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GAYA KA VISHNUPAD MANDIR

GAYA KA VISHNUPAD MANDIR
GOD VISHNU CHARAN

Friday, July 20, 2012

षादी के लिए बिहार में होता है लड़कों का अपहरण
होनहार नवयुवकों की होती है जबरन षादी
पटना से मंगलानंद मिश्र

आपने अब तक जबरन पैसे वसूलने या कोई पुरानी रंजिश तथा हत्या करने के लिए लोगों को अगवा करने की बात सुनी होगी परंतु ऐसा शायद ही सुना होगा कि शादी करने के लिए किसी का अपहरण किया गया। बिहार में ऐसा बहुत समय पहले से होता आ रहा है। खास बात यह है कि ऐसे घटनायें शादी-ब्याह के मौसम में और बढ़ जाती हैं। पुलिस मुख्यालय से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक इस वर्ष अब तक 359 अविवाहित युवकों की अपहरण शादी के लिए की जा चुकी है। आंकडों के अनुसार ऐसी घटनाएं राज्य के मुंगेर, गया, नवादा, नालंदा, जहानाबाद, नवगछिया, पटना जैसे क्षेत्रों में अधिक घटती हैं। आंकड़े बताते हैं कि इस वर्ष जनवरी महीने में जहां 87 युवकों को शादी के लिए अगवा किया गया वहीं फरवरी में 126 ऐसे युवकों का अपहरण किया गया था। मार्च में तो ऐसे युवकों की संख्या बढ़कर 146 तक जा पहुंची। सूत्रों का कहना है कि पढ़े-लिखे तथा खाते-पीते परिवार से संबंधित अविवाहित युवकों का लड़की वाले अपहरण कर लेते हैं और फिर इनका जबरन विवाह करा दिया जाता है। बताया जाता है कि जब सब कुछ निपट जाता है तब लड़के के परिजनों को आशीष देने के लिए खबर की जाती है। ऐसे में कई शादियां सफल भी हो जाती हैं तो कई बुरी तरह नाकाम हो जाती हैं। पुलिस विभाग के अधिकारियों का भी मानना है कि ऐसे में लड़के के परिजन तो अपहरण का मामला थाना में दर्ज करवाते हैं परंतु जब जांच होती है तो पता चलता है कि यह अपहरण विवाह के लिए किया गया। ऐसे में पुलिस के पास भी बहुत कुछ करने के लिए नहीं रह जाता है। सामाजिक कार्यकत्र्ता पं. आनंद मोहन मिश्र कहते हैं कि ऐसे विवाह से अभिभावक तो अपनी लड़कियों का विवाह कर मुक्त हो जाते हैं परंतु इस बेमेल विवाह का नकारात्मक प्रभाव पति-पत्नी के जीवन भर देखने को मिलता है। इस बेमेल विवाह के कारण उन परिवारों का संतुलित विकास भी नहीं हो पाता क्योंकि जीवन भर उस लड़की को ताने सुनना पड़ते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं का मुख्य कारण दहेज तथा जाति-बिरादरी में अच्छे और कमाऊ लड़कों की कमी है।

औरंगाबाद के गांवों में आज भी चल रही माओवादियों की हुकूमत
देव और इसके आसपास के इलाकों में षाम में नहीं चलते वाहन
औरंगाबाद से आलोक कुमार

औरंगाबाद। यहां के कई गांव लालगढ के रास्ते पर है। गांवों में माओवादियों की हुकूमत सी स्थिति है। वे जन अदालत लगाते है। कई इलाकों में शाम के बाद वाहनों का परिचालन रोक दिया गया है। टार्च तक जलाने पर पाबंदी है। पुलिस सब कुछ जानती है। उसने ऐसे गांवों को अति नक्सल प्रभावित गांव घोषित कर रखा है। सबसे बुरा हाल जिले के जीटी रोड के दक्षिणी इलाके के गांवों का है। इन गांवों के लोग आज भी 18वीं शताब्दी में जीने को विवश हैं। गांवों में न तो सड़क है और न ही नक्सलियों द्वारा ध्वस्त किए गये पुल की मरम्मत हो पाई है। बिजली, अस्पताल के हालात बदतर हैं। ग्रामीण नक्सलियों के भय से मोबाइल नहीं रखते। गांवों में शादी विवाह के मौके पर सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं होते हैं। अधिकांश गांव दलित व महादलित बाहुल्य है। माओवादियों के भय से शायद ही कोई अधिकारी इन इलाकों में जाता है। इलाके की भौगोलिक स्थिति माओवादियों की बड़ी ताकत की खास वजह है। पहाड़ी व जंगली इलाका। पुलिस परेशान है। नक्सलियों के फरमान के विरोध की हिम्मत ग्रामीणों में नहीं है। नक्सली जब चाहते है सड़क, विद्यालय, पुल व मोबाइल टावर ध्वस्त कर देते है। पिछले वर्षों में सिर्फ ढिबरा में 22 व सलैया में 36 ऐसे मामले दर्ज हुए। पुलिस इन क्षेत्रों में अपने अस्तित्व खातिर माओवादियों से लगातार भिड़ रही है। मदनपुर एवं देव थाना में टंगी सूची में मदनपुर के जमुआं, ढकपहरी, मुरगडा, चरैया, तिलैया, कनौदी, सहजपुर, नावाडीह, अम्बाबार, वकीलगंज, लालटेनगंज, दलेल बिगहा, छेछानी, छाली दोहर, कोईलवां, चिलमी, पितम्बरा, बादम, मनवा दोहर, नवा बांध, पिछुलिया, लंगुराही, पचरुखिया, खुटीडीह जैसे गांवों को अति नक्सल प्रभावित बताया गया है। ढिबरा थाने के सभी गांव नक्सल प्रभावित हैं। दुलारे, विशुनपुर, जगदीशपुर, छुछिया, गोल्हा, झगरडीह, घुरनडीह, जुरा, मंझौली, केवलहा, तेंदुई, तेतरडीह, आजाद बिगहा, पक्का बांध, पथरा, करमा, बहादुरडीह, लिलची, झरना, महुलान, दुर्गी, बारा, भलुआही, बंधन बिगहा, बरवासोई गांव में नक्सलियों की हलचल हमेशा रहती है। इसी तरह देव थाना के चैता बिगहा, दोसमा, विश्रामपुर, केताकी, पड़रिया, चंदेल बिगहा, भटकुर नइभुम, विशुनबांध, वकीलगंज, नकटी, गंजोई, ढाबीपर, बरहा, नारायणपुर, बाबू बिगहा, भंडारी गांव नक्सल प्रभावित हैं। सलैया, कासमा, अम्बा, कुटुम्बा, टंडवा, नवीनगर, गोह, उपहारा व देवकुंड थाना के भी कई गांवों में नक्सलियों का आना-जाना लगा रहता है।



सुषासन सरकार में मां को बेचना पड़ा जिगर का टुकड़ा
ऽ गरीबों का पुर्साहाल लेने में नाकाम है सुषासन सरकार
ऽ पति को मारा लकवा, मासूम को 62 रु में बेचा
पटना से धर्मेन्द्र कुमार की रिपोर्ट

कोई भी मां अपने जिगर के टुकड़े को बेच नहीं सकती वह भी 62 रू. में लेकिन बिहार के सुषासन की सरकार में हो रहा है। यकीनन ये कानूनी अपराध है, लेकिन उस हालात का अंदाजा लगाइए जब एक मां परिवार का बोझ कम करने के लिए अपने जिगर के टुकड़े से दूर होने के लिए तैयार हुई होगी। बिहार के फार्बिसगंज स्टेशन पर रहने वाली शन्नो के तीन बच्चे थे। पति को लकवा मारने के बाद रोजी-रोटी की सारी जिम्मेदारी उसी पर आ पड़ी। परिवार चलाने में आ रही दिक्कत को देखते हुए शन्नो ने अपना एक बच्चा नेपाली नागरिक को दे दिया। बिहार में एक महिला को परिवार का खर्चा चला पाने में नाकाम होने पर अपना बच्चा बेचना पड़ा। एक नन्हे से मासूम की कीमत लगाई गई सिर्फ 62 रुपए। लाचारी और बेबसी इंसान को कहां तक पहुंचा सकती है इसका अंदाजा इस मां से लगाया जा सकता है। इस मां ने अपने परिवार का पेट नहीं भर सकने की मजबूरी में अपने मासूम बच्चे को 62 रुपए में बेच दिया। हालांकि इस परिवार का दावा है कि उसने अपना बच्चा बेचा नहीं बल्कि घर का खर्च नहीं चला पाने की वजह से ऐसे ही दे दिया है। इस मामले के सामने आने के बाद जिले के अफसरों में खलबली मची हुई है। पुलिस जांच की बात तो कर रही है, लेकिन इस लाचारी के साथ कि वो ज्यादा कुछ कर नहीं पाएगी। सबसे बड़ी बात ये कि ये सब कुछ हुआ है नीतीश कुमार के सुशासन की सरकार में दूसरी बात सत्ता में पहुंचे नीतीश ने कभी वायदा किया था गरीबों को भरपूर सहायता देने का। लेकिन विकास के दावों से अलग राज्य की ये हकीकत शर्मसार करने वाली है।

सुषासन के मुखिया ने माना
भाजपा-जदयू में किसी तरह का मतभेद नहीं
पटना से धर्मेन्द्र कुमार

