बजाय मदिरा कं्राति को बढावा मिल रही है। लोग हैरत में है कि कृषि एवं पषुपालन को बढावा देने के वायदे के साथ बनी नीतीष सरकार पूरे बिहार के गांव-गांव में ष्षराबखोरी को बढावा देने बाली नीति पर क्यों कदम आगे बढा रही है ? आखिर सरकार उसी अंतिम व्यक्ति का आर्थिक नुकसान नहीं कर रही है जो किसी तरह नरेगा से सौ-पचास रूपये कमाकर घर लौटता है, लेकिन घर पहंुचने के पहले वह देषी ष्षराब से अपने गले को तर कर लेता है । बीबी -बच्चों के लिए रोजमर्रे की चीजों के प्रबंध करने बजाय वह खाली हाथ घर मदहोष होकर लौटता है। गांधी यह मानते थे जो षराब पीते है उनके परिवार सदा अभाव में जीते है। षराबखोरी से उपजी आर्थिक बदहाली ने ही गांधी को ष्षराबबन्दी हेतु प्रेरित किया था। बुद्व, महावीर की जन्मस्थली और गांधी, बिनोबा एवं जयप्रकाष नारायण की कर्मस्थली बिहार में हिंसा को और हवा देने की घटना हादसे की तरह ही है। हिंसा के लिए बदनाम रही बिहार की छवि बदलने के बजाय प्रदेष सरकार ने हिंसा एवं अपराध को बढावा देने बाली एैसी आबकारी नीति बनाई है जिसके तहत सभी प्रकार की खुदरा षराब दुकानों की बंदोबस्ती अनिवार्य रूप से लाटरी द्वारा की जा रही है। इससे आम व्यवसाइयों के साथ साथ बेरोजगारों को भी इस व्यवसाय से जुडने का मौका मिला है। इस दिषा में सरकारी दावों की माने तो षराब व्यापार के एकाधिकार की समाप्ति होने के साथ ही खुदरा षराब के मूल्य पर नियंत्रण होगी। सरकार ने पंचायतों के लिए लक्ष्य निर्धारित किया है कि पहले 5500 रूपये के बजाय 8500 रूपये तक के षराब बेचे। लोगों को आकषर््िात करने के लिए सेल लगाये जा रहे है।वीडियो का इंस्तेमाल किया जा रहा है । सरकार की इस नीति की आढ में गांव -गांव में अवैध षराब निर्माण एवं बेचने का अभियान सा चल पडा है। हिंसा और अपराध के लिए बदनाम बिहार में विकास और सुषासन के नारों के साथ बनी नीतीष सरकार ने पिछले तीन वर्षों में अपराधियों और बाहुबलियों को सीखचों के अंदर भेजकर यह साबित करने का प्रयास किया कि सूबे में सुसासन स्थापित करने के प्रति वे प्रतिबद्व हैं मगर रेवेन्यू और रोजगार सृजन के नाम पर नीतीष सरकार के इस कवायद ने विरोधाभास की स्थिति पैदा कर दी है। प्रदेष के गांवो में बेतहाषा बढ रही षराब के दुकानों ने षराब पीने बालों की नयी फौज तैयार हो रही है । मद्यनिपेध के विरोध में सक्रिय संगठनों का कहना है कि इससे सर्वाधिक महिला एवं बच्चो के उपर चैतरफा दुप्प्रभाव पड रहा है । बिहार के कई इलाको में पूर्व से चल रहे वैध-अवैध षराब निर्माण के दौरान यह देखा गया है कि ष्षराबखोरी के प्रचलन से सबसे अधिक महिलाओं को जूझना पडता है। कई जगहों पर नये दुकान खोले जाने के खिलाफ नागरिकों ने विरोध प्रदर्षित भी किया है। पिछले कुछ वर्षों से चल रहे अवैध कच्ची षराब निर्माण का कारोबार आज स्थानीय लोगों के लिए बडी समस्या है। कई बार पुलिसिया कार्रबाई भी हुई किन्तु ष्षराब माफिया के सषक्त नेटवर्क ने पुलिस की कार्रवाई को प्रभावहीन कर दिया। ष्षराबनिर्माण के अवैध निर्माण से गांवों के लोग त्रस्त रहे है। पिछले कुछ वर्पो में इन गांवों में षराब के अडडों पर हत्या हो चुकी है ।पुलिस के अनुसार हत्या की वजह पियक्कडों की आपसी कहासुनी तथा षराब निर्माण में लगे बाहुबलियों के बीच वर्चस्व की लडाई रही है। समय-समय पर ग्रामीणों का प्रतिरोध भी होता रहा ह,ै लेकिन अवैध षराबनिर्माण के कारोबार ने पूरे इलाके का अपनी चपेट मे ले लिया। ष्षराब के अड्डों या ष्षराब के दुकानों से होकर महिलाओं या स्कूल की छात्राओं का गुजरना दूभर हो गया है। इन गांवों की महिलाएं आज भी अपने खेतो, खलिहानों, टोलो में खुद को असुरक्षित मानती है। बीते कुछ वर्पों में पूर्व से चल रहे गांवों के करीब पचहत्तर प्रतिषत घरों में पियक्कडो की फौज तैयार हो गयी है जिनके उपर षाम ढलते ही नषे का षुरूर चढ जाता है। रात के अंधेरों में महिलाओं के चीखने- चिल्लाने की आवाजें सुनाई देना आम दिनचर्या का हिस्सा हो गया है। जाहिर है षराबियों का कहर सबसे पहले अपनी पत्नियों के उपर ही टूटता है। ष्षराब के नषे में पति, पत्नी को पीटता है । उसे होष ही नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है। कई बार नषे की हालत में ही दुर्घटना हो जाती है और परिवार बिखर जाता है। इससे मासूम बच्चों के मानसिक दषा का अनुमान भी लगाया जा सकता है।सबसे दुखद बात यह है कि षराब निर्माण में नन्हे गरीब बच्चों को भी लगाया जाता है। कच्ची ष्षराब के अडृडों का जायजा लेने पर अजीबोगरीब दृष्य मिलता है । बजबजाती गंदगी, गंदगी के बीच खेलते बच्चे, भभकती भट्ठियां, षराब निर्माण में लगी महिला एव बच्चे। पास ही पियक्कडो का हुजूम जो बात -बात पर बजबजाती गंदगी से भी अधिक भद्दी गालियां बक रहा होता है। जाहिर है महिला हिंसा के लिए बदनाम बिहार में वर्तमान आबकारी नीति से हिंसा को बढावा ही मिलेगा। है। एन एफ एच एस- 3 के आंकडों के अनुसार राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों मेें 59 प्रतिषत पुरूष अपनी पत्नी को पीटते है। एक ओर नीतीष सरकार महिलाओं के सषक्तिकरण के पचास प्रतिषत आरक्षण भी देती है तो दूसरी ओर इन महिलाओं के मानमर्दन के लिए नषाखोरी को भी बढावा दे रही है। प्रदेष में युवाओं की चालीस प्रतिषत आबादी हैं। आंकडों के हिसाब से युवाओं कीे 4 करोड संख्या है। प्रदेष सरकार के विचाराधीन युवानीति के अभाव मे ंप्रदेष के सर्वांगिण विकास में इनकी भुमिका सुनिष्चित नहीं हो पा रही है एैसे में इन युवाओं में नषे की लत से कम-से-कम समाज का निर्माण तो नहीं ही किया जा सकता। दरअसल तमाम राज्य सरकारें आबकारी नीति घोषित करती है। ष्षराब राज्यों की कमाई का प्रमुख जरिया होती है। हर साल राज्य आबकारी लक्ष्य बढाते हैं। बाकायदा घोषित आबकारी नीति में ं पियक्कडों और ठेकेदारों का ख्याल रखा जाता है। गत वर्ष सरकारी राजस्व में वृद्वि हुई है। सरकारी आंकडों के अनुसार यह वृद्वि पिछले वित्तीय वर्प के अपेक्षाकृत 31.37 प्रतिषत अधिक है यानि बिहार सरकार ने इस वित्तीय वर्प में षराब निर्माण से 417.95 करोड की राजस्व प्राप्त की है। क्या महज राजस्व के लिए मानव संसाधान की इतनी बडे हिस्से के भविष्य के साथ खिलवाड उचित है ?


‘‘ लुकिंग लंदन गोईंग टोक्यो ’’
गया से नारायण मिश्रा
‘‘ जरा हौले हौले चलांे मेरे साजना हम भी पीछे हैं तुम्हारे ’’ आड़ी तिरछी रफ्तारों के मालिक इनदिनों टिकारी-गया के टेम्पो आपरेटर हो गए हैं। आपको बैठते ही ऐसा महसूस होगा ‘‘ लुकिंग लंदन गोईंग टोक्यो’’ आपको महसूस होने लगेगा कि शायद आप अपनी मंजिल के बगैर कही और जा रहे हैं। शायद यह आखिरी मंजिल भी हो सकती है। अधिकांष टेम्पो चालकों के पास ड्राईविंग लाइसेंस हैं ही नहीं। जिनकी उम्र 18 साल से नीचे हैं। सुबह से लेकर शाम तक छोटे कस्बों से लेकर शहर तक तेज रफ्तार में गाड़ी चलती है। गाड़ी रूकी पैसेंजर सवार हुआ या नहीं ट्रेन की तरह कभी गाड़ी 70 कभी 80 कभी बाऐं कभी दाऐ बैठने वालों का कलेजा मुहं को आ जाता है। जिला प्रषासन को टेम्पो वालों से कोई मतलब नहीं है। ट्राफिक पुलिस वालों का पैसा चाहिए किसकी जान जाएगी और किसकी बचेगी ये डीटीओ साहब तय करेंगे।