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि भाजपा और जदयू में किसी तरह का मतभेद नहीं है। सबको अपनी जिम्मेवारी का एहसास है। यही वजह है कि हम जो कहते हैं, वही बात उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार कहते हैं और उनकी बात को हम कहते हैं। उपराष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवारी के मसले पर एनडीए एकजुट है। मुख्यमंत्री जनता दरबार के बाद संवाददाताओं से बात कर रहे थे। उनके अनुसार एनडीए की बैठक में उपराष्ट्रपति पद के लिए जो नाम (जसवंत सिंह) तय हुआ है, उस पर सबकी सहमति है। राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ (पार्टी लाइन) से उपराष्ट्रपति चुनाव का कोई मतलब नहीं है। जसवंत सिंह की जीत के संबंध में पूछे जाने पर मुख्यमंत्री ने कहा-श्युद्ध के मैदान में हार-जीत की चिंता नहीं होती है । बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के मसले पर भाजपा द्वारा अलग रैली किए जाने के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार की हकमारी के खिलाफ सभी पार्टियां आंदोलन कर रही हैं। ऐसा करना भी चाहिए। जदयू-भाजपा के मजबूत संबंधों क हवाला देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि आपस में कुछ बयानबाजी हो सकती है, हो जाती है मगर यह बहुत दिन तक खींचने वाला नहीं है। हमने अपने प्रवक्ताओं की बैठक कर उनसे कहा है कि व्यक्तिगत आक्षेप वाले बयान से परहेज रखा जाए। भाजपा और जदयू में स्पष्ट समझ है कि वे एक-दूसरे के लोगों (नेताओं) को अपनी पार्टी में शामिल नहीं कराएंगे। इसी दौरान संजय झा से जुड़ा सवाल भी उठा। मुख्यमंत्री ने कहा-संजय झा की बात काफी पहले से चल रही थी और भाजपा से सहमति मिलने के बाद ही वे जदयू में शामिल हुए हैं।

सड़क नहीं बनने पर कोर्ट ने किया सरकार को तलब
फुलवारीषरीफ से हीरा प्रसाद

पटना हाईकोर्ट ने फुलवारीशरीफ में स्वीकृत स्थान पर सड़क नहीं बनाए जाने के मसले पर राज्य सरकार से एक महीने में जवाब मांगा है। न्यायाधीश टी.मीना कुमारी एवं न्यायाधीश चक्रधारी शरण सिंह की खंडपीठ सोमवार को निवारण सेवा संस्थान की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि विधायक कोष के 2 करोड़ रुपए का गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया। इसका मुख्य कारण पूर्व विधायक एवं वर्तमान विधायक के बीच खींचतान रहा। परिणामस्वरूप जहां सड़क बननी चाहिए थी, वहां नहीं बन पाई। राज्य सरकार का जवाब आने के बाद अगली सुनवाई होगी।

















हाय रे भगवान इंद्र तुम्हे दया क्यों नहीं आती !
जहानाबाद में अकाल से तबाही शुरू
इंद्र को मनाने के लिए लड़कियों ने खेतों में नंगा हो चलाया हल
पटना से मंगलानंद/जहानाबाद से संजय कुमार

भगवान इंद्र को मनाने के लिए किसानों के पास जितना जतन था सब करके थक चुके हैं। भगवान इंद्र को मनाने के लिए यहां तक हुआ कि नाबालिग लड़कियों ने खेतों में नंगे होकर हल तक चलाया परंतु भगवान इंद्र हैं कि उन्हें दया आती नहीं। रात के 12 बजे जब सारा गांव सो रहा था तो गया-जहानाबाद जिले के कई गांवों में गांव की लड़कियां खेतों में नंगी हो हल चला रही थी। बिहार की पुरानी परंपराओं में यह भी एक बड़ी परंपरा रही है। पुरानी पंरपराओं के अनुसार गांवों में हर प्रकार के अनुष्ठान हुए परंतु नतीजा कुछ भी नहीं निकला। भगवान इंद्र ने भी सारी परीक्षाऐं ली परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। कम बारिष ने गया-जहानाबाद के किसानों के चेहरे पर उदासी ला दी है। किसानों को रात में न चैन है न दिन में। हर समय किसान बादलों की ओर टकटकी लगाए रूंआसे हो भगवान इंद्र को कोस रहे हैं। कम बारिष के कारण किसानों को इस बार भीषण तबाही झेलनी पड़ रही है। पानी का भूमिगत जलस्तर काफी नीचे रहने के कारण डीजल सेट भी पानी खींचने में नाकामयाब साबित हो रहे है। धान के बिचड़े बचाते बचाते किसान भी मानों झुलस से गए हैं। किसान डीजल चालित पंप सेटों का भी सहारा ले रहे है परंतु आसमान से पानी नहीं होने के कारण अब तक धान की रोपनी शुरू भी नहीं हो सकी है। जहानाबाद जिले के कृषि विभाग के अधिकारियों का भी मानना है िकइस साल जिले में भीषण अकाल की संभावना है। सावन माह भी खत्म होने को आ गया है ऐसे हालात में धान की रोपनी नहीं होने से अब धान की उपज पर पूरी तरह ग्रहण लग सा गया है। जेठुआ और भदई फसलों की रोपाई का काम पानी के बिना पूरा नहीं हो सका है। मानसून की मार ने जहानाबाद में सबको रूला दिया है। पूरे इलाके में बेरोजगारी की मार लोगों को झेलने पड़ रहे हैं। बेरोजगार युवक और खेतीहर मजदूर दूसरे राज्यों के पलायन में लग गए हैं। एक गैर सरकारी संस्था द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार जहानाबाद और अरवल जिले में मात्र एक फीसदी ही धान की रोपायी हो सकी है। बाकी केे 99 प्रतिषत भूभाग अभी परती पड़े हैं। आद्र्रा नक्षत्र में लगाए गए बिचड़े तो पूरी तरह तैयार होकर सूख चुके है। जहानाबाद जिले के 95 प्रतिषत आहर, तालाब आदि जलाषयों में पानी देखने को भी नहीं मिल रहा है। भूर्गभीय जल श्रोतों के इस साल काफी नीचे चले जाने के आसार है। बिहार की मौजूदा हालत यह हो गयी है कि कही बाढ़ से लोग मर रहे हैं तो कही चुल्लु भर पानी नहीं है लोगों के लिए।

सुषासन का मधुषाला
स्कूलों और मंदिरों के बगल में चलते हैं मदिरालय
पटना से मंगलानंद/धर्मेन्द्र कुमार

ये अलग बात है साकी कि मुझे होष नहीं है होष इतना है कि सुषासन मदहोष नहीं है। हमने इतना ख्याल रखा है स्कूल और मंदिरों के बगल में मधुषाला का लाइसेंस आम कर दिया है। इसलिए कि ये बच्चे ही और धर्मगुरू ही देष की रीढ़ हैं। हम लाए थे तुफान से कष्ती निकाल के इस देष को रखना मेरे बच्चों संभाल के। बिहार सरकार का नषा इतना बढ़ गया है कि वो सर चढ़ कर बोल रहा है। इतना होष भी नहीं है कहां स्कूल है और कहां मंदिर है। आप को हर कदम कोई न कोई नाली में गिरा हुआ मिल जाय तो समझ लिजीए आप बिहार में हैं। जहरीली षराब से गुजरात में मौत की लोमहर्षक घटना को हमने देखा और सुना। देष के अन्य जगहो में कुछ इसी तरह की घटनाएं दोहरायी जा रही है । इसके बावजूद मौत का सामान बेचने की नीति को बढावा देने की प्रवृति रूक नहीं रही है। विकास पुरूष नीतीष कुमार बिहार के निर्माण के बजाय पूरे बिहार में षराबखोरी को बढावा देने बाली एैसी नीति (आबकारी नीति-.2007) बनायी है जिससे कृषि प्रधान बिहार में कृषि क्रांति , ष्वेत क्रांति के बजाय मदिरा कं्राति को बढावा मिल रही है। लोग हैरत में है कि कृषि एवं पषुपालन को बढावा देने के वायदे के साथ बनी नीतीष सरकार पूरे बिहार के गांव-गांव में ष्षराबखोरी को बढावा देने बाली नीति पर क्यों कदम आगे बढा रही है ? आखिर सरकार उसी अंतिम व्यक्ति का आर्थिक नुकसान नहीं कर रही है जो किसी तरह नरेगा से सौ-पचास रूपये कमाकर घर लौटता है, लेकिन घर पहंुचने के पहले वह देषी ष्षराब से अपने गले को तर कर लेता है । बीबी -बच्चों के लिए रोजमर्रे की चीजों के प्रबंध करने बजाय वह खाली हाथ घर मदहोष होकर लौटता है। गांधी यह मानते थे जो षराब पीते है उनके परिवार सदा अभाव में जीते है। षराबखोरी से उपजी आर्थिक बदहाली ने ही गांधी को ष्षराबबन्दी हेतु प्रेरित किया था। बुद्व, महावीर की जन्मस्थली और गांधी, बिनोबा एवं जयप्रकाष नारायण की कर्मस्थली बिहार में हिंसा को और हवा देने की घटना हादसे की तरह ही है। हिंसा के लिए बदनाम रही बिहार की छवि बदलने के बजाय प्रदेष सरकार ने हिंसा एवं अपराध को बढावा देने बाली एैसी आबकारी नीति बनाई है जिसके तहत सभी प्रकार की खुदरा षराब दुकानों की बंदोबस्ती अनिवार्य रूप से लाटरी द्वारा की जा रही है। इससे आम व्यवसाइयों के साथ साथ बेरोजगारों को भी इस व्यवसाय से जुडने का मौका मिला है। इस दिषा में सरकारी दावों की माने तो षराब व्यापार के एकाधिकार की समाप्ति होने के साथ ही खुदरा षराब के मूल्य पर नियंत्रण होगी। सरकार ने पंचायतों के लिए लक्ष्य निर्धारित किया है कि पहले 5500 रूपये के बजाय 8500 रूपये तक के षराब बेचे। लोगों को आकषर््िात करने के लिए सेल लगाये जा रहे है।वीडियो का इंस्तेमाल किया जा रहा है । सरकार की इस नीति की आढ में गांव -गांव में अवैध षराब निर्माण एवं बेचने का अभियान सा चल पडा है। हिंसा और अपराध के लिए बदनाम बिहार में विकास और सुषासन के नारों के साथ बनी नीतीष सरकार ने पिछले तीन वर्षों में अपराधियों और बाहुबलियों को सीखचों के अंदर भेजकर यह साबित करने का प्रयास किया कि सूबे में सुसासन स्थापित करने के प्रति वे प्रतिबद्व हैं मगर रेवेन्यू और रोजगार सृजन के नाम पर नीतीष सरकार के इस कवायद ने विरोधाभास की स्थिति पैदा कर दी है। प्रदेष के गांवो में बेतहाषा बढ रही षराब के दुकानों ने षराब पीने बालों की नयी फौज तैयार हो रही है । मद्यनिपेध के विरोध में सक्रिय संगठनों का कहना है कि इससे सर्वाधिक महिला एवं बच्चो के उपर चैतरफा दुप्प्रभाव पड रहा है । बिहार के कई इलाको में पूर्व से चल रहे वैध-अवैध षराब निर्माण के दौरान यह देखा गया है कि ष्षराबखोरी के प्रचलन से सबसे अधिक महिलाओं को जूझना पडता है। कई जगहों पर नये दुकान खोले जाने के खिलाफ नागरिकों ने विरोध प्रदर्षित भी किया है। पिछले कुछ वर्षों से चल रहे अवैध कच्ची षराब निर्माण का कारोबार आज स्थानीय लोगों के लिए बडी समस्या है। कई बार पुलिसिया कार्रबाई भी हुई किन्तु ष्षराब माफिया के सषक्त नेटवर्क ने पुलिस की कार्रवाई को प्रभावहीन कर दिया। ष्षराबनिर्माण के अवैध निर्माण से गांवों के लोग त्रस्त रहे है। पिछले कुछ वर्पो में इन गांवों में षराब के अडडों पर हत्या हो चुकी है ।पुलिस के अनुसार हत्या की वजह पियक्कडों की आपसी कहासुनी तथा षराब निर्माण में लगे बाहुबलियों के बीच वर्चस्व की लडाई रही है। समय-समय पर ग्रामीणों का प्रतिरोध भी होता रहा ह,ै लेकिन अवैध षराबनिर्माण के कारोबार ने पूरे इलाके का अपनी चपेट मे ले लिया। ष्षराब के अड्डों या ष्षराब के दुकानों से होकर महिलाओं या स्कूल की छात्राओं का गुजरना दूभर हो गया है। इन गांवों की महिलाएं आज भी अपने खेतो, खलिहानों, टोलो में खुद को असुरक्षित मानती है। बीते कुछ वर्पों में पूर्व से चल रहे गांवों के करीब पचहत्तर प्रतिषत घरों में पियक्कडो की फौज तैयार हो गयी है जिनके उपर षाम ढलते ही नषे का षुरूर चढ जाता है। रात के अंधेरों में महिलाओं के चीखने- चिल्लाने की आवाजें सुनाई देना आम दिनचर्या का हिस्सा हो गया है। जाहिर है षराबियों का कहर सबसे पहले अपनी पत्नियों के उपर ही टूटता है। ष्षराब के नषे में पति, पत्नी को पीटता है । उसे होष ही नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है। कई बार नषे की हालत में ही दुर्घटना हो जाती है और परिवार बिखर जाता है। इससे मासूम बच्चों के मानसिक दषा का अनुमान भी लगाया जा सकता है।सबसे दुखद बात यह है कि षराब निर्माण में नन्हे गरीब बच्चों को भी लगाया जाता है। कच्ची ष्षराब के अडृडों का जायजा लेने पर अजीबोगरीब दृष्य मिलता है । बजबजाती गंदगी, गंदगी के बीच खेलते बच्चे, भभकती भट्ठियां, षराब निर्माण में लगी महिला एव बच्चे। पास ही पियक्कडो का हुजूम जो बात -बात पर बजबजाती गंदगी से भी अधिक भद्दी गालियां बक रहा होता है। जाहिर है महिला हिंसा के लिए बदनाम बिहार में वर्तमान आबकारी नीति से हिंसा को बढावा ही मिलेगा। है। एन एफ एच एस- 3 के आंकडों के अनुसार राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों मेें 59 प्रतिषत पुरूष अपनी पत्नी को पीटते है। एक ओर नीतीष सरकार महिलाओं के सषक्तिकरण के पचास प्रतिषत आरक्षण भी देती है तो दूसरी ओर इन महिलाओं के मानमर्दन के लिए नषाखोरी को भी बढावा दे रही है। प्रदेष में युवाओं की चालीस प्रतिषत आबादी हैं। आंकडों के हिसाब से युवाओं कीे 4 करोड संख्या है। प्रदेष सरकार के विचाराधीन युवानीति के अभाव मे ंप्रदेष के सर्वांगिण विकास में इनकी भुमिका सुनिष्चित नहीं हो पा रही है एैसे में इन युवाओं में नषे की लत से कम-से-कम समाज का निर्माण तो नहीं ही किया जा सकता। दरअसल तमाम राज्य सरकारें आबकारी नीति घोषित करती है। ष्षराब राज्यों की कमाई का प्रमुख जरिया होती है। हर साल राज्य आबकारी लक्ष्य बढाते हैं। बाकायदा घोषित आबकारी नीति में ं पियक्कडों और ठेकेदारों का ख्याल रखा जाता है। गत वर्ष सरकारी राजस्व में वृद्वि हुई है। सरकारी आंकडों के अनुसार यह वृद्वि पिछले वित्तीय वर्प के अपेक्षाकृत 31.37 प्रतिषत अधिक है यानि बिहार सरकार ने इस वित्तीय वर्प में षराब निर्माण से 417.95 करोड की राजस्व प्राप्त की है। क्या महज राजस्व के लिए मानव संसाधान की इतनी बडे हिस्से के भविष्य के साथ खिलवाड उचित है ?


‘‘ लुकिंग लंदन गोईंग टोक्यो ’’
गया से नारायण मिश्रा
‘‘ जरा हौले हौले चलांे मेरे साजना हम भी पीछे हैं तुम्हारे ’’ आड़ी तिरछी रफ्तारों के मालिक इनदिनों टिकारी-गया के टेम्पो आपरेटर हो गए हैं। आपको बैठते ही ऐसा महसूस होगा ‘‘ लुकिंग लंदन गोईंग टोक्यो’’ आपको महसूस होने लगेगा कि शायद आप अपनी मंजिल के बगैर कही और जा रहे हैं। शायद यह आखिरी मंजिल भी हो सकती है। अधिकांष टेम्पो चालकों के पास ड्राईविंग लाइसेंस हैं ही नहीं। जिनकी उम्र 18 साल से नीचे हैं। सुबह से लेकर शाम तक छोटे कस्बों से लेकर शहर तक तेज रफ्तार में गाड़ी चलती है। गाड़ी रूकी पैसेंजर सवार हुआ या नहीं ट्रेन की तरह कभी गाड़ी 70 कभी 80 कभी बाऐं कभी दाऐ बैठने वालों का कलेजा मुहं को आ जाता है। जिला प्रषासन को टेम्पो वालों से कोई मतलब नहीं है। ट्राफिक पुलिस वालों का पैसा चाहिए किसकी जान जाएगी और किसकी बचेगी ये डीटीओ साहब तय करेंगे।


आज भी अधूरा है माउंटेन मैन का सपना
विकास को मोहताज है गेहलौर घाटी
गया से नारायण मिश्रा