आज भी अधूरा है माउंटेन मैन का सपना
विकास को मोहताज है गेहलौर घाटी
गया से नारायण मिश्रा
बिहार सरकार चाहे लाख वादा करे फिर भी गेहलौर घाटी के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों की हालत में सुधार की गंुजाईष नहीं दीखती। कुछ यादें ऐसी होती हैं जो अतीत के गहवारे में ले जाती हैं। शायद गेहलौर घाटी अनाथ हो गया हो। गेहलौर घाटी की हालत बिलकुल वैसी ही हो गयी है जैसे किसी बच्चे के सर से बाप का साया उठ जाना। गांव बिलकुल वीरान हो गया है। ये लगता ही नहीं है कि कभी यहां माउंटेन मैन रहा करते थे। पत्रकारों के अपने दरवाजे पर पहंुचते ही बाबा के चहेरे पर खुषी झलकने लगती थी। वे उम्मीद करने लगते थे उनकी मेहनत पत्रकारों के कलम के द्वारा रंग लाएगी। बिलकुल उसी तरह सम्मान करते थे जैसे सबरी रामजी के लिए बैर चख-चख कर रखती थी। अपनी कुटिया में पत्रकारों को बैठाना और जो उनके वष में हो उसे खिलाकर ही विदा करना लेकिन शायद ये सारी बातें धुंधली हो गयी हैं। दषरथ बाबा भविष्य के गर्भ में समा चुके हैं, गेहलौर घाटी का कोई पुर्सानेहाल नहीं है। शहीदों के मजार पर हर बरस लगेंगे मेले वतन पर मरने वालों की बाकी यहीं निषां होगी ’’ आज बाबा की पहली पुण्यतिथि मनायी गयी, सरकारी अधिकारियों का भाषण और आष्वासन गांव वालों को मिला और सरकारी अधिकारी वापस लौट गए। बाबा का सपना कब और कैसे पूरा होगा ये बिहार सरकार जानती है या जिला प्रषासन। दषरथ बाबा के बिना आज भी गहलौर घाटी सुना-सुना सा लगा। बाबा एक छेनी और एक हथौड़ी के सहारे 20 वर्षों में पहाड़ का सीना चीरकर दो प्रखंडों को जोड़ने वाली सड़क का निर्माण किया था। इस कार्य में न किसी का श्रम लगा और न कोई आर्थिक सहायता मिली वरण इस सड़क के निर्माण होने के बाद इस जिले के वजीरगंज और अतरी प्रखंड की दूरी 80 किलोमीटर से घटकर 14 किलोमीटर हो गयी। 860 फीट लम्बा व 20 फीट चैड़ा सड़क का निर्माण हो गया। इस साहसिक कार्य के लिए 1999 में लिम्का बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में दषरथ मांझी का नाम दर्ज कर लिया गया। इससे प्रभावित होकर मुख्यमंत्री नीतीष कुमार ने दषरथ मांझी को एक दिन अपने कुर्सी पर बैठा दिया। उनका नाम पदम्श्री पुरस्कार के लिए अनुषंसित कर दिया गया था। दषरथ मांझी के अधूरे कार्यो को पूरा करने की सरकारी घोषणा कर दी गयी। आनन-फानन में दषरथ बाबा ने भी सरकार से मिली 5 एकड़ जमीन सरकार को लौटाते हुए उस जगह अस्पताल खोलने की इच्छा व्यक्त कर डाली। इस बीच दषरथ मांझी अस्वस्थ हुए उपचार के लिए राज्य सरकार ने दिल्ली एम्स हाॅस्पीटल भेजा गया। इसी अस्पताल में दषरथ मांझी ने अपनी जिन्दगी की आखरी सांस ली। मौत के एक वर्ष बीत जाने के बाद दिल्ली एम्स हाॅस्पीटल ने दषरथ मांझी के परिवार को एक पत्र भेजा है। जिसमें दषरथ मांझी के उपचार में आयी खर्च का ब्योरा भेजा गया। इस पत्र को लेकर तरह-तरह का कयास लगाया जाता रहा है। समझा जाता है कि पत्र से उत्पन्न भ्रम की स्थिति को दूर करने के उद्देष्य से राज्य सरकार के दो मंत्रियों ने इस गांव का दौरा किया है। डा. गीता प्रसाद निदेषक प्रमुख द्वारा स्थानीय आयुक्त को भेजे गये पत्र में कहा है कि स्वास्थ्य विभाग के संकल्प सं. 2363/ 14 दिनांक 12-02-08 1484/ 14 दिनांक 26-11-07 के प्रसंग में मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष के लिए गठित अधिकृत समिति की स्वीकृति के आधार दषरथ मांझी ग्राम-गहलौर, पो-ऐरु, जिला-गया के स्वयं की कैंसर रोग की एम्स नई दिल्ली अस्पताल में चिकित्सा में हुए व्यय का मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष रुपया 171018/ एक लाख एकहत्तर हजार 18 रुपये को विमुक्त किया जाता है। उक्त राषि जिस मद से आपके द्वारा कर्ज के रुप में ली गई थी उसका सामंजन उपरोक्त स्वीकृत राषि से कर ली जाये। आपके पत्र के नाम से निर्गत उक्त राषि का काॅस चेक संख्या ......... मुल्य रुप में सलंगन है। दषरथ मांझी के स्वयं की चिकित्सोपरान्त चिकित्सा प्रमाण पत्र सम्पूर्ण व्यय ब्यौरा के साथ अनुदान राषि की उपयोगिता का प्रमाण पत्र स्वास्थ्य विभाग पटना को निष्चिित रुप से उपलब्ध कराने का कष्ट करे। जिसे समीक्षा निदेषक प्रमुख स्वास्थ्य सेवाएं बिहार पटना प्रतिहस्ताक्षरित करेगें। बहरहाल आरोपुर गांव में मंगुरा नदी पर पुल निर्माण, पथ निर्माण और गहलौर घाटी में अस्पताल निर्माण कार्य में हाथ नहीं लगाया जा सका है। दषरथ मांझी के पुत्र और पुत्री विकलांग है उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है।





असीम संभावनाओं के बावजूद बांकेधाम का विकास ठप
षेरघाटी से राजेष कुमार/बांकेबाजार से कमल कुमार वर्मा
बांकेधाम में श्रावणी मेला इनदिनों बांकेधाम में जोर पकड़ चुका है और मेले की व्यवस्था के नाम पर कुछ भी ऐसा नहीं हुआ है जिससे यहां आने वाले दर्षनार्थियों को सहुलियतें मिल सके। सरकार चाहे तो बांकेधाम को बिहार का एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल जरूर बनवा सकती है। जिसकी यहां असीम संभावनाऐं हैं। मगध प्रमण्डल के मुख्यालय से पचास किलोमीटर दक्षिण-पष्चिम में अवस्थित बांकेबाजार की पहाड़ी। जिसे अब यहां की जनता बांकेधाम के नाम से पुकारती है। बांकेधाम धरती चप्पा-चप्पा ऐतिहासिक अवषेषों से भरा पड़ा है। प्रकृति की अनुपम छटाओं के बीच पर्यटन एवं पुरातत्व विभाग के उपेक्षा का षिकार है। यहां पर्यटन की असीम संभावनाएं है बांकेधाम में। यह पहाड़ी दो किलोमीटर लम्बी एवं एक किलोमीटर से अधिक चैड़ी है। जिसके पष्चिम कोर पर है मडावर नदी की दक्षिणी वाहिनी धारा प्रवाहित होती रहती है। इन पहाड़ी पर कई श्रृंखलायें है जिन पर मिले भग्नावषेषों एवं नवनिर्मित मंदिरों के आधार पर अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। पहाड़ी के पुरब दूसरी श्रृखंला पर भगवान आषुतोष षिव का भव्य नूतन मंदिर बन चुका है। जहां प्रारंभ में खुदाई में स्लेटी हरि तिमारिये पत्थर का गणेष की द्विमुणी और पार्वती की प्रतिमाएं मिली थी। षिवलिंग का एक प्रस्तर खण्ड से ढका था जिसे हटाने पर नीली आभालिए षिवलिंग अर्धे के साथ निकले। तालाब की खुदाई से एक सिक्का भी प्राप्त हुआ है जिसके एक पहलु पर हनुमानजी का चित्र तो दूसरे पहलु पर श्री राम परिवार लक्ष्मण के साथ है। जिसपर 47340 हनुमान सनू लिखा अष्टधातु के मोटा सिक्का है। जिसे मध्य बिहार ग्रामीण बैंक में सुरक्षित रखा गया है। इस पहाड़ के आस-पास एक सौ एक मंदिर के भी प्रमाण मिलते है और इस पर्वत पर अनेक गुफाएं है जो ऋषि मुनियों के तपोस्थली माना जाता है। जहां से सभी लोगों को देखा जा सकता है, लेकिन उस पर बैठे जगह पर कोई नहीं देख सकता है। पहली पहाड़ी की श्रृखंला पर सूर्यपुरी में सूर्य की तीन मग्न प्रतिमाएं अवस्थित है जो काले पत्थर की बनी सप्त अष्वरथ सारथी के साथ भगवान सूर्य की मूर्ति दिखाई गई है। जिसके दोनों ओर पत्निया संज्ञा और छाया है। एक ओर तालाब के अवषेष निकले है जिसे श्रमदान से खुदाई कर बनाया गया है। सूर्यपुरी के पुरब सपाट चैरस स्थल पर इन के टुकड़े ढ़ेर के रुप में बिखरे पड़े है। इसी के सटे मंदिर के बगल में मंडप बना हुआ है। प्रत्येक वर्ष यहां दान एवं चढ़ावा से लाखों रुपया का आय होता है जिसमें षिव मंदिर, सूर्यमंदिर एवं विषला धर्मषाला का निर्माण कराया गया है। यहां श्रावणी मेला एक माह तक लगता है जिसे मंदिर समिति के अनुवाई में खेल तमाषा एवं मीना बाजार लगाया जाता है। इसके आय से मंदिर के आवष्यकता अनुसार कार्य को कराया जाता है। यद्यपि बांकेधाम को पर्यटन विभाग से विकसित किया जाये तो यह एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल बन सकता है।


गोह में कैसे ढह गया लाल झंडे का गढ़
भाकपा में रामशरण जैसे नेताओं का अभाव
दाउदनगर (औरंगाबाद) से आलोक कुमार
1977 ई0 से गोह विधानसभा भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का गढ़ माना जाता था। आज इसका परिदृश्य ऐसा हो गया है कि लगता है कि अगर भाकपा अपने बूते चुनाव लड़ना चाहे तो शायद जमानत भी बचाना मुश्किल हो जायेगा। आखिर क्यों? जिस समय 1977 में इस विधानसभा क्षेत्र से कम्युनिष्ट रामशरण यादव ने चुनाव लड़ा था उस समय पार्टी का संगठन काफी मजबूत तो था ही रामशरण यादव का व्यक्तित्व भी ऐसा था कि न चाहकर भी जो लोग उन्हंे वोट दे दिया करते थे वहीं कम्युनिष्ट कहीं यादव की जीत का मूल फार्मूला था। जातीय आधार पार्टी का संगठन पिछड़ी, अति पिछड़ी एवं दलितों का समर्थन। इतने लोगों के वोटों पर कम्युनिष्ट यादव को जबर्दस्त पकड़ थी। यही कारण था कि दूसरे उम्मीदवार हाथ-पांव मारने की कोशिश तो करते थे, परंतु उन्हंे सफलता नहीं मिल पाती थी। उनकी जीत का प्रमुख आधार जातीय आधार था। यादव जातीयों ने उन्हें अपना नेता मान लिया था। ऐसे भी इस क्षेत्र में सबसे अधिक वोट यादव जाति का ही है। कम्युनिष्ट, यादव के बाद जो भी यादव जाति से उम्मीदवार आये उन्हें यहां के यादवों ने पचा नहीं सका। दूसरे दो-तीन उम्मीदवार होने की वजह से आपस में वोटों का विखराव होता रहा और तीसरा यह कि कम्युनिष्ट रामशरण यादव को अन्य जितनी जातियों का समर्थन मिलते रहा था, नहीं मिला। परिणामस्वरूप पराजय का ही मुंह हमेशा देखना पड़ा। ऐसे भी कम्युनिष्ट रामशरण यादव जब-जब चुनाव लड़े थे तो उनके साथ भुमिहार जाति के भी उम्मीदवार चुनाव लड़ते रहे थे। इस बीच राजपूत जातियों ने अपना खेल खेलना नहीं छोड़ा था। राजपूत जाति भूमिहार को वोट देना नहीं चाहते थे। इसलिए, वह उस वोट का कम्युनिष्ट रामशरण यादव को मिल जाया करता था और इनकी जीत पक्की हो जाया करती थी। इसी बीच 1985 ई0 में भूमिहार जाति से एक लोकप्रिय नेता डी0 के0 शर्मा चुनाव लड़ने आये थे। उनमें लोकप्रियता का अजीब जादू था। मिलने जूलने और लोगों को प्रभावित करने की अजीब तरकीब थी। उस दौरान शर्मा को अन्य तमाम जातियों का वोट तो मिला ही था कुशवाहा और राजपूत जातियों का भी वोट मिला था। फलस्वरूप, चुनाव जितने में सफल हो गये थे। फिर दूसरी बार वे चुनाव हार गये थे। परन्तु तीसरी बार उनके द्वारा किये गये विकास के नाम पर फिर उनकी जीत हुयी थी। परन्तु इस बार लोगों की उम्मीद पर पानी फिर गया। जब 2005 मंें चुनाव हुआ तो गोह विधानसभा क्षेत्र से लोजपा के टिकट पर रंजीत कुशवाहा को चुनाव लड़ जाने से और दो-दो यादव जातियों का उम्मीदवार बनने का सीधा लाभ जदयू प्रत्याशी डा0 रणविजय कुमार को मिला था और वे चुनाव जीत गये। इस दरम्यान न कम्युनिष्ट रामशरण यादव इस दुनिया में रहे न हीं डी0 के शर्मा। कई टर्म तक कम्युनिष्ट रामशरण यादव को इस विधानसभा क्षेत्र से प्रतिनिधित्व करते रहने से इससे भाकपा का गढ़ माना जाता था। जबकि, काॅ0 रामशरण यादव पार्टी गत आधार पर विधायक नहीं बने थे। यह सबकुछ उनके व्यक्तिगत व्यक्तित्व का परिणाम था। वे ऐसे व्यक्ति थे जो गरीब-अमीर सभी के दिलों पर राज करते थे। हां इतना जरूर है कि वे जबतक इस क्षेत्र का विधायक रहे तबतक भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का जनाधार सुदृढ़ जरूर रहा था। पार्टी में अनुशासन तो था ही पार्टी काफी सक्रिय थी। कम्युनिष्ट रामशरण यादव को इस दुनिया से कूच करते ही भाकपा का जनाधार भी कूच कर गया। अब पार्टी में वैसी सक्रियता भी नहीं रही। न रामशरण यादव की तरह व्यक्तित्व वाले पार्टी में नेता ही हैं जो अपनी लोकप्रियता से पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलितों और राजपूतों के वोट को प्रभावित कर सकें। वैसे तो भाकपा में कई नेताओं ने कम्युनिष्ट रामशरण यादव बनने का स्वांग रचा। परन्तु उनके व्यक्तित्व को समाहित नहीं कर सका। आज पार्टी का जनाधार भी काफी खिसक चुका है। पार्टी में पूर्व की तरह अनुशासन भी नहीं है। इससे नहीं लगता है कि आने वाले दिनों में पुनः गोह विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का सुनहला अवसर भाकपा को मिल सकती है। अगर कोई सोंच रहा होगा तो वह दिवास्वपन्न की तरह ही होगा।



हाय रे भगवान इंद्र तुम्हे दया क्यों नहीं आती !
जहानाबाद में अकाल से तबाही शुरू
इंद्र को मनाने के लिए लड़कियों ने खेतों में नंगा हो चलाया हल
पटना से मंगलानंद/जहानाबाद से संजय कुमार
भगवान इंद्र को मनाने के लिए किसानों के पास जितना जतन था सब करके थक चुके हैं। भगवान इंद्र को मनाने के लिए यहां तक हुआ कि नाबालिग लड़कियों ने खेतों में नंगे होकर हल तक चलाया परंतु भगवान इंद्र हैं कि उन्हें दया आती नहीं। रात के 12 बजे जब सारा गांव सो रहा था तो गया-जहानाबाद जिले के कई गांवों में गांव की लड़कियां खेतों में नंगी हो हल चला रही थी। बिहार की पुरानी परंपराओं में यह भी एक बड़ी परंपरा रही है। पुरानी पंरपराओं के अनुसार गांवों में हर प्रकार के अनुष्ठान हुए परंतु नतीजा कुछ भी नहीं निकला। भगवान इंद्र ने भी सारी परीक्षाऐं ली परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। कम बारिष ने गया-जहानाबाद के किसानों के चेहरे पर उदासी ला दी है। किसानों को रात में न चैन है न दिन में। हर समय किसान बादलों की ओर टकटकी लगाए रूंआसे हो भगवान इंद्र को कोस रहे हैं। कम बारिष के कारण किसानों को इस बार भीषण तबाही झेलनी पड़ रही है। पानी का भूमिगत जलस्तर काफी नीचे रहने के कारण डीजल सेट भी पानी खींचने में नाकामयाब साबित हो रहे है। धान के बिचड़े बचाते बचाते किसान भी मानों झुलस से गए हैं। किसान डीजल चालित पंप सेटों का भी सहारा ले रहे है परंतु आसमान से पानी नहीं होने के कारण अब तक धान की रोपनी शुरू भी नहीं हो सकी है। जहानाबाद जिले के कृषि विभाग के अधिकारियों का भी मानना है िकइस साल जिले में भीषण अकाल की संभावना है। सावन माह भी खत्म होने को आ गया है ऐसे हालात में धान की रोपनी नहीं होने से अब धान की उपज पर पूरी तरह ग्रहण लग सा गया है। जेठुआ और भदई फसलों की रोपाई का काम पानी के बिना पूरा नहीं हो सका है। मानसून की मार ने जहानाबाद में सबको रूला दिया है। पूरे इलाके में बेरोजगारी की मार लोगों को झेलने पड़ रहे हैं। बेरोजगार युवक और खेतीहर मजदूर दूसरे राज्यों के पलायन में लग गए हैं। एक गैर सरकारी संस्था द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार जहानाबाद और अरवल जिले में मात्र एक फीसदी ही धान की रोपायी हो सकी है। बाकी केे 99 प्रतिषत भूभाग अभी परती पड़े हैं। आद्र्रा नक्षत्र में लगाए गए बिचड़े तो पूरी तरह तैयार होकर सूख चुके है। जहानाबाद जिले के 95 प्रतिषत आहर, तालाब आदि जलाषयों में पानी देखने को भी नहीं मिल रहा है। भूर्गभीय जल श्रोतों के इस साल काफी नीचे चले जाने के आसार है। बिहार की मौजूदा हालत यह हो गयी है कि कही बाढ़ से लोग मर रहे हैं तो कही चुल्लु भर पानी नहीं है लोगों के लिए।