बिहार सरकार चाहे लाख वादा करे फिर भी गेहलौर घाटी के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों की हालत में सुधार की गंुजाईष नहीं दीखती। कुछ यादें ऐसी होती हैं जो अतीत के गहवारे में ले जाती हैं। शायद गेहलौर घाटी अनाथ हो गया हो। गेहलौर घाटी की हालत बिलकुल वैसी ही हो गयी है जैसे किसी बच्चे के सर से बाप का साया उठ जाना। गांव बिलकुल वीरान हो गया है। ये लगता ही नहीं है कि कभी यहां माउंटेन मैन रहा करते थे। पत्रकारों के अपने दरवाजे पर पहंुचते ही बाबा के चहेरे पर खुषी झलकने लगती थी। वे उम्मीद करने लगते थे उनकी मेहनत पत्रकारों के कलम के द्वारा रंग लाएगी। बिलकुल उसी तरह सम्मान करते थे जैसे सबरी रामजी के लिए बैर चख-चख कर रखती थी। अपनी कुटिया में पत्रकारों को बैठाना और जो उनके वष में हो उसे खिलाकर ही विदा करना लेकिन शायद ये सारी बातें धुंधली हो गयी हैं। दषरथ बाबा भविष्य के गर्भ में समा चुके हैं, गेहलौर घाटी का कोई पुर्सानेहाल नहीं है। शहीदों के मजार पर हर बरस लगेंगे मेले वतन पर मरने वालों की बाकी यहीं निषां होगी ’’ आज बाबा की पहली पुण्यतिथि मनायी गयी, सरकारी अधिकारियों का भाषण और आष्वासन गांव वालों को मिला और सरकारी अधिकारी वापस लौट गए। बाबा का सपना कब और कैसे पूरा होगा ये बिहार सरकार जानती है या जिला प्रषासन। दषरथ बाबा के बिना आज भी गहलौर घाटी सुना-सुना सा लगा। बाबा एक छेनी और एक हथौड़ी के सहारे 20 वर्षों में पहाड़ का सीना चीरकर दो प्रखंडों को जोड़ने वाली सड़क का निर्माण किया था। इस कार्य में न किसी का श्रम लगा और न कोई आर्थिक सहायता मिली वरण इस सड़क के निर्माण होने के बाद इस जिले के वजीरगंज और अतरी प्रखंड की दूरी 80 किलोमीटर से घटकर 14 किलोमीटर हो गयी। 860 फीट लम्बा व 20 फीट चैड़ा सड़क का निर्माण हो गया। इस साहसिक कार्य के लिए 1999 में लिम्का बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में दषरथ मांझी का नाम दर्ज कर लिया गया। इससे प्रभावित होकर मुख्यमंत्री नीतीष कुमार ने दषरथ मांझी को एक दिन अपने कुर्सी पर बैठा दिया। उनका नाम पदम्श्री पुरस्कार के लिए अनुषंसित कर दिया गया था। दषरथ मांझी के अधूरे कार्यो को पूरा करने की सरकारी घोषणा कर दी गयी। आनन-फानन में दषरथ बाबा ने भी सरकार से मिली 5 एकड़ जमीन सरकार को लौटाते हुए उस जगह अस्पताल खोलने की इच्छा व्यक्त कर डाली। इस बीच दषरथ मांझी अस्वस्थ हुए उपचार के लिए राज्य सरकार ने दिल्ली एम्स हाॅस्पीटल भेजा गया। इसी अस्पताल में दषरथ मांझी ने अपनी जिन्दगी की आखरी सांस ली। मौत के एक वर्ष बीत जाने के बाद दिल्ली एम्स हाॅस्पीटल ने दषरथ मांझी के परिवार को एक पत्र भेजा है। जिसमें दषरथ मांझी के उपचार में आयी खर्च का ब्योरा भेजा गया। इस पत्र को लेकर तरह-तरह का कयास लगाया जाता रहा है। समझा जाता है कि पत्र से उत्पन्न भ्रम की स्थिति को दूर करने के उद्देष्य से राज्य सरकार के दो मंत्रियों ने इस गांव का दौरा किया है। डा. गीता प्रसाद निदेषक प्रमुख द्वारा स्थानीय आयुक्त को भेजे गये पत्र में कहा है कि स्वास्थ्य विभाग के संकल्प सं. 2363/ 14 दिनांक 12-02-08 1484/ 14 दिनांक 26-11-07 के प्रसंग में मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष के लिए गठित अधिकृत समिति की स्वीकृति के आधार दषरथ मांझी ग्राम-गहलौर, पो-ऐरु, जिला-गया के स्वयं की कैंसर रोग की एम्स नई दिल्ली अस्पताल में चिकित्सा में हुए व्यय का मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष रुपया 171018/ एक लाख एकहत्तर हजार 18 रुपये को विमुक्त किया जाता है। उक्त राषि जिस मद से आपके द्वारा कर्ज के रुप में ली गई थी उसका सामंजन उपरोक्त स्वीकृत राषि से कर ली जाये। आपके पत्र के नाम से निर्गत उक्त राषि का काॅस चेक संख्या ......... मुल्य रुप में सलंगन है। दषरथ मांझी के स्वयं की चिकित्सोपरान्त चिकित्सा प्रमाण पत्र सम्पूर्ण व्यय ब्यौरा के साथ अनुदान राषि की उपयोगिता का प्रमाण पत्र स्वास्थ्य विभाग पटना को निष्चिित रुप से उपलब्ध कराने का कष्ट करे। जिसे समीक्षा निदेषक प्रमुख स्वास्थ्य सेवाएं बिहार पटना प्रतिहस्ताक्षरित करेगें। बहरहाल आरोपुर गांव में मंगुरा नदी पर पुल निर्माण, पथ निर्माण और गहलौर घाटी में अस्पताल निर्माण कार्य में हाथ नहीं लगाया जा सका है। दषरथ मांझी के पुत्र और पुत्री विकलांग है उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है।





असीम संभावनाओं के बावजूद बांकेधाम का विकास ठप
षेरघाटी से राजेष कुमार/बांकेबाजार से कमल कुमार वर्मा

बांकेधाम में श्रावणी मेला इनदिनों बांकेधाम में जोर पकड़ चुका है और मेले की व्यवस्था के नाम पर कुछ भी ऐसा नहीं हुआ है जिससे यहां आने वाले दर्षनार्थियों को सहुलियतें मिल सके। सरकार चाहे तो बांकेधाम को बिहार का एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल जरूर बनवा सकती है। जिसकी यहां असीम संभावनाऐं हैं। मगध प्रमण्डल के मुख्यालय से पचास किलोमीटर दक्षिण-पष्चिम में अवस्थित बांकेबाजार की पहाड़ी। जिसे अब यहां की जनता बांकेधाम के नाम से पुकारती है। बांकेधाम धरती चप्पा-चप्पा ऐतिहासिक अवषेषों से भरा पड़ा है। प्रकृति की अनुपम छटाओं के बीच पर्यटन एवं पुरातत्व विभाग के उपेक्षा का षिकार है। यहां पर्यटन की असीम संभावनाएं है बांकेधाम में। यह पहाड़ी दो किलोमीटर लम्बी एवं एक किलोमीटर से अधिक चैड़ी है। जिसके पष्चिम कोर पर है मडावर नदी की दक्षिणी वाहिनी धारा प्रवाहित होती रहती है। इन पहाड़ी पर कई श्रृंखलायें है जिन पर मिले भग्नावषेषों एवं नवनिर्मित मंदिरों के आधार पर अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। पहाड़ी के पुरब दूसरी श्रृखंला पर भगवान आषुतोष षिव का भव्य नूतन मंदिर बन चुका है। जहां प्रारंभ में खुदाई में स्लेटी हरि तिमारिये पत्थर का गणेष की द्विमुणी और पार्वती की प्रतिमाएं मिली थी। षिवलिंग का एक प्रस्तर खण्ड से ढका था जिसे हटाने पर नीली आभालिए षिवलिंग अर्धे के साथ निकले। तालाब की खुदाई से एक सिक्का भी प्राप्त हुआ है जिसके एक पहलु पर हनुमानजी का चित्र तो दूसरे पहलु पर श्री राम परिवार लक्ष्मण के साथ है। जिसपर 47340 हनुमान सनू लिखा अष्टधातु के मोटा सिक्का है। जिसे मध्य बिहार ग्रामीण बैंक में सुरक्षित रखा गया है। इस पहाड़ के आस-पास एक सौ एक मंदिर के भी प्रमाण मिलते है और इस पर्वत पर अनेक गुफाएं है जो ऋषि मुनियों के तपोस्थली माना जाता है। जहां से सभी लोगों को देखा जा सकता है, लेकिन उस पर बैठे जगह पर कोई नहीं देख सकता है। पहली पहाड़ी की श्रृखंला पर सूर्यपुरी में सूर्य की तीन मग्न प्रतिमाएं अवस्थित है जो काले पत्थर की बनी सप्त अष्वरथ सारथी के साथ भगवान सूर्य की मूर्ति दिखाई गई है। जिसके दोनों ओर पत्निया संज्ञा और छाया है। एक ओर तालाब के अवषेष निकले है जिसे श्रमदान से खुदाई कर बनाया गया है। सूर्यपुरी के पुरब सपाट चैरस स्थल पर इन के टुकड़े ढ़ेर के रुप में बिखरे पड़े है। इसी के सटे मंदिर के बगल में मंडप बना हुआ है। प्रत्येक वर्ष यहां दान एवं चढ़ावा से लाखों रुपया का आय होता है जिसमें षिव मंदिर, सूर्यमंदिर एवं विषला धर्मषाला का निर्माण कराया गया है। यहां श्रावणी मेला एक माह तक लगता है जिसे मंदिर समिति के अनुवाई में खेल तमाषा एवं मीना बाजार लगाया जाता है। इसके आय से मंदिर के आवष्यकता अनुसार कार्य को कराया जाता है। यद्यपि बांकेधाम को पर्यटन विभाग से विकसित किया जाये तो यह एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल बन सकता है।


गोह में कैसे ढह गया लाल झंडे का गढ़
भाकपा में रामशरण जैसे नेताओं का अभाव
दाउदनगर (औरंगाबाद) से आलोक कुमार

1977 ई0 से गोह विधानसभा भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का गढ़ माना जाता था। आज इसका परिदृश्य ऐसा हो गया है कि लगता है कि अगर भाकपा अपने बूते चुनाव लड़ना चाहे तो शायद जमानत भी बचाना मुश्किल हो जायेगा। आखिर क्यों? जिस समय 1977 में इस विधानसभा क्षेत्र से कम्युनिष्ट रामशरण यादव ने चुनाव लड़ा था उस समय पार्टी का संगठन काफी मजबूत तो था ही रामशरण यादव का व्यक्तित्व भी ऐसा था कि न चाहकर भी जो लोग उन्हंे वोट दे दिया करते थे वहीं कम्युनिष्ट कहीं यादव की जीत का मूल फार्मूला था। जातीय आधार पार्टी का संगठन पिछड़ी, अति पिछड़ी एवं दलितों का समर्थन। इतने लोगों के वोटों पर कम्युनिष्ट यादव को जबर्दस्त पकड़ थी। यही कारण था कि दूसरे उम्मीदवार हाथ-पांव मारने की कोशिश तो करते थे, परंतु उन्हंे सफलता नहीं मिल पाती थी। उनकी जीत का प्रमुख आधार जातीय आधार था। यादव जातीयों ने उन्हें अपना नेता मान लिया था। ऐसे भी इस क्षेत्र में सबसे अधिक वोट यादव जाति का ही है। कम्युनिष्ट, यादव के बाद जो भी यादव जाति से उम्मीदवार आये उन्हें यहां के यादवों ने पचा नहीं सका। दूसरे दो-तीन उम्मीदवार होने की वजह से आपस में वोटों का विखराव होता रहा और तीसरा यह कि कम्युनिष्ट रामशरण यादव को अन्य जितनी जातियों का समर्थन मिलते रहा था, नहीं मिला। परिणामस्वरूप पराजय का ही मुंह हमेशा देखना पड़ा। ऐसे भी कम्युनिष्ट रामशरण यादव जब-जब चुनाव लड़े थे तो उनके साथ भुमिहार जाति के भी उम्मीदवार चुनाव लड़ते रहे थे। इस बीच राजपूत जातियों ने अपना खेल खेलना नहीं छोड़ा था। राजपूत जाति भूमिहार को वोट देना नहीं चाहते थे। इसलिए, वह उस वोट का कम्युनिष्ट रामशरण यादव को मिल जाया करता था और इनकी जीत पक्की हो जाया करती थी। इसी बीच 1985 ई0 में भूमिहार जाति से एक लोकप्रिय नेता डी0 के0 शर्मा चुनाव लड़ने आये थे। उनमें लोकप्रियता का अजीब जादू था। मिलने जूलने और लोगों को प्रभावित करने की अजीब तरकीब थी। उस दौरान शर्मा को अन्य तमाम जातियों का वोट तो मिला ही था कुशवाहा और राजपूत जातियों का भी वोट मिला था। फलस्वरूप, चुनाव जितने में सफल हो गये थे। फिर दूसरी बार वे चुनाव हार गये थे। परन्तु तीसरी बार उनके द्वारा किये गये विकास के नाम पर फिर उनकी जीत हुयी थी। परन्तु इस बार लोगों की उम्मीद पर पानी फिर गया। जब 2005 मंें चुनाव हुआ तो गोह विधानसभा क्षेत्र से लोजपा के टिकट पर रंजीत कुशवाहा को चुनाव लड़ जाने से और दो-दो यादव जातियों का उम्मीदवार बनने का सीधा लाभ जदयू प्रत्याशी डा0 रणविजय कुमार को मिला था और वे चुनाव जीत गये। इस दरम्यान न कम्युनिष्ट रामशरण यादव इस दुनिया में रहे न हीं डी0 के शर्मा। कई टर्म तक कम्युनिष्ट रामशरण यादव को इस विधानसभा क्षेत्र से प्रतिनिधित्व करते रहने से इससे भाकपा का गढ़ माना जाता था। जबकि, काॅ0 रामशरण यादव पार्टी गत आधार पर विधायक नहीं बने थे। यह सबकुछ उनके व्यक्तिगत व्यक्तित्व का परिणाम था। वे ऐसे व्यक्ति थे जो गरीब-अमीर सभी के दिलों पर राज करते थे। हां इतना जरूर है कि वे जबतक इस क्षेत्र का विधायक रहे तबतक भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का जनाधार सुदृढ़ जरूर रहा था। पार्टी में अनुशासन तो था ही पार्टी काफी सक्रिय थी। कम्युनिष्ट रामशरण यादव को इस दुनिया से कूच करते ही भाकपा का जनाधार भी कूच कर गया। अब पार्टी में वैसी सक्रियता भी नहीं रही। न रामशरण यादव की तरह व्यक्तित्व वाले पार्टी में नेता ही हैं जो अपनी लोकप्रियता से पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलितों और राजपूतों के वोट को प्रभावित कर सकें। वैसे तो भाकपा में कई नेताओं ने कम्युनिष्ट रामशरण यादव बनने का स्वांग रचा। परन्तु उनके व्यक्तित्व को समाहित नहीं कर सका। आज पार्टी का जनाधार भी काफी खिसक चुका है। पार्टी में पूर्व की तरह अनुशासन भी नहीं है। इससे नहीं लगता है कि आने वाले दिनों में पुनः गोह विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का सुनहला अवसर भाकपा को मिल सकती है। अगर कोई सोंच रहा होगा तो वह दिवास्वपन्न की तरह ही होगा।





हाय रे भगवान इंद्र तुम्हे दया क्यों नहीं आती !
जहानाबाद में अकाल से तबाही शुरू
इंद्र को मनाने के लिए लड़कियों ने खेतों में नंगा हो चलाया हल
पटना से मंगलानंद/जहानाबाद से संजय कुमार
भगवान इंद्र को मनाने के लिए किसानों के पास जितना जतन था सब करके थक चुके हैं। भगवान इंद्र को मनाने के लिए यहां तक हुआ कि नाबालिग लड़कियों ने खेतों में नंगे होकर हल तक चलाया परंतु भगवान इंद्र हैं कि उन्हें दया आती नहीं। रात के 12 बजे जब सारा गांव सो रहा था तो गया-जहानाबाद जिले के कई गांवों में गांव की लड़कियां खेतों में नंगी हो हल चला रही थी। बिहार की पुरानी परंपराओं में यह भी एक बड़ी परंपरा रही है। पुरानी पंरपराओं के अनुसार गांवों में हर प्रकार के अनुष्ठान हुए परंतु नतीजा कुछ भी नहीं निकला। भगवान इंद्र ने भी सारी परीक्षाऐं ली परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। कम बारिष ने गया-जहानाबाद के किसानों के चेहरे पर उदासी ला दी है। किसानों को रात में न चैन है न दिन में। हर समय किसान बादलों की ओर टकटकी लगाए रूंआसे हो भगवान इंद्र को कोस रहे हैं। कम बारिष के कारण किसानों को इस बार भीषण तबाही झेलनी पड़ रही है। पानी का भूमिगत जलस्तर काफी नीचे रहने के कारण डीजल सेट भी पानी खींचने में नाकामयाब साबित हो रहे है। धान के बिचड़े बचाते बचाते किसान भी मानों झुलस से गए हैं। किसान डीजल चालित पंप सेटों का भी सहारा ले रहे है परंतु आसमान से पानी नहीं होने के कारण अब तक धान की रोपनी शुरू भी नहीं हो सकी है। जहानाबाद जिले के कृषि विभाग के अधिकारियों का भी मानना है िकइस साल जिले में भीषण अकाल की संभावना है। सावन माह भी खत्म होने को आ गया है ऐसे हालात में धान की रोपनी नहीं होने से अब धान की उपज पर पूरी तरह ग्रहण लग सा गया है। जेठुआ और भदई फसलों की रोपाई का काम पानी के बिना पूरा नहीं हो सका है। मानसून की मार ने जहानाबाद में सबको रूला दिया है। पूरे इलाके में बेरोजगारी की मार लोगों को झेलने पड़ रहे हैं। बेरोजगार युवक और खेतीहर मजदूर दूसरे राज्यों के पलायन में लग गए हैं। एक गैर सरकारी संस्था द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार जहानाबाद और अरवल जिले में मात्र एक फीसदी ही धान की रोपायी हो सकी है। बाकी केे 99 प्रतिषत भूभाग अभी परती पड़े हैं। आद्र्रा नक्षत्र में लगाए गए बिचड़े तो पूरी तरह तैयार होकर सूख चुके है। जहानाबाद जिले के 95 प्रतिषत आहर, तालाब आदि जलाषयों में पानी देखने को भी नहीं मिल रहा है। भूर्गभीय जल श्रोतों के इस साल काफी नीचे चले जाने के आसार है। बिहार की मौजूदा हालत यह हो गयी है कि कही बाढ़ से लोग मर रहे हैं तो कही चुल्लु भर पानी नहीं है लोगों के लिए।