सुषासन का मधुषाला
स्कूलों और मंदिरों के बगल में चलते हैं मदिरालय
पटना से मंगलानंद/धर्मेन्द्र कुमार
ये अलग बात है साकी कि मुझे होष नहीं है होष इतना है कि सुषासन मदहोष नहीं है। हमने इतना ख्याल रखा है स्कूल और मंदिरों के बगल में मधुषाला का लाइसेंस आम कर दिया है। इसलिए कि ये बच्चे ही और धर्मगुरू ही देष की रीढ़ हैं। हम लाए थे तुफान से कष्ती निकाल के इस देष को रखना मेरे बच्चों संभाल के। बिहार सरकार का नषा इतना बढ़ गया है कि वो सर चढ़ कर बोल रहा है। इतना होष भी नहीं है कहां स्कूल है और कहां मंदिर है। आप को हर कदम कोई न कोई नाली में गिरा हुआ मिल जाय तो समझ लिजीए आप बिहार में हैं। जहरीली षराब से गुजरात में मौत की लोमहर्षक घटना को हमने देखा और सुना। देष के अन्य जगहो में कुछ इसी तरह की घटनाएं दोहरायी जा रही है । इसके बावजूद मौत का सामान बेचने की नीति को बढावा देने की प्रवृति रूक नहीं रही है। विकास पुरूष नीतीष कुमार बिहार के निर्माण के बजाय पूरे बिहार में षराबखोरी को बढावा देने बाली एैसी नीति (आबकारी नीति-.2007) बनायी है जिससे कृषि प्रधान बिहार में कृषि क्रांति , ष्वेत क्रांति के बजाय मदिरा कं्राति को बढावा मिल रही है। लोग हैरत में है कि कृषि एवं पषुपालन को बढावा देने के वायदे के साथ बनी नीतीष सरकार पूरे बिहार के गांव-गांव में ष्षराबखोरी को बढावा देने बाली नीति पर क्यों कदम आगे बढा रही है ? आखिर सरकार उसी अंतिम व्यक्ति का आर्थिक नुकसान नहीं कर रही है जो किसी तरह नरेगा से सौ-पचास रूपये कमाकर घर लौटता है, लेकिन घर पहंुचने के पहले वह देषी ष्षराब से अपने गले को तर कर लेता है । बीबी -बच्चों के लिए रोजमर्रे की चीजों के प्रबंध करने बजाय वह खाली हाथ घर मदहोष होकर लौटता है। गांधी यह मानते थे जो षराब पीते है उनके परिवार सदा अभाव में जीते है। षराबखोरी से उपजी आर्थिक बदहाली ने ही गांधी को ष्षराबबन्दी हेतु प्रेरित किया था। बुद्व, महावीर की जन्मस्थली और गांधी, बिनोबा एवं जयप्रकाष नारायण की कर्मस्थली बिहार में हिंसा को और हवा देने की घटना हादसे की तरह ही है। हिंसा के लिए बदनाम रही बिहार की छवि बदलने के बजाय प्रदेष सरकार ने हिंसा एवं अपराध को बढावा देने बाली एैसी आबकारी नीति बनाई है जिसके तहत सभी प्रकार की खुदरा षराब दुकानों की बंदोबस्ती अनिवार्य रूप से लाटरी द्वारा की जा रही है। इससे आम व्यवसाइयों के साथ साथ बेरोजगारों को भी इस व्यवसाय से जुडने का मौका मिला है। इस दिषा में सरकारी दावों की माने तो षराब व्यापार के एकाधिकार की समाप्ति होने के साथ ही खुदरा षराब के मूल्य पर नियंत्रण होगी। सरकार ने पंचायतों के लिए लक्ष्य निर्धारित किया है कि पहले 5500 रूपये के बजाय 8500 रूपये तक के षराब बेचे। लोगों को आकषर््िात करने के लिए सेल लगाये जा रहे है।वीडियो का इंस्तेमाल किया जा रहा है । सरकार की इस नीति की आढ में गांव -गांव में अवैध षराब निर्माण एवं बेचने का अभियान सा चल पडा है। हिंसा और अपराध के लिए बदनाम बिहार में विकास और सुषासन के नारों के साथ बनी नीतीष सरकार ने पिछले तीन वर्षों में अपराधियों और बाहुबलियों को सीखचों के अंदर भेजकर यह साबित करने का प्रयास किया कि सूबे में सुसासन स्थापित करने के प्रति वे प्रतिबद्व हैं मगर रेवेन्यू और रोजगार सृजन के नाम पर नीतीष सरकार के इस कवायद ने विरोधाभास की स्थिति पैदा कर दी है। प्रदेष के गांवो में बेतहाषा बढ रही षराब के दुकानों ने षराब पीने बालों की नयी फौज तैयार हो रही है । मद्यनिपेध के विरोध में सक्रिय संगठनों का कहना है कि इससे सर्वाधिक महिला एवं बच्चो के उपर चैतरफा दुप्प्रभाव पड रहा है । बिहार के कई इलाको में पूर्व से चल रहे वैध-अवैध षराब निर्माण के दौरान यह देखा गया है कि ष्षराबखोरी के प्रचलन से सबसे अधिक महिलाओं को जूझना पडता है। कई जगहों पर नये दुकान खोले जाने के खिलाफ नागरिकों ने विरोध प्रदर्षित भी किया है। पिछले कुछ वर्षों से चल रहे अवैध कच्ची षराब निर्माण का कारोबार आज स्थानीय लोगों के लिए बडी समस्या है। कई बार पुलिसिया कार्रबाई भी हुई किन्तु ष्षराब माफिया के सषक्त नेटवर्क ने पुलिस की कार्रवाई को प्रभावहीन कर दिया। ष्षराबनिर्माण के अवैध निर्माण से गांवों के लोग त्रस्त रहे है। पिछले कुछ वर्पो में इन गांवों में षराब के अडडों पर हत्या हो चुकी है ।पुलिस के अनुसार हत्या की वजह पियक्कडों की आपसी कहासुनी तथा षराब निर्माण में लगे बाहुबलियों के बीच वर्चस्व की लडाई रही है। समय-समय पर ग्रामीणों का प्रतिरोध भी होता रहा ह,ै लेकिन अवैध षराबनिर्माण के कारोबार ने पूरे इलाके का अपनी चपेट मे ले लिया। ष्षराब के अड्डों या ष्षराब के दुकानों से होकर महिलाओं या स्कूल की छात्राओं का गुजरना दूभर हो गया है। इन गांवों की महिलाएं आज भी अपने खेतो, खलिहानों, टोलो में खुद को असुरक्षित मानती है। बीते कुछ वर्पों में पूर्व से चल रहे गांवों के करीब पचहत्तर प्रतिषत घरों में पियक्कडो की फौज तैयार हो गयी है जिनके उपर षाम ढलते ही नषे का षुरूर चढ जाता है। रात के अंधेरों में महिलाओं के चीखने- चिल्लाने की आवाजें सुनाई देना आम दिनचर्या का हिस्सा हो गया है। जाहिर है षराबियों का कहर सबसे पहले अपनी पत्नियों के उपर ही टूटता है। ष्षराब के नषे में पति, पत्नी को पीटता है । उसे होष ही नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है। कई बार नषे की हालत में ही दुर्घटना हो जाती है और परिवार बिखर जाता है। इससे मासूम बच्चों के मानसिक दषा का अनुमान भी लगाया जा सकता है।सबसे दुखद बात यह है कि षराब निर्माण में नन्हे गरीब बच्चों को भी लगाया जाता है। कच्ची ष्षराब के अडृडों का जायजा लेने पर अजीबोगरीब दृष्य मिलता है । बजबजाती गंदगी, गंदगी के बीच खेलते बच्चे, भभकती भट्ठियां, षराब निर्माण में लगी महिला एव बच्चे। पास ही पियक्कडो का हुजूम जो बात -बात पर बजबजाती गंदगी से भी अधिक भद्दी गालियां बक रहा होता है। जाहिर है महिला हिंसा के लिए बदनाम बिहार में वर्तमान आबकारी नीति से हिंसा को बढावा ही मिलेगा। है। एन एफ एच एस- 3 के आंकडों के अनुसार राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों मेें 59 प्रतिषत पुरूष अपनी पत्नी को पीटते है। एक ओर नीतीष सरकार महिलाओं के सषक्तिकरण के पचास प्रतिषत आरक्षण भी देती है तो दूसरी ओर इन महिलाओं के मानमर्दन के लिए नषाखोरी को भी बढावा दे रही है। प्रदेष में युवाओं की चालीस प्रतिषत आबादी हैं। आंकडों के हिसाब से युवाओं कीे 4 करोड संख्या है। प्रदेष सरकार के विचाराधीन युवानीति के अभाव मे ंप्रदेष के सर्वांगिण विकास में इनकी भुमिका सुनिष्चित नहीं हो पा रही है एैसे में इन युवाओं में नषे की लत से कम-से-कम समाज का निर्माण तो नहीं ही किया जा सकता। दरअसल तमाम राज्य सरकारें आबकारी नीति घोषित करती है। ष्षराब राज्यों की कमाई का प्रमुख जरिया होती है। हर साल राज्य आबकारी लक्ष्य बढाते हैं। बाकायदा घोषित आबकारी नीति में ं पियक्कडों और ठेकेदारों का ख्याल रखा जाता है। गत वर्ष सरकारी राजस्व में वृद्वि हुई है। सरकारी आंकडों के अनुसार यह वृद्वि पिछले वित्तीय वर्प के अपेक्षाकृत 31.37 प्रतिषत अधिक है यानि बिहार सरकार ने इस वित्तीय वर्प में षराब निर्माण से 417.95 करोड की राजस्व प्राप्त की है। क्या महज राजस्व के लिए मानव संसाधान की इतनी बडे हिस्से के भविष्य के साथ खिलवाड उचित है ?


‘‘ लुकिंग लंदन गोईंग टोक्यो ’’
गया से नारायण मिश्रा
‘‘ जरा हौले हौले चलांे मेरे साजना हम भी पीछे हैं तुम्हारे ’’ आड़ी तिरछी रफ्तारों के मालिक इनदिनों टिकारी-गया के टेम्पो आपरेटर हो गए हैं। आपको बैठते ही ऐसा महसूस होगा ‘‘ लुकिंग लंदन गोईंग टोक्यो’’ आपको महसूस होने लगेगा कि शायद आप अपनी मंजिल के बगैर कही और जा रहे हैं। शायद यह आखिरी मंजिल भी हो सकती है। अधिकांष टेम्पो चालकों के पास ड्राईविंग लाइसेंस हैं ही नहीं। जिनकी उम्र 18 साल से नीचे हैं। सुबह से लेकर शाम तक छोटे कस्बों से लेकर शहर तक तेज रफ्तार में गाड़ी चलती है। गाड़ी रूकी पैसेंजर सवार हुआ या नहीं ट्रेन की तरह कभी गाड़ी 70 कभी 80 कभी बाऐं कभी दाऐ बैठने वालों का कलेजा मुहं को आ जाता है। जिला प्रषासन को टेम्पो वालों से कोई मतलब नहीं है। ट्राफिक पुलिस वालों का पैसा चाहिए किसकी जान जाएगी और किसकी बचेगी ये डीटीओ साहब तय करेंगे।


आज भी अधूरा है माउंटेन मैन का सपना
विकास को मोहताज है गेहलौर घाटी
गया से नारायण मिश्रा
बिहार सरकार चाहे लाख वादा करे फिर भी गेहलौर घाटी के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों की हालत में सुधार की गंुजाईष नहीं दीखती। कुछ यादें ऐसी होती हैं जो अतीत के गहवारे में ले जाती हैं। शायद गेहलौर घाटी अनाथ हो गया हो। गेहलौर घाटी की हालत बिलकुल वैसी ही हो गयी है जैसे किसी बच्चे के सर से बाप का साया उठ जाना। गांव बिलकुल वीरान हो गया है। ये लगता ही नहीं है कि कभी यहां माउंटेन मैन रहा करते थे। पत्रकारों के अपने दरवाजे पर पहंुचते ही बाबा के चहेरे पर खुषी झलकने लगती थी। वे उम्मीद करने लगते थे उनकी मेहनत पत्रकारों के कलम के द्वारा रंग लाएगी। बिलकुल उसी तरह सम्मान करते थे जैसे सबरी रामजी के लिए बैर चख-चख कर रखती थी। अपनी कुटिया में पत्रकारों को बैठाना और जो उनके वष में हो उसे खिलाकर ही विदा करना लेकिन शायद ये सारी बातें धुंधली हो गयी हैं। दषरथ बाबा भविष्य के गर्भ में समा चुके हैं, गेहलौर घाटी का कोई पुर्सानेहाल नहीं है। शहीदों के मजार पर हर बरस लगेंगे मेले वतन पर मरने वालों की बाकी यहीं निषां होगी ’’ आज बाबा की पहली पुण्यतिथि मनायी गयी, सरकारी अधिकारियों का भाषण और आष्वासन गांव वालों को मिला और सरकारी अधिकारी वापस लौट गए। बाबा का सपना कब और कैसे पूरा होगा ये बिहार सरकार जानती है या जिला प्रषासन। दषरथ बाबा के बिना आज भी गहलौर घाटी सुना-सुना सा लगा। बाबा एक छेनी और एक हथौड़ी के सहारे 20 वर्षों में पहाड़ का सीना चीरकर दो प्रखंडों को जोड़ने वाली सड़क का निर्माण किया था। इस कार्य में न किसी का श्रम लगा और न कोई आर्थिक सहायता मिली वरण इस सड़क के निर्माण होने के बाद इस जिले के वजीरगंज और अतरी प्रखंड की दूरी 80 किलोमीटर से घटकर 14 किलोमीटर हो गयी। 860 फीट लम्बा व 20 फीट चैड़ा सड़क का निर्माण हो गया। इस साहसिक कार्य के लिए 1999 में लिम्का बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में दषरथ मांझी का नाम दर्ज कर लिया गया। इससे प्रभावित होकर मुख्यमंत्री नीतीष कुमार ने दषरथ मांझी को एक दिन अपने कुर्सी पर बैठा दिया। उनका नाम पदम्श्री पुरस्कार के लिए अनुषंसित कर दिया गया था। दषरथ मांझी के अधूरे कार्यो को पूरा करने की सरकारी घोषणा कर दी गयी। आनन-फानन में दषरथ बाबा ने भी सरकार से मिली 5 एकड़ जमीन सरकार को लौटाते हुए उस जगह अस्पताल खोलने की इच्छा व्यक्त कर डाली। इस बीच दषरथ मांझी अस्वस्थ हुए उपचार के लिए राज्य सरकार ने दिल्ली एम्स हाॅस्पीटल भेजा गया। इसी अस्पताल में दषरथ मांझी ने अपनी जिन्दगी की आखरी सांस ली। मौत के एक वर्ष बीत जाने के बाद दिल्ली एम्स हाॅस्पीटल ने दषरथ मांझी के परिवार को एक पत्र भेजा है। जिसमें दषरथ मांझी के उपचार में आयी खर्च का ब्योरा भेजा गया। इस पत्र को लेकर तरह-तरह का कयास लगाया जाता रहा है। समझा जाता है कि पत्र से उत्पन्न भ्रम की स्थिति को दूर करने के उद्देष्य से राज्य सरकार के दो मंत्रियों ने इस गांव का दौरा किया है। डा. गीता प्रसाद निदेषक प्रमुख द्वारा स्थानीय आयुक्त को भेजे गये पत्र में कहा है कि स्वास्थ्य विभाग के संकल्प सं. 2363/ 14 दिनांक 12-02-08 1484/ 14 दिनांक 26-11-07 के प्रसंग में मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष के लिए गठित अधिकृत समिति की स्वीकृति के आधार दषरथ मांझी ग्राम-गहलौर, पो-ऐरु, जिला-गया के स्वयं की कैंसर रोग की एम्स नई दिल्ली अस्पताल में चिकित्सा में हुए व्यय का मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष रुपया 171018/ एक लाख एकहत्तर हजार 18 रुपये को विमुक्त किया जाता है। उक्त राषि जिस मद से आपके द्वारा कर्ज के रुप में ली गई थी उसका सामंजन उपरोक्त स्वीकृत राषि से कर ली जाये। आपके पत्र के नाम से निर्गत उक्त राषि का काॅस चेक संख्या ......... मुल्य रुप में सलंगन है। दषरथ मांझी के स्वयं की चिकित्सोपरान्त चिकित्सा प्रमाण पत्र सम्पूर्ण व्यय ब्यौरा के साथ अनुदान राषि की उपयोगिता का प्रमाण पत्र स्वास्थ्य विभाग पटना को निष्चिित रुप से उपलब्ध कराने का कष्ट करे। जिसे समीक्षा निदेषक प्रमुख स्वास्थ्य सेवाएं बिहार पटना प्रतिहस्ताक्षरित करेगें। बहरहाल आरोपुर गांव में मंगुरा नदी पर पुल निर्माण, पथ निर्माण और गहलौर घाटी में अस्पताल निर्माण कार्य में हाथ नहीं लगाया जा सका है। दषरथ मांझी के पुत्र और पुत्री विकलांग है उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है।





असीम संभावनाओं के बावजूद बांकेधाम का विकास ठप
षेरघाटी से राजेष कुमार/बांकेबाजार से कमल कुमार वर्मा
बांकेधाम में श्रावणी मेला इनदिनों बांकेधाम में जोर पकड़ चुका है और मेले की व्यवस्था के नाम पर कुछ भी ऐसा नहीं हुआ है जिससे यहां आने वाले दर्षनार्थियों को सहुलियतें मिल सके। सरकार चाहे तो बांकेधाम को बिहार का एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल जरूर बनवा सकती है। जिसकी यहां असीम संभावनाऐं हैं। मगध प्रमण्डल के मुख्यालय से पचास किलोमीटर दक्षिण-पष्चिम में अवस्थित बांकेबाजार की पहाड़ी। जिसे अब यहां की जनता बांकेधाम के नाम से पुकारती है। बांकेधाम धरती चप्पा-चप्पा ऐतिहासिक अवषेषों से भरा पड़ा है। प्रकृति की अनुपम छटाओं के बीच पर्यटन एवं पुरातत्व विभाग के उपेक्षा का षिकार है। यहां पर्यटन की असीम संभावनाएं है बांकेधाम में। यह पहाड़ी दो किलोमीटर लम्बी एवं एक किलोमीटर से अधिक चैड़ी है। जिसके पष्चिम कोर पर है मडावर नदी की दक्षिणी वाहिनी धारा प्रवाहित होती रहती है। इन पहाड़ी पर कई श्रृंखलायें है जिन पर मिले भग्नावषेषों एवं नवनिर्मित मंदिरों के आधार पर अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। पहाड़ी के पुरब दूसरी श्रृखंला पर भगवान आषुतोष षिव का भव्य नूतन मंदिर बन चुका है। जहां प्रारंभ में खुदाई में स्लेटी हरि तिमारिये पत्थर का गणेष की द्विमुणी और पार्वती की प्रतिमाएं मिली थी। षिवलिंग का एक प्रस्तर खण्ड से ढका था जिसे हटाने पर नीली आभालिए षिवलिंग अर्धे के साथ निकले। तालाब की खुदाई से एक सिक्का भी प्राप्त हुआ है जिसके एक पहलु पर हनुमानजी का चित्र तो दूसरे पहलु पर श्री राम परिवार लक्ष्मण के साथ है। जिसपर 47340 हनुमान सनू लिखा अष्टधातु के मोटा सिक्का है। जिसे मध्य बिहार ग्रामीण बैंक में सुरक्षित रखा गया है। इस पहाड़ के आस-पास एक सौ एक मंदिर के भी प्रमाण मिलते है और इस पर्वत पर अनेक गुफाएं है जो ऋषि मुनियों के तपोस्थली माना जाता है। जहां से सभी लोगों को देखा जा सकता है, लेकिन उस पर बैठे जगह पर कोई नहीं देख सकता है। पहली पहाड़ी की श्रृखंला पर सूर्यपुरी में सूर्य की तीन मग्न प्रतिमाएं अवस्थित है जो काले पत्थर की बनी सप्त अष्वरथ सारथी के साथ भगवान सूर्य की मूर्ति दिखाई गई है। जिसके दोनों ओर पत्निया संज्ञा और छाया है। एक ओर तालाब के अवषेष निकले है जिसे श्रमदान से खुदाई कर बनाया गया है। सूर्यपुरी के पुरब सपाट चैरस स्थल पर इन के टुकड़े ढ़ेर के रुप में बिखरे पड़े है। इसी के सटे मंदिर के बगल में मंडप बना हुआ है। प्रत्येक वर्ष यहां दान एवं चढ़ावा से लाखों रुपया का आय होता है जिसमें षिव मंदिर, सूर्यमंदिर एवं विषला धर्मषाला का निर्माण कराया गया है। यहां श्रावणी मेला एक माह तक लगता है जिसे मंदिर समिति के अनुवाई में खेल तमाषा एवं मीना बाजार लगाया जाता है। इसके आय से मंदिर के आवष्यकता अनुसार कार्य को कराया जाता है। यद्यपि बांकेधाम को पर्यटन विभाग से विकसित किया जाये तो यह एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल बन सकता है।


गोह में कैसे ढह गया लाल झंडे का गढ़
भाकपा में रामशरण जैसे नेताओं का अभाव
दाउदनगर (औरंगाबाद) से आलोक कुमार
1977 ई0 से गोह विधानसभा भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का गढ़ माना जाता था। आज इसका परिदृश्य ऐसा हो गया है कि लगता है कि अगर भाकपा अपने बूते चुनाव लड़ना चाहे तो शायद जमानत भी बचाना मुश्किल हो जायेगा। आखिर क्यों? जिस समय 1977 में इस विधानसभा क्षेत्र से कम्युनिष्ट रामशरण यादव ने चुनाव लड़ा था उस समय पार्टी का संगठन काफी मजबूत तो था ही रामशरण यादव का व्यक्तित्व भी ऐसा था कि न चाहकर भी जो लोग उन्हंे वोट दे दिया करते थे वहीं कम्युनिष्ट कहीं यादव की जीत का मूल फार्मूला था। जातीय आधार पार्टी का संगठन पिछड़ी, अति पिछड़ी एवं दलितों का समर्थन। इतने लोगों के वोटों पर कम्युनिष्ट यादव को जबर्दस्त पकड़ थी। यही कारण था कि दूसरे उम्मीदवार हाथ-पांव मारने की कोशिश तो करते थे, परंतु उन्हंे सफलता नहीं मिल पाती थी। उनकी जीत का प्रमुख आधार जातीय आधार था। यादव जातीयों ने उन्हें अपना नेता मान लिया था। ऐसे भी इस क्षेत्र में सबसे अधिक वोट यादव जाति का ही है। कम्युनिष्ट, यादव के बाद जो भी यादव जाति से उम्मीदवार आये उन्हें यहां के यादवों ने पचा नहीं सका। दूसरे दो-तीन उम्मीदवार होने की वजह से आपस में वोटों का विखराव होता रहा और तीसरा यह कि कम्युनिष्ट रामशरण यादव को अन्य जितनी जातियों का समर्थन मिलते रहा था, नहीं मिला। परिणामस्वरूप पराजय का ही मुंह हमेशा देखना पड़ा। ऐसे भी कम्युनिष्ट रामशरण यादव जब-जब चुनाव लड़े थे तो उनके साथ भुमिहार जाति के भी उम्मीदवार चुनाव लड़ते रहे थे। इस बीच राजपूत जातियों ने अपना खेल खेलना नहीं छोड़ा था। राजपूत जाति भूमिहार को वोट देना नहीं चाहते थे। इसलिए, वह उस वोट का कम्युनिष्ट रामशरण यादव को मिल जाया करता था और इनकी जीत पक्की हो जाया करती थी। इसी बीच 1985 ई0 में भूमिहार जाति से एक लोकप्रिय नेता डी0 के0 शर्मा चुनाव लड़ने आये थे। उनमें लोकप्रियता का अजीब जादू था। मिलने जूलने और लोगों को प्रभावित करने की अजीब तरकीब थी। उस दौरान शर्मा को अन्य तमाम जातियों का वोट तो मिला ही था कुशवाहा और राजपूत जातियों का भी वोट मिला था। फलस्वरूप, चुनाव जितने में सफल हो गये थे। फिर दूसरी बार वे चुनाव हार गये थे। परन्तु तीसरी बार उनके द्वारा किये गये विकास के नाम पर फिर उनकी जीत हुयी थी। परन्तु इस बार लोगों की उम्मीद पर पानी फिर गया। जब 2005 मंें चुनाव हुआ तो गोह विधानसभा क्षेत्र से लोजपा के टिकट पर रंजीत कुशवाहा को चुनाव लड़ जाने से और दो-दो यादव जातियों का उम्मीदवार बनने का सीधा लाभ जदयू प्रत्याशी डा0 रणविजय कुमार को मिला था और वे चुनाव जीत गये। इस दरम्यान न कम्युनिष्ट रामशरण यादव इस दुनिया में रहे न हीं डी0 के शर्मा। कई टर्म तक कम्युनिष्ट रामशरण यादव को इस विधानसभा क्षेत्र से प्रतिनिधित्व करते रहने से इससे भाकपा का गढ़ माना जाता था। जबकि, काॅ0 रामशरण यादव पार्टी गत आधार पर विधायक नहीं बने थे। यह सबकुछ उनके व्यक्तिगत व्यक्तित्व का परिणाम था। वे ऐसे व्यक्ति थे जो गरीब-अमीर सभी के दिलों पर राज करते थे। हां इतना जरूर है कि वे जबतक इस क्षेत्र का विधायक रहे तबतक भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का जनाधार सुदृढ़ जरूर रहा था। पार्टी में अनुशासन तो था ही पार्टी काफी सक्रिय थी। कम्युनिष्ट रामशरण यादव को इस दुनिया से कूच करते ही भाकपा का जनाधार भी कूच कर गया। अब पार्टी में वैसी सक्रियता भी नहीं रही। न रामशरण यादव की तरह व्यक्तित्व वाले पार्टी में नेता ही हैं जो अपनी लोकप्रियता से पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलितों और राजपूतों के वोट को प्रभावित कर सकें। वैसे तो भाकपा में कई नेताओं ने कम्युनिष्ट रामशरण यादव बनने का स्वांग रचा। परन्तु उनके व्यक्तित्व को समाहित नहीं कर सका। आज पार्टी का जनाधार भी काफी खिसक चुका है। पार्टी में पूर्व की तरह अनुशासन भी नहीं है। इससे नहीं लगता है कि आने वाले दिनों में पुनः गोह विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का सुनहला अवसर भाकपा को मिल सकती है। अगर कोई सोंच रहा होगा तो वह दिवास्वपन्न की तरह ही होगा।