सुषासन का मधुषाला
स्कूलों और मंदिरों के बगल में चलते हैं मदिरालय
पटना से मंगलानंद/धर्मेन्द्र कुमार
ये अलग बात है साकी कि मुझे होष नहीं है होष इतना है कि सुषासन मदहोष नहीं है। हमने इतना ख्याल रखा है स्कूल और मंदिरों के बगल में मधुषाला का लाइसेंस आम कर दिया है। इसलिए कि ये बच्चे ही और धर्मगुरू ही देष की रीढ़ हैं। हम लाए थे तुफान से कष्ती निकाल के इस देष को रखना मेरे बच्चों संभाल के। बिहार सरकार का नषा इतना बढ़ गया है कि वो सर चढ़ कर बोल रहा है। इतना होष भी नहीं है कहां स्कूल है और कहां मंदिर है। आप को हर कदम कोई न कोई नाली में गिरा हुआ मिल जाय तो समझ लिजीए आप बिहार में हैं। जहरीली षराब से गुजरात में मौत की लोमहर्षक घटना को हमने देखा और सुना। देष के अन्य जगहो में कुछ इसी तरह की घटनाएं दोहरायी जा रही है । इसके बावजूद मौत का सामान बेचने की नीति को बढावा देने की प्रवृति रूक नहीं रही है। विकास पुरूष नीतीष कुमार बिहार के निर्माण के बजाय पूरे बिहार में षराबखोरी को बढावा देने बाली एैसी नीति (आबकारी नीति-.2007) बनायी है जिससे कृषि प्रधान बिहार में कृषि क्रांति , ष्वेत क्रांति के बजाय मदिरा कं्राति को बढावा मिल रही है। लोग हैरत में है कि कृषि एवं पषुपालन को बढावा देने के वायदे के साथ बनी नीतीष सरकार पूरे बिहार के गांव-गांव में ष्षराबखोरी को बढावा देने बाली नीति पर क्यों कदम आगे बढा रही है ? आखिर सरकार उसी अंतिम व्यक्ति का आर्थिक नुकसान नहीं कर रही है जो किसी तरह नरेगा से सौ-पचास रूपये कमाकर घर लौटता है, लेकिन घर पहंुचने के पहले वह देषी ष्षराब से अपने गले को तर कर लेता है । बीबी -बच्चों के लिए रोजमर्रे की चीजों के प्रबंध करने बजाय वह खाली हाथ घर मदहोष होकर लौटता है। गांधी यह मानते थे जो षराब पीते है उनके परिवार सदा अभाव में जीते है। षराबखोरी से उपजी आर्थिक बदहाली ने ही गांधी को ष्षराबबन्दी हेतु प्रेरित किया था। बुद्व, महावीर की जन्मस्थली और गांधी, बिनोबा एवं जयप्रकाष नारायण की कर्मस्थली बिहार में हिंसा को और हवा देने की घटना हादसे की तरह ही है। हिंसा के लिए बदनाम रही बिहार की छवि बदलने के बजाय प्रदेष सरकार ने हिंसा एवं अपराध को बढावा देने बाली एैसी आबकारी नीति बनाई है जिसके तहत सभी प्रकार की खुदरा षराब दुकानों की बंदोबस्ती अनिवार्य रूप से लाटरी द्वारा की जा रही है। इससे आम व्यवसाइयों के साथ साथ बेरोजगारों को भी इस व्यवसाय से जुडने का मौका मिला है। इस दिषा में सरकारी दावों की माने तो षराब व्यापार के एकाधिकार की समाप्ति होने के साथ ही खुदरा षराब के मूल्य पर नियंत्रण होगी। सरकार ने पंचायतों के लिए लक्ष्य निर्धारित किया है कि पहले 5500 रूपये के बजाय 8500 रूपये तक के षराब बेचे। लोगों को आकषर््िात करने के लिए सेल लगाये जा रहे है।वीडियो का इंस्तेमाल किया जा रहा है । सरकार की इस नीति की आढ में गांव -गांव में अवैध षराब निर्माण एवं बेचने का अभियान सा चल पडा है। हिंसा और अपराध के लिए बदनाम बिहार में विकास और सुषासन के नारों के साथ बनी नीतीष सरकार ने पिछले तीन वर्षों में अपराधियों और बाहुबलियों को सीखचों के अंदर भेजकर यह साबित करने का प्रयास किया कि सूबे में सुसासन स्थापित करने के प्रति वे प्रतिबद्व हैं मगर रेवेन्यू और रोजगार सृजन के नाम पर नीतीष सरकार के इस कवायद ने विरोधाभास की स्थिति पैदा कर दी है। प्रदेष के गांवो में बेतहाषा बढ रही षराब के दुकानों ने षराब पीने बालों की नयी फौज तैयार हो रही है । मद्यनिपेध के विरोध में सक्रिय संगठनों का कहना है कि इससे सर्वाधिक महिला एवं बच्चो के उपर चैतरफा दुप्प्रभाव पड रहा है । बिहार के कई इलाको में पूर्व से चल रहे वैध-अवैध षराब निर्माण के दौरान यह देखा गया है कि ष्षराबखोरी के प्रचलन से सबसे अधिक महिलाओं को जूझना पडता है। कई जगहों पर नये दुकान खोले जाने के खिलाफ नागरिकों ने विरोध प्रदर्षित भी किया है। पिछले कुछ वर्षों से चल रहे अवैध कच्ची षराब निर्माण का कारोबार आज स्थानीय लोगों के लिए बडी समस्या है। कई बार पुलिसिया कार्रबाई भी हुई किन्तु ष्षराब माफिया के सषक्त नेटवर्क ने पुलिस की कार्रवाई को प्रभावहीन कर दिया। ष्षराबनिर्माण के अवैध निर्माण से गांवों के लोग त्रस्त रहे है। पिछले कुछ वर्पो में इन गांवों में षराब के अडडों पर हत्या हो चुकी है ।पुलिस के अनुसार हत्या की वजह पियक्कडों की आपसी कहासुनी तथा षराब निर्माण में लगे बाहुबलियों के बीच वर्चस्व की लडाई रही है। समय-समय पर ग्रामीणों का प्रतिरोध भी होता रहा ह,ै लेकिन अवैध षराबनिर्माण के कारोबार ने पूरे इलाके का अपनी चपेट मे ले लिया। ष्षराब के अड्डों या ष्षराब के दुकानों से होकर महिलाओं या स्कूल की छात्राओं का गुजरना दूभर हो गया है। इन गांवों की महिलाएं आज भी अपने खेतो, खलिहानों, टोलो में खुद को असुरक्षित मानती है। बीते कुछ वर्पों में पूर्व से चल रहे गांवों के करीब पचहत्तर प्रतिषत घरों में पियक्कडो की फौज तैयार हो गयी है जिनके उपर षाम ढलते ही नषे का षुरूर चढ जाता है। रात के अंधेरों में महिलाओं के चीखने- चिल्लाने की आवाजें सुनाई देना आम दिनचर्या का हिस्सा हो गया है। जाहिर है षराबियों का कहर सबसे पहले अपनी पत्नियों के उपर ही टूटता है। ष्षराब के नषे में पति, पत्नी को पीटता है । उसे होष ही नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है। कई बार नषे की हालत में ही दुर्घटना हो जाती है और परिवार बिखर जाता है। इससे मासूम बच्चों के मानसिक दषा का अनुमान भी लगाया जा सकता है।सबसे दुखद बात यह है कि षराब निर्माण में नन्हे गरीब बच्चों को भी लगाया जाता है। कच्ची ष्षराब के अडृडों का जायजा लेने पर अजीबोगरीब दृष्य मिलता है । बजबजाती गंदगी, गंदगी के बीच खेलते बच्चे, भभकती भट्ठियां, षराब निर्माण में लगी महिला एव बच्चे। पास ही पियक्कडो का हुजूम जो बात -बात पर बजबजाती गंदगी से भी अधिक भद्दी गालियां बक रहा होता है। जाहिर है महिला हिंसा के लिए बदनाम बिहार में वर्तमान आबकारी नीति से हिंसा को बढावा ही मिलेगा। है। एन एफ एच एस- 3 के आंकडों के अनुसार राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों मेें 59 प्रतिषत पुरूष अपनी पत्नी को पीटते है। एक ओर नीतीष सरकार महिलाओं के सषक्तिकरण के पचास प्रतिषत आरक्षण भी देती है तो दूसरी ओर इन महिलाओं के मानमर्दन के लिए नषाखोरी को भी बढावा दे रही है। प्रदेष में युवाओं की चालीस प्रतिषत आबादी हैं। आंकडों के हिसाब से युवाओं कीे 4 करोड संख्या है। प्रदेष सरकार के विचाराधीन युवानीति के अभाव मे ंप्रदेष के सर्वांगिण विकास में इनकी भुमिका सुनिष्चित नहीं हो पा रही है एैसे में इन युवाओं में नषे की लत से कम-से-कम समाज का निर्माण तो नहीं ही किया जा सकता। दरअसल तमाम राज्य सरकारें आबकारी नीति घोषित करती है। ष्षराब राज्यों की कमाई का प्रमुख जरिया होती है। हर साल राज्य आबकारी लक्ष्य बढाते हैं। बाकायदा घोषित आबकारी नीति में ं पियक्कडों और ठेकेदारों का ख्याल रखा जाता है। गत वर्ष सरकारी राजस्व में वृद्वि हुई है। सरकारी आंकडों के अनुसार यह वृद्वि पिछले वित्तीय वर्प के अपेक्षाकृत 31.37 प्रतिषत अधिक है यानि बिहार सरकार ने इस वित्तीय वर्प में षराब निर्माण से 417.95 करोड की राजस्व प्राप्त की है। क्या महज राजस्व के लिए मानव संसाधान की इतनी बडे हिस्से के भविष्य के साथ खिलवाड उचित है ?


‘‘ लुकिंग लंदन गोईंग टोक्यो ’’
गया से नारायण मिश्रा
‘‘ जरा हौले हौले चलांे मेरे साजना हम भी पीछे हैं तुम्हारे ’’ आड़ी तिरछी रफ्तारों के मालिक इनदिनों टिकारी-गया के टेम्पो आपरेटर हो गए हैं। आपको बैठते ही ऐसा महसूस होगा ‘‘ लुकिंग लंदन गोईंग टोक्यो’’ आपको महसूस होने लगेगा कि शायद आप अपनी मंजिल के बगैर कही और जा रहे हैं। शायद यह आखिरी मंजिल भी हो सकती है। अधिकांष टेम्पो चालकों के पास ड्राईविंग लाइसेंस हैं ही नहीं। जिनकी उम्र 18 साल से नीचे हैं। सुबह से लेकर शाम तक छोटे कस्बों से लेकर शहर तक तेज रफ्तार में गाड़ी चलती है। गाड़ी रूकी पैसेंजर सवार हुआ या नहीं ट्रेन की तरह कभी गाड़ी 70 कभी 80 कभी बाऐं कभी दाऐ बैठने वालों का कलेजा मुहं को आ जाता है। जिला प्रषासन को टेम्पो वालों से कोई मतलब नहीं है। ट्राफिक पुलिस वालों का पैसा चाहिए किसकी जान जाएगी और किसकी बचेगी ये डीटीओ साहब तय करेंगे।


आज भी अधूरा है माउंटेन मैन का सपना
विकास को मोहताज है गेहलौर घाटी
गया से नारायण मिश्रा
बिहार सरकार चाहे लाख वादा करे फिर भी गेहलौर घाटी के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों की हालत में सुधार की गंुजाईष नहीं दीखती। कुछ यादें ऐसी होती हैं जो अतीत के गहवारे में ले जाती हैं। शायद गेहलौर घाटी अनाथ हो गया हो। गेहलौर घाटी की हालत बिलकुल वैसी ही हो गयी है जैसे किसी बच्चे के सर से बाप का साया उठ जाना। गांव बिलकुल वीरान हो गया है। ये लगता ही नहीं है कि कभी यहां माउंटेन मैन रहा करते थे। पत्रकारों के अपने दरवाजे पर पहंुचते ही बाबा के चहेरे पर खुषी झलकने लगती थी। वे उम्मीद करने लगते थे उनकी मेहनत पत्रकारों के कलम के द्वारा रंग लाएगी। बिलकुल उसी तरह सम्मान करते थे जैसे सबरी रामजी के लिए बैर चख-चख कर रखती थी। अपनी कुटिया में पत्रकारों को बैठाना और जो उनके वष में हो उसे खिलाकर ही विदा करना लेकिन शायद ये सारी बातें धुंधली हो गयी हैं। दषरथ बाबा भविष्य के गर्भ में समा चुके हैं, गेहलौर घाटी का कोई पुर्सानेहाल नहीं है। शहीदों के मजार पर हर बरस लगेंगे मेले वतन पर मरने वालों की बाकी यहीं निषां होगी ’’ आज बाबा की पहली पुण्यतिथि मनायी गयी, सरकारी अधिकारियों का भाषण और आष्वासन गांव वालों को मिला और सरकारी अधिकारी वापस लौट गए। बाबा का सपना कब और कैसे पूरा होगा ये बिहार सरकार जानती है या जिला प्रषासन। दषरथ बाबा के बिना आज भी गहलौर घाटी सुना-सुना सा लगा। बाबा एक छेनी और एक हथौड़ी के सहारे 20 वर्षों में पहाड़ का सीना चीरकर दो प्रखंडों को जोड़ने वाली सड़क का निर्माण किया था। इस कार्य में न किसी का श्रम लगा और न कोई आर्थिक सहायता मिली वरण इस सड़क के निर्माण होने के बाद इस जिले के वजीरगंज और अतरी प्रखंड की दूरी 80 किलोमीटर से घटकर 14 किलोमीटर हो गयी। 860 फीट लम्बा व 20 फीट चैड़ा सड़क का निर्माण हो गया। इस साहसिक कार्य के लिए 1999 में लिम्का बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में दषरथ मांझी का नाम दर्ज कर लिया गया। इससे प्रभावित होकर मुख्यमंत्री नीतीष कुमार ने दषरथ मांझी को एक दिन अपने कुर्सी पर बैठा दिया। उनका नाम पदम्श्री पुरस्कार के लिए अनुषंसित कर दिया गया था। दषरथ मांझी के अधूरे कार्यो को पूरा करने की सरकारी घोषणा कर दी गयी। आनन-फानन में दषरथ बाबा ने भी सरकार से मिली 5 एकड़ जमीन सरकार को लौटाते हुए उस जगह अस्पताल खोलने की इच्छा व्यक्त कर डाली। इस बीच दषरथ मांझी अस्वस्थ हुए उपचार के लिए राज्य सरकार ने दिल्ली एम्स हाॅस्पीटल भेजा गया। इसी अस्पताल में दषरथ मांझी ने अपनी जिन्दगी की आखरी सांस ली। मौत के एक वर्ष बीत जाने के बाद दिल्ली एम्स हाॅस्पीटल ने दषरथ मांझी के परिवार को एक पत्र भेजा है। जिसमें दषरथ मांझी के उपचार में आयी खर्च का ब्योरा भेजा गया। इस पत्र को लेकर तरह-तरह का कयास लगाया जाता रहा है। समझा जाता है कि पत्र से उत्पन्न भ्रम की स्थिति को दूर करने के उद्देष्य से राज्य सरकार के दो मंत्रियों ने इस गांव का दौरा किया है। डा. गीता प्रसाद निदेषक प्रमुख द्वारा स्थानीय आयुक्त को भेजे गये पत्र में कहा है कि स्वास्थ्य विभाग के संकल्प सं. 2363/ 14 दिनांक 12-02-08 1484/ 14 दिनांक 26-11-07 के प्रसंग में मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष के लिए गठित अधिकृत समिति की स्वीकृति के आधार दषरथ मांझी ग्राम-गहलौर, पो-ऐरु, जिला-गया के स्वयं की कैंसर रोग की एम्स नई दिल्ली अस्पताल में चिकित्सा में हुए व्यय का मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष रुपया 171018/ एक लाख एकहत्तर हजार 18 रुपये को विमुक्त किया जाता है। उक्त राषि जिस मद से आपके द्वारा कर्ज के रुप में ली गई थी उसका सामंजन उपरोक्त स्वीकृत राषि से कर ली जाये। आपके पत्र के नाम से निर्गत उक्त राषि का काॅस चेक संख्या ......... मुल्य रुप में सलंगन है। दषरथ मांझी के स्वयं की चिकित्सोपरान्त चिकित्सा प्रमाण पत्र सम्पूर्ण व्यय ब्यौरा के साथ अनुदान राषि की उपयोगिता का प्रमाण पत्र स्वास्थ्य विभाग पटना को निष्चिित रुप से उपलब्ध कराने का कष्ट करे। जिसे समीक्षा निदेषक प्रमुख स्वास्थ्य सेवाएं बिहार पटना प्रतिहस्ताक्षरित करेगें। बहरहाल आरोपुर गांव में मंगुरा नदी पर पुल निर्माण, पथ निर्माण और गहलौर घाटी में अस्पताल निर्माण कार्य में हाथ नहीं लगाया जा सका है। दषरथ मांझी के पुत्र और पुत्री विकलांग है उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है।