हाय रे भगवान इंद्र तुम्हे दया क्यों नहीं आती !
जहानाबाद में अकाल से तबाही शुरू
इंद्र को मनाने के लिए लड़कियों ने खेतों में नंगा हो चलाया हल
पटना से मंगलानंद/जहानाबाद से संजय कुमार
भगवान इंद्र को मनाने के लिए किसानों के पास जितना जतन था सब करके थक चुके हैं। भगवान इंद्र को मनाने के लिए यहां तक हुआ कि नाबालिग लड़कियों ने खेतों में नंगे होकर हल तक चलाया परंतु भगवान इंद्र हैं कि उन्हें दया आती नहीं। रात के 12 बजे जब सारा गांव सो रहा था तो गया-जहानाबाद जिले के कई गांवों में गांव की लड़कियां खेतों में नंगी हो हल चला रही थी। बिहार की पुरानी परंपराओं में यह भी एक बड़ी परंपरा रही है। पुरानी पंरपराओं के अनुसार गांवों में हर प्रकार के अनुष्ठान हुए परंतु नतीजा कुछ भी नहीं निकला। भगवान इंद्र ने भी सारी परीक्षाऐं ली परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। कम बारिष ने गया-जहानाबाद के किसानों के चेहरे पर उदासी ला दी है। किसानों को रात में न चैन है न दिन में। हर समय किसान बादलों की ओर टकटकी लगाए रूंआसे हो भगवान इंद्र को कोस रहे हैं। कम बारिष के कारण किसानों को इस बार भीषण तबाही झेलनी पड़ रही है। पानी का भूमिगत जलस्तर काफी नीचे रहने के कारण डीजल सेट भी पानी खींचने में नाकामयाब साबित हो रहे है। धान के बिचड़े बचाते बचाते किसान भी मानों झुलस से गए हैं। किसान डीजल चालित पंप सेटों का भी सहारा ले रहे है परंतु आसमान से पानी नहीं होने के कारण अब तक धान की रोपनी शुरू भी नहीं हो सकी है। जहानाबाद जिले के कृषि विभाग के अधिकारियों का भी मानना है िकइस साल जिले में भीषण अकाल की संभावना है। सावन माह भी खत्म होने को आ गया है ऐसे हालात में धान की रोपनी नहीं होने से अब धान की उपज पर पूरी तरह ग्रहण लग सा गया है। जेठुआ और भदई फसलों की रोपाई का काम पानी के बिना पूरा नहीं हो सका है। मानसून की मार ने जहानाबाद में सबको रूला दिया है। पूरे इलाके में बेरोजगारी की मार लोगों को झेलने पड़ रहे हैं। बेरोजगार युवक और खेतीहर मजदूर दूसरे राज्यों के पलायन में लग गए हैं। एक गैर सरकारी संस्था द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार जहानाबाद और अरवल जिले में मात्र एक फीसदी ही धान की रोपायी हो सकी है। बाकी केे 99 प्रतिषत भूभाग अभी परती पड़े हैं। आद्र्रा नक्षत्र में लगाए गए बिचड़े तो पूरी तरह तैयार होकर सूख चुके है। जहानाबाद जिले के 95 प्रतिषत आहर, तालाब आदि जलाषयों में पानी देखने को भी नहीं मिल रहा है। भूर्गभीय जल श्रोतों के इस साल काफी नीचे चले जाने के आसार है। बिहार की मौजूदा हालत यह हो गयी है कि कही बाढ़ से लोग मर रहे हैं तो कही चुल्लु भर पानी नहीं है लोगों के लिए।

सुषासन का मधुषाला
स्कूलों और मंदिरों के बगल में चलते हैं मदिरालय
पटना से मंगलानंद/धर्मेन्द्र कुमार
ये अलग बात है साकी कि मुझे होष नहीं है होष इतना है कि सुषासन मदहोष नहीं है। हमने इतना ख्याल रखा है स्कूल और मंदिरों के बगल में मधुषाला का लाइसेंस आम कर दिया है। इसलिए कि ये बच्चे ही और धर्मगुरू ही देष की रीढ़ हैं। हम लाए थे तुफान से कष्ती निकाल के इस देष को रखना मेरे बच्चों संभाल के। बिहार सरकार का नषा इतना बढ़ गया है कि वो सर चढ़ कर बोल रहा है। इतना होष भी नहीं है कहां स्कूल है और कहां मंदिर है। आप को हर कदम कोई न कोई नाली में गिरा हुआ मिल जाय तो समझ लिजीए आप बिहार में हैं। जहरीली षराब से गुजरात में मौत की लोमहर्षक घटना को हमने देखा और सुना। देष के अन्य जगहो में कुछ इसी तरह की घटनाएं दोहरायी जा रही है । इसके बावजूद मौत का सामान बेचने की नीति को बढावा देने की प्रवृति रूक नहीं रही है। विकास पुरूष नीतीष कुमार बिहार के निर्माण के बजाय पूरे बिहार में षराबखोरी को बढावा देने बाली एैसी नीति (आबकारी नीति-.2007) बनायी है जिससे कृषि प्रधान बिहार में कृषि क्रांति , ष्वेत क्रांति के बजाय मदिरा कं्राति को बढावा मिल रही है। लोग हैरत में है कि कृषि एवं पषुपालन को बढावा देने के वायदे के साथ बनी नीतीष सरकार पूरे बिहार के गांव-गांव में ष्षराबखोरी को बढावा देने बाली नीति पर क्यों कदम आगे बढा रही है ? आखिर सरकार उसी अंतिम व्यक्ति का आर्थिक नुकसान नहीं कर रही है जो किसी तरह नरेगा से सौ-पचास रूपये कमाकर घर लौटता है, लेकिन घर पहंुचने के पहले वह देषी ष्षराब से अपने गले को तर कर लेता है । बीबी -बच्चों के लिए रोजमर्रे की चीजों के प्रबंध करने बजाय वह खाली हाथ घर मदहोष होकर लौटता है। गांधी यह मानते थे जो षराब पीते है उनके परिवार सदा अभाव में जीते है। षराबखोरी से उपजी आर्थिक बदहाली ने ही गांधी को ष्षराबबन्दी हेतु प्रेरित किया था। बुद्व, महावीर की जन्मस्थली और गांधी, बिनोबा एवं जयप्रकाष नारायण की कर्मस्थली बिहार में हिंसा को और हवा देने की घटना हादसे की तरह ही है। हिंसा के लिए बदनाम रही बिहार की छवि बदलने के बजाय प्रदेष सरकार ने हिंसा एवं अपराध को बढावा देने बाली एैसी आबकारी नीति बनाई है जिसके तहत सभी प्रकार की खुदरा षराब दुकानों की बंदोबस्ती अनिवार्य रूप से लाटरी द्वारा की जा रही है। इससे आम व्यवसाइयों के साथ साथ बेरोजगारों को भी इस व्यवसाय से जुडने का मौका मिला है। इस दिषा में सरकारी दावों की माने तो षराब व्यापार के एकाधिकार की समाप्ति होने के साथ ही खुदरा षराब के मूल्य पर नियंत्रण होगी। सरकार ने पंचायतों के लिए लक्ष्य निर्धारित किया है कि पहले 5500 रूपये के बजाय 8500 रूपये तक के षराब बेचे। लोगों को आकषर््िात करने के लिए सेल लगाये जा रहे है।वीडियो का इंस्तेमाल किया जा रहा है । सरकार की इस नीति की आढ में गांव -गांव में अवैध षराब निर्माण एवं बेचने का अभियान सा चल पडा है। हिंसा और अपराध के लिए बदनाम बिहार में विकास और सुषासन के नारों के साथ बनी नीतीष सरकार ने पिछले तीन वर्षों में अपराधियों और बाहुबलियों को सीखचों के अंदर भेजकर यह साबित करने का प्रयास किया कि सूबे में सुसासन स्थापित करने के प्रति वे प्रतिबद्व हैं मगर रेवेन्यू और रोजगार सृजन के नाम पर नीतीष सरकार के इस कवायद ने विरोधाभास की स्थिति पैदा कर दी है। प्रदेष के गांवो में बेतहाषा बढ रही षराब के दुकानों ने षराब पीने बालों की नयी फौज तैयार हो रही है । मद्यनिपेध के विरोध में सक्रिय संगठनों का कहना है कि इससे सर्वाधिक महिला एवं बच्चो के उपर चैतरफा दुप्प्रभाव पड रहा है । बिहार के कई इलाको में पूर्व से चल रहे वैध-अवैध षराब निर्माण के दौरान यह देखा गया है कि ष्षराबखोरी के प्रचलन से सबसे अधिक महिलाओं को जूझना पडता है। कई जगहों पर नये दुकान खोले जाने के खिलाफ नागरिकों ने विरोध प्रदर्षित भी किया है। पिछले कुछ वर्षों से चल रहे अवैध कच्ची षराब निर्माण का कारोबार आज स्थानीय लोगों के लिए बडी समस्या है। कई बार पुलिसिया कार्रबाई भी हुई किन्तु ष्षराब माफिया के सषक्त नेटवर्क ने पुलिस की कार्रवाई को प्रभावहीन कर दिया। ष्षराबनिर्माण के अवैध निर्माण से गांवों के लोग त्रस्त रहे है। पिछले कुछ वर्पो में इन गांवों में षराब के अडडों पर हत्या हो चुकी है ।पुलिस के अनुसार हत्या की वजह पियक्कडों की आपसी कहासुनी तथा षराब निर्माण में लगे बाहुबलियों के बीच वर्चस्व की लडाई रही है। समय-समय पर ग्रामीणों का प्रतिरोध भी होता रहा ह,ै लेकिन अवैध षराबनिर्माण के कारोबार ने पूरे इलाके का अपनी चपेट मे ले लिया। ष्षराब के अड्डों या ष्षराब के दुकानों से होकर महिलाओं या स्कूल की छात्राओं का गुजरना दूभर हो गया है। इन गांवों की महिलाएं आज भी अपने खेतो, खलिहानों, टोलो में खुद को असुरक्षित मानती है। बीते कुछ वर्पों में पूर्व से चल रहे गांवों के करीब पचहत्तर प्रतिषत घरों में पियक्कडो की फौज तैयार हो गयी है जिनके उपर षाम ढलते ही नषे का षुरूर चढ जाता है। रात के अंधेरों में महिलाओं के चीखने- चिल्लाने की आवाजें सुनाई देना आम दिनचर्या का हिस्सा हो गया है। जाहिर है षराबियों का कहर सबसे पहले अपनी पत्नियों के उपर ही टूटता है। ष्षराब के नषे में पति, पत्नी को पीटता है । उसे होष ही नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है। कई बार नषे की हालत में ही दुर्घटना हो जाती है और परिवार बिखर जाता है। इससे मासूम बच्चों के मानसिक दषा का अनुमान भी लगाया जा सकता है।सबसे दुखद बात यह है कि षराब निर्माण में नन्हे गरीब बच्चों को भी लगाया जाता है। कच्ची ष्षराब के अडृडों का जायजा लेने पर अजीबोगरीब दृष्य मिलता है । बजबजाती गंदगी, गंदगी के बीच खेलते बच्चे, भभकती भट्ठियां, षराब निर्माण में लगी महिला एव बच्चे। पास ही पियक्कडो का हुजूम जो बात -बात पर बजबजाती गंदगी से भी अधिक भद्दी गालियां बक रहा होता है। जाहिर है महिला हिंसा के लिए बदनाम बिहार में वर्तमान आबकारी नीति से हिंसा को बढावा ही मिलेगा। है। एन एफ एच एस- 3 के आंकडों के अनुसार राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों मेें 59 प्रतिषत पुरूष अपनी पत्नी को पीटते है। एक ओर नीतीष सरकार महिलाओं के सषक्तिकरण के पचास प्रतिषत आरक्षण भी देती है तो दूसरी ओर इन महिलाओं के मानमर्दन के लिए नषाखोरी को भी बढावा दे रही है। प्रदेष में युवाओं की चालीस प्रतिषत आबादी हैं। आंकडों के हिसाब से युवाओं कीे 4 करोड संख्या है। प्रदेष सरकार के विचाराधीन युवानीति के अभाव मे ंप्रदेष के सर्वांगिण विकास में इनकी भुमिका सुनिष्चित नहीं हो पा रही है एैसे में इन युवाओं में नषे की लत से कम-से-कम समाज का निर्माण तो नहीं ही किया जा सकता। दरअसल तमाम राज्य सरकारें आबकारी नीति घोषित करती है। ष्षराब राज्यों की कमाई का प्रमुख जरिया होती है। हर साल राज्य आबकारी लक्ष्य बढाते हैं। बाकायदा घोषित आबकारी नीति में ं पियक्कडों और ठेकेदारों का ख्याल रखा जाता है। गत वर्ष सरकारी राजस्व में वृद्वि हुई है। सरकारी आंकडों के अनुसार यह वृद्वि पिछले वित्तीय वर्प के अपेक्षाकृत 31.37 प्रतिषत अधिक है यानि बिहार सरकार ने इस वित्तीय वर्प में षराब निर्माण से 417.95 करोड की राजस्व प्राप्त की है। क्या महज राजस्व के लिए मानव संसाधान की इतनी बडे हिस्से के भविष्य के साथ खिलवाड उचित है ?


‘‘ लुकिंग लंदन गोईंग टोक्यो ’’
गया से नारायण मिश्रा
‘‘ जरा हौले हौले चलांे मेरे साजना हम भी पीछे हैं तुम्हारे ’’ आड़ी तिरछी रफ्तारों के मालिक इनदिनों टिकारी-गया के टेम्पो आपरेटर हो गए हैं। आपको बैठते ही ऐसा महसूस होगा ‘‘ लुकिंग लंदन गोईंग टोक्यो’’ आपको महसूस होने लगेगा कि शायद आप अपनी मंजिल के बगैर कही और जा रहे हैं। शायद यह आखिरी मंजिल भी हो सकती है। अधिकांष टेम्पो चालकों के पास ड्राईविंग लाइसेंस हैं ही नहीं। जिनकी उम्र 18 साल से नीचे हैं। सुबह से लेकर शाम तक छोटे कस्बों से लेकर शहर तक तेज रफ्तार में गाड़ी चलती है। गाड़ी रूकी पैसेंजर सवार हुआ या नहीं ट्रेन की तरह कभी गाड़ी 70 कभी 80 कभी बाऐं कभी दाऐ बैठने वालों का कलेजा मुहं को आ जाता है। जिला प्रषासन को टेम्पो वालों से कोई मतलब नहीं है। ट्राफिक पुलिस वालों का पैसा चाहिए किसकी जान जाएगी और किसकी बचेगी ये डीटीओ साहब तय करेंगे।


आज भी अधूरा है माउंटेन मैन का सपना
विकास को मोहताज है गेहलौर घाटी
गया से नारायण मिश्रा
बिहार सरकार चाहे लाख वादा करे फिर भी गेहलौर घाटी के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों की हालत में सुधार की गंुजाईष नहीं दीखती। कुछ यादें ऐसी होती हैं जो अतीत के गहवारे में ले जाती हैं। शायद गेहलौर घाटी अनाथ हो गया हो। गेहलौर घाटी की हालत बिलकुल वैसी ही हो गयी है जैसे किसी बच्चे के सर से बाप का साया उठ जाना। गांव बिलकुल वीरान हो गया है। ये लगता ही नहीं है कि कभी यहां माउंटेन मैन रहा करते थे। पत्रकारों के अपने दरवाजे पर पहंुचते ही बाबा के चहेरे पर खुषी झलकने लगती थी। वे उम्मीद करने लगते थे उनकी मेहनत पत्रकारों के कलम के द्वारा रंग लाएगी। बिलकुल उसी तरह सम्मान करते थे जैसे सबरी रामजी के लिए बैर चख-चख कर रखती थी। अपनी कुटिया में पत्रकारों को बैठाना और जो उनके वष में हो उसे खिलाकर ही विदा करना लेकिन शायद ये सारी बातें धुंधली हो गयी हैं। दषरथ बाबा भविष्य के गर्भ में समा चुके हैं, गेहलौर घाटी का कोई पुर्सानेहाल नहीं है। शहीदों के मजार पर हर बरस लगेंगे मेले वतन पर मरने वालों की बाकी यहीं निषां होगी ’’ आज बाबा की पहली पुण्यतिथि मनायी गयी, सरकारी अधिकारियों का भाषण और आष्वासन गांव वालों को मिला और सरकारी अधिकारी वापस लौट गए। बाबा का सपना कब और कैसे पूरा होगा ये बिहार सरकार जानती है या जिला प्रषासन। दषरथ बाबा के बिना आज भी गहलौर घाटी सुना-सुना सा लगा। बाबा एक छेनी और एक हथौड़ी के सहारे 20 वर्षों में पहाड़ का सीना चीरकर दो प्रखंडों को जोड़ने वाली सड़क का निर्माण किया था। इस कार्य में न किसी का श्रम लगा और न कोई आर्थिक सहायता मिली वरण इस सड़क के निर्माण होने के बाद इस जिले के वजीरगंज और अतरी प्रखंड की दूरी 80 किलोमीटर से घटकर 14 किलोमीटर हो गयी। 860 फीट लम्बा व 20 फीट चैड़ा सड़क का निर्माण हो गया। इस साहसिक कार्य के लिए 1999 में लिम्का बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में दषरथ मांझी का नाम दर्ज कर लिया गया। इससे प्रभावित होकर मुख्यमंत्री नीतीष कुमार ने दषरथ मांझी को एक दिन अपने कुर्सी पर बैठा दिया। उनका नाम पदम्श्री पुरस्कार के लिए अनुषंसित कर दिया गया था। दषरथ मांझी के अधूरे कार्यो को पूरा करने की सरकारी घोषणा कर दी गयी। आनन-फानन में दषरथ बाबा ने भी सरकार से मिली 5 एकड़ जमीन सरकार को लौटाते हुए उस जगह अस्पताल खोलने की इच्छा व्यक्त कर डाली। इस बीच दषरथ मांझी अस्वस्थ हुए उपचार के लिए राज्य सरकार ने दिल्ली एम्स हाॅस्पीटल भेजा गया। इसी अस्पताल में दषरथ मांझी ने अपनी जिन्दगी की आखरी सांस ली। मौत के एक वर्ष बीत जाने के बाद दिल्ली एम्स हाॅस्पीटल ने दषरथ मांझी के परिवार को एक पत्र भेजा है। जिसमें दषरथ मांझी के उपचार में आयी खर्च का ब्योरा भेजा गया। इस पत्र को लेकर तरह-तरह का कयास लगाया जाता रहा है। समझा जाता है कि पत्र से उत्पन्न भ्रम की स्थिति को दूर करने के उद्देष्य से राज्य सरकार के दो मंत्रियों ने इस गांव का दौरा किया है। डा. गीता प्रसाद निदेषक प्रमुख द्वारा स्थानीय आयुक्त को भेजे गये पत्र में कहा है कि स्वास्थ्य विभाग के संकल्प सं. 2363/ 14 दिनांक 12-02-08 1484/ 14 दिनांक 26-11-07 के प्रसंग में मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष के लिए गठित अधिकृत समिति की स्वीकृति के आधार दषरथ मांझी ग्राम-गहलौर, पो-ऐरु, जिला-गया के स्वयं की कैंसर रोग की एम्स नई दिल्ली अस्पताल में चिकित्सा में हुए व्यय का मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष रुपया 171018/ एक लाख एकहत्तर हजार 18 रुपये को विमुक्त किया जाता है। उक्त राषि जिस मद से आपके द्वारा कर्ज के रुप में ली गई थी उसका सामंजन उपरोक्त स्वीकृत राषि से कर ली जाये। आपके पत्र के नाम से निर्गत उक्त राषि का काॅस चेक संख्या ......... मुल्य रुप में सलंगन है। दषरथ मांझी के स्वयं की चिकित्सोपरान्त चिकित्सा प्रमाण पत्र सम्पूर्ण व्यय ब्यौरा के साथ अनुदान राषि की उपयोगिता का प्रमाण पत्र स्वास्थ्य विभाग पटना को निष्चिित रुप से उपलब्ध कराने का कष्ट करे। जिसे समीक्षा निदेषक प्रमुख स्वास्थ्य सेवाएं बिहार पटना प्रतिहस्ताक्षरित करेगें। बहरहाल आरोपुर गांव में मंगुरा नदी पर पुल निर्माण, पथ निर्माण और गहलौर घाटी में अस्पताल निर्माण कार्य में हाथ नहीं लगाया जा सका है। दषरथ मांझी के पुत्र और पुत्री विकलांग है उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है।