असीम संभावनाओं के बावजूद बांकेधाम का विकास ठप
षेरघाटी से राजेष कुमार/बांकेबाजार से कमल कुमार वर्मा
बांकेधाम में श्रावणी मेला इनदिनों बांकेधाम में जोर पकड़ चुका है और मेले की व्यवस्था के नाम पर कुछ भी ऐसा नहीं हुआ है जिससे यहां आने वाले दर्षनार्थियों को सहुलियतें मिल सके। सरकार चाहे तो बांकेधाम को बिहार का एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल जरूर बनवा सकती है। जिसकी यहां असीम संभावनाऐं हैं। मगध प्रमण्डल के मुख्यालय से पचास किलोमीटर दक्षिण-पष्चिम में अवस्थित बांकेबाजार की पहाड़ी। जिसे अब यहां की जनता बांकेधाम के नाम से पुकारती है। बांकेधाम धरती चप्पा-चप्पा ऐतिहासिक अवषेषों से भरा पड़ा है। प्रकृति की अनुपम छटाओं के बीच पर्यटन एवं पुरातत्व विभाग के उपेक्षा का षिकार है। यहां पर्यटन की असीम संभावनाएं है बांकेधाम में। यह पहाड़ी दो किलोमीटर लम्बी एवं एक किलोमीटर से अधिक चैड़ी है। जिसके पष्चिम कोर पर है मडावर नदी की दक्षिणी वाहिनी धारा प्रवाहित होती रहती है। इन पहाड़ी पर कई श्रृंखलायें है जिन पर मिले भग्नावषेषों एवं नवनिर्मित मंदिरों के आधार पर अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। पहाड़ी के पुरब दूसरी श्रृखंला पर भगवान आषुतोष षिव का भव्य नूतन मंदिर बन चुका है। जहां प्रारंभ में खुदाई में स्लेटी हरि तिमारिये पत्थर का गणेष की द्विमुणी और पार्वती की प्रतिमाएं मिली थी। षिवलिंग का एक प्रस्तर खण्ड से ढका था जिसे हटाने पर नीली आभालिए षिवलिंग अर्धे के साथ निकले। तालाब की खुदाई से एक सिक्का भी प्राप्त हुआ है जिसके एक पहलु पर हनुमानजी का चित्र तो दूसरे पहलु पर श्री राम परिवार लक्ष्मण के साथ है। जिसपर 47340 हनुमान सनू लिखा अष्टधातु के मोटा सिक्का है। जिसे मध्य बिहार ग्रामीण बैंक में सुरक्षित रखा गया है। इस पहाड़ के आस-पास एक सौ एक मंदिर के भी प्रमाण मिलते है और इस पर्वत पर अनेक गुफाएं है जो ऋषि मुनियों के तपोस्थली माना जाता है। जहां से सभी लोगों को देखा जा सकता है, लेकिन उस पर बैठे जगह पर कोई नहीं देख सकता है। पहली पहाड़ी की श्रृखंला पर सूर्यपुरी में सूर्य की तीन मग्न प्रतिमाएं अवस्थित है जो काले पत्थर की बनी सप्त अष्वरथ सारथी के साथ भगवान सूर्य की मूर्ति दिखाई गई है। जिसके दोनों ओर पत्निया संज्ञा और छाया है। एक ओर तालाब के अवषेष निकले है जिसे श्रमदान से खुदाई कर बनाया गया है। सूर्यपुरी के पुरब सपाट चैरस स्थल पर इन के टुकड़े ढ़ेर के रुप में बिखरे पड़े है। इसी के सटे मंदिर के बगल में मंडप बना हुआ है। प्रत्येक वर्ष यहां दान एवं चढ़ावा से लाखों रुपया का आय होता है जिसमें षिव मंदिर, सूर्यमंदिर एवं विषला धर्मषाला का निर्माण कराया गया है। यहां श्रावणी मेला एक माह तक लगता है जिसे मंदिर समिति के अनुवाई में खेल तमाषा एवं मीना बाजार लगाया जाता है। इसके आय से मंदिर के आवष्यकता अनुसार कार्य को कराया जाता है। यद्यपि बांकेधाम को पर्यटन विभाग से विकसित किया जाये तो यह एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल बन सकता है।


गोह में कैसे ढह गया लाल झंडे का गढ़
भाकपा में रामशरण जैसे नेताओं का अभाव
दाउदनगर (औरंगाबाद) से आलोक कुमार
1977 ई0 से गोह विधानसभा भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का गढ़ माना जाता था। आज इसका परिदृश्य ऐसा हो गया है कि लगता है कि अगर भाकपा अपने बूते चुनाव लड़ना चाहे तो शायद जमानत भी बचाना मुश्किल हो जायेगा। आखिर क्यों? जिस समय 1977 में इस विधानसभा क्षेत्र से कम्युनिष्ट रामशरण यादव ने चुनाव लड़ा था उस समय पार्टी का संगठन काफी मजबूत तो था ही रामशरण यादव का व्यक्तित्व भी ऐसा था कि न चाहकर भी जो लोग उन्हंे वोट दे दिया करते थे वहीं कम्युनिष्ट कहीं यादव की जीत का मूल फार्मूला था। जातीय आधार पार्टी का संगठन पिछड़ी, अति पिछड़ी एवं दलितों का समर्थन। इतने लोगों के वोटों पर कम्युनिष्ट यादव को जबर्दस्त पकड़ थी। यही कारण था कि दूसरे उम्मीदवार हाथ-पांव मारने की कोशिश तो करते थे, परंतु उन्हंे सफलता नहीं मिल पाती थी। उनकी जीत का प्रमुख आधार जातीय आधार था। यादव जातीयों ने उन्हें अपना नेता मान लिया था। ऐसे भी इस क्षेत्र में सबसे अधिक वोट यादव जाति का ही है। कम्युनिष्ट, यादव के बाद जो भी यादव जाति से उम्मीदवार आये उन्हें यहां के यादवों ने पचा नहीं सका। दूसरे दो-तीन उम्मीदवार होने की वजह से आपस में वोटों का विखराव होता रहा और तीसरा यह कि कम्युनिष्ट रामशरण यादव को अन्य जितनी जातियों का समर्थन मिलते रहा था, नहीं मिला। परिणामस्वरूप पराजय का ही मुंह हमेशा देखना पड़ा। ऐसे भी कम्युनिष्ट रामशरण यादव जब-जब चुनाव लड़े थे तो उनके साथ भुमिहार जाति के भी उम्मीदवार चुनाव लड़ते रहे थे। इस बीच राजपूत जातियों ने अपना खेल खेलना नहीं छोड़ा था। राजपूत जाति भूमिहार को वोट देना नहीं चाहते थे। इसलिए, वह उस वोट का कम्युनिष्ट रामशरण यादव को मिल जाया करता था और इनकी जीत पक्की हो जाया करती थी। इसी बीच 1985 ई0 में भूमिहार जाति से एक लोकप्रिय नेता डी0 के0 शर्मा चुनाव लड़ने आये थे। उनमें लोकप्रियता का अजीब जादू था। मिलने जूलने और लोगों को प्रभावित करने की अजीब तरकीब थी। उस दौरान शर्मा को अन्य तमाम जातियों का वोट तो मिला ही था कुशवाहा और राजपूत जातियों का भी वोट मिला था। फलस्वरूप, चुनाव जितने में सफल हो गये थे। फिर दूसरी बार वे चुनाव हार गये थे। परन्तु तीसरी बार उनके द्वारा किये गये विकास के नाम पर फिर उनकी जीत हुयी थी। परन्तु इस बार लोगों की उम्मीद पर पानी फिर गया। जब 2005 मंें चुनाव हुआ तो गोह विधानसभा क्षेत्र से लोजपा के टिकट पर रंजीत कुशवाहा को चुनाव लड़ जाने से और दो-दो यादव जातियों का उम्मीदवार बनने का सीधा लाभ जदयू प्रत्याशी डा0 रणविजय कुमार को मिला था और वे चुनाव जीत गये। इस दरम्यान न कम्युनिष्ट रामशरण यादव इस दुनिया में रहे न हीं डी0 के शर्मा। कई टर्म तक कम्युनिष्ट रामशरण यादव को इस विधानसभा क्षेत्र से प्रतिनिधित्व करते रहने से इससे भाकपा का गढ़ माना जाता था। जबकि, काॅ0 रामशरण यादव पार्टी गत आधार पर विधायक नहीं बने थे। यह सबकुछ उनके व्यक्तिगत व्यक्तित्व का परिणाम था। वे ऐसे व्यक्ति थे जो गरीब-अमीर सभी के दिलों पर राज करते थे। हां इतना जरूर है कि वे जबतक इस क्षेत्र का विधायक रहे तबतक भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का जनाधार सुदृढ़ जरूर रहा था। पार्टी में अनुशासन तो था ही पार्टी काफी सक्रिय थी। कम्युनिष्ट रामशरण यादव को इस दुनिया से कूच करते ही भाकपा का जनाधार भी कूच कर गया। अब पार्टी में वैसी सक्रियता भी नहीं रही। न रामशरण यादव की तरह व्यक्तित्व वाले पार्टी में नेता ही हैं जो अपनी लोकप्रियता से पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलितों और राजपूतों के वोट को प्रभावित कर सकें। वैसे तो भाकपा में कई नेताओं ने कम्युनिष्ट रामशरण यादव बनने का स्वांग रचा। परन्तु उनके व्यक्तित्व को समाहित नहीं कर सका। आज पार्टी का जनाधार भी काफी खिसक चुका है। पार्टी में पूर्व की तरह अनुशासन भी नहीं है। इससे नहीं लगता है कि आने वाले दिनों में पुनः गोह विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का सुनहला अवसर भाकपा को मिल सकती है। अगर कोई सोंच रहा होगा तो वह दिवास्वपन्न की तरह ही होगा।



हाय रे भगवान इंद्र तुम्हे दया क्यों नहीं आती !
जहानाबाद में अकाल से तबाही शुरू
इंद्र को मनाने के लिए लड़कियों ने खेतों में नंगा हो चलाया हल
पटना से मंगलानंद/जहानाबाद से संजय कुमार
भगवान इंद्र को मनाने के लिए किसानों के पास जितना जतन था सब करके थक चुके हैं। भगवान इंद्र को मनाने के लिए यहां तक हुआ कि नाबालिग लड़कियों ने खेतों में नंगे होकर हल तक चलाया परंतु भगवान इंद्र हैं कि उन्हें दया आती नहीं। रात के 12 बजे जब सारा गांव सो रहा था तो गया-जहानाबाद जिले के कई गांवों में गांव की लड़कियां खेतों में नंगी हो हल चला रही थी। बिहार की पुरानी परंपराओं में यह भी एक बड़ी परंपरा रही है। पुरानी पंरपराओं के अनुसार गांवों में हर प्रकार के अनुष्ठान हुए परंतु नतीजा कुछ भी नहीं निकला। भगवान इंद्र ने भी सारी परीक्षाऐं ली परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। कम बारिष ने गया-जहानाबाद के किसानों के चेहरे पर उदासी ला दी है। किसानों को रात में न चैन है न दिन में। हर समय किसान बादलों की ओर टकटकी लगाए रूंआसे हो भगवान इंद्र को कोस रहे हैं। कम बारिष के कारण किसानों को इस बार भीषण तबाही झेलनी पड़ रही