असीम संभावनाओं के बावजूद बांकेधाम का विकास ठप
षेरघाटी से राजेष कुमार/बांकेबाजार से कमल कुमार वर्मा
बांकेधाम में श्रावणी मेला इनदिनों बांकेधाम में जोर पकड़ चुका है और मेले की व्यवस्था के नाम पर कुछ भी ऐसा नहीं हुआ है जिससे यहां आने वाले दर्षनार्थियों को सहुलियतें मिल सके। सरकार चाहे तो बांकेधाम को बिहार का एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल जरूर बनवा सकती है। जिसकी यहां असीम संभावनाऐं हैं। मगध प्रमण्डल के मुख्यालय से पचास किलोमीटर दक्षिण-पष्चिम में अवस्थित बांकेबाजार की पहाड़ी। जिसे अब यहां की जनता बांकेधाम के नाम से पुकारती है। बांकेधाम धरती चप्पा-चप्पा ऐतिहासिक अवषेषों से भरा पड़ा है। प्रकृति की अनुपम छटाओं के बीच पर्यटन एवं पुरातत्व विभाग के उपेक्षा का षिकार है। यहां पर्यटन की असीम संभावनाएं है बांकेधाम में। यह पहाड़ी दो किलोमीटर लम्बी एवं एक किलोमीटर से अधिक चैड़ी है। जिसके पष्चिम कोर पर है मडावर नदी की दक्षिणी वाहिनी धारा प्रवाहित होती रहती है। इन पहाड़ी पर कई श्रृंखलायें है जिन पर मिले भग्नावषेषों एवं नवनिर्मित मंदिरों के आधार पर अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। पहाड़ी के पुरब दूसरी श्रृखंला पर भगवान आषुतोष षिव का भव्य नूतन मंदिर बन चुका है। जहां प्रारंभ में खुदाई में स्लेटी हरि तिमारिये पत्थर का गणेष की द्विमुणी और पार्वती की प्रतिमाएं मिली थी। षिवलिंग का एक प्रस्तर खण्ड से ढका था जिसे हटाने पर नीली आभालिए षिवलिंग अर्धे के साथ निकले। तालाब की खुदाई से एक सिक्का भी प्राप्त हुआ है जिसके एक पहलु पर हनुमानजी का चित्र तो दूसरे पहलु पर श्री राम परिवार लक्ष्मण के साथ है। जिसपर 47340 हनुमान सनू लिखा अष्टधातु के मोटा सिक्का है। जिसे मध्य बिहार ग्रामीण बैंक में सुरक्षित रखा गया है। इस पहाड़ के आस-पास एक सौ एक मंदिर के भी प्रमाण मिलते है और इस पर्वत पर अनेक गुफाएं है जो ऋषि मुनियों के तपोस्थली माना जाता है। जहां से सभी लोगों को देखा जा सकता है, लेकिन उस पर बैठे जगह पर कोई नहीं देख सकता है। पहली पहाड़ी की श्रृखंला पर सूर्यपुरी में सूर्य की तीन मग्न प्रतिमाएं अवस्थित है जो काले पत्थर की बनी सप्त अष्वरथ सारथी के साथ भगवान सूर्य की मूर्ति दिखाई गई है। जिसके दोनों ओर पत्निया संज्ञा और छाया है। एक ओर तालाब के अवषेष निकले है जिसे श्रमदान से खुदाई कर बनाया गया है। सूर्यपुरी के पुरब सपाट चैरस स्थल पर इन के टुकड़े ढ़ेर के रुप में बिखरे पड़े है। इसी के सटे मंदिर के बगल में मंडप बना हुआ है। प्रत्येक वर्ष यहां दान एवं चढ़ावा से लाखों रुपया का आय होता है जिसमें षिव मंदिर, सूर्यमंदिर एवं विषला धर्मषाला का निर्माण कराया गया है। यहां श्रावणी मेला एक माह तक लगता है जिसे मंदिर समिति के अनुवाई में खेल तमाषा एवं मीना बाजार लगाया जाता है। इसके आय से मंदिर के आवष्यकता अनुसार कार्य को कराया जाता है। यद्यपि बांकेधाम को पर्यटन विभाग से विकसित किया जाये तो यह एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल बन सकता है।


गोह में कैसे ढह गया लाल झंडे का गढ़
भाकपा में रामशरण जैसे नेताओं का अभाव
दाउदनगर (औरंगाबाद) से आलोक कुमार
1977 ई0 से गोह विधानसभा भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का गढ़ माना जाता था। आज इसका परिदृश्य ऐसा हो गया है कि लगता है कि अगर भाकपा अपने बूते चुनाव लड़ना चाहे तो शायद जमानत भी बचाना मुश्किल हो जायेगा। आखिर क्यों? जिस समय 1977 में इस विधानसभा क्षेत्र से कम्युनिष्ट रामशरण यादव ने चुनाव लड़ा था उस समय पार्टी का संगठन काफी मजबूत तो था ही रामशरण यादव का व्यक्तित्व भी ऐसा था कि न चाहकर भी जो लोग उन्हंे वोट दे दिया करते थे वहीं कम्युनिष्ट कहीं यादव की जीत का मूल फार्मूला था। जातीय आधार पार्टी का संगठन पिछड़ी, अति पिछड़ी एवं दलितों का समर्थन। इतने लोगों के वोटों पर कम्युनिष्ट यादव को जबर्दस्त पकड़ थी। यही कारण था कि दूसरे उम्मीदवार हाथ-पांव मारने की कोशिश तो करते थे, परंतु उन्हंे सफलता नहीं मिल पाती थी। उनकी जीत का प्रमुख आधार जातीय आधार था। यादव जातीयों ने उन्हें अपना नेता मान लिया था। ऐसे भी इस क्षेत्र में सबसे अधिक वोट यादव जाति का ही है। कम्युनिष्ट, यादव के बाद जो भी यादव जाति से उम्मीदवार आये उन्हें यहां के यादवों ने पचा नहीं सका। दूसरे दो-तीन उम्मीदवार होने की वजह से आपस में वोटों का विखराव होता रहा और तीसरा यह कि कम्युनिष्ट रामशरण यादव को अन्य जितनी जातियों का समर्थन मिलते रहा था, नहीं मिला। परिणामस्वरूप पराजय का ही मुंह हमेशा देखना पड़ा। ऐसे भी कम्युनिष्ट रामशरण यादव जब-जब चुनाव लड़े थे तो उनके साथ भुमिहार जाति के भी उम्मीदवार चुनाव लड़ते रहे थे। इस बीच राजपूत जातियों ने अपना खेल खेलना नहीं छोड़ा था। राजपूत जाति भूमिहार को वोट देना नहीं चाहते थे। इसलिए, वह उस वोट का कम्युनिष्ट रामशरण यादव को मिल जाया करता था और इनकी जीत पक्की हो जाया करती थी। इसी बीच 1985 ई0 में भूमिहार जाति से एक लोकप्रिय नेता डी0 के0 शर्मा चुनाव लड़ने आये थे। उनमें लोकप्रियता का अजीब जादू था। मिलने जूलने और लोगों को प्रभावित करने की अजीब तरकीब थी। उस दौरान शर्मा को अन्य तमाम जातियों का वोट तो मिला ही था कुशवाहा और राजपूत जातियों का भी वोट मिला था। फलस्वरूप, चुनाव जितने में सफल हो गये थे। फिर दूसरी बार वे चुनाव हार गये थे। परन्तु तीसरी बार उनके द्वारा किये गये विकास के नाम पर फिर उनकी जीत हुयी थी। परन्तु इस बार लोगों की उम्मीद पर पानी फिर गया। जब 2005 मंें चुनाव हुआ तो गोह विधानसभा क्षेत्र से लोजपा के टिकट पर रंजीत कुशवाहा को चुनाव लड़ जाने से और दो-दो यादव जातियों का उम्मीदवार बनने का सीधा लाभ जदयू प्रत्याशी डा0 रणविजय कुमार को मिला था और वे चुनाव जीत गये। इस दरम्यान न कम्युनिष्ट रामशरण यादव इस दुनिया में रहे न हीं डी0 के शर्मा। कई टर्म तक कम्युनिष्ट रामशरण यादव को इस विधानसभा क्षेत्र से प्रतिनिधित्व करते रहने से इससे भाकपा का गढ़ माना जाता था। जबकि, काॅ0 रामशरण यादव पार्टी गत आधार पर विधायक नहीं बने थे। यह सबकुछ उनके व्यक्तिगत व्यक्तित्व का परिणाम था। वे ऐसे व्यक्ति थे जो गरीब-अमीर सभी के दिलों पर राज करते थे। हां इतना जरूर है कि वे जबतक इस क्षेत्र का विधायक रहे तबतक भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का जनाधार सुदृढ़ जरूर रहा था। पार्टी में अनुशासन तो था ही पार्टी काफी सक्रिय थी। कम्युनिष्ट रामशरण यादव को इस दुनिया से कूच करते ही भाकपा का जनाधार भी कूच कर गया। अब पार्टी में वैसी सक्रियता भी नहीं रही। न रामशरण यादव की तरह व्यक्तित्व वाले पार्टी में नेता ही हैं जो अपनी लोकप्रियता से पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलितों और राजपूतों के वोट को प्रभावित कर सकें। वैसे तो भाकपा में कई नेताओं ने कम्युनिष्ट रामशरण यादव बनने का स्वांग रचा। परन्तु उनके व्यक्तित्व को समाहित नहीं कर सका। आज पार्टी का जनाधार भी काफी खिसक चुका है। पार्टी में पूर्व की तरह अनुशासन भी नहीं है। इससे नहीं लगता है कि आने वाले दिनों में पुनः गोह विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का सुनहला अवसर भाकपा को मिल सकती है। अगर कोई सोंच रहा होगा तो वह दिवास्वपन्न की तरह ही होगा।




















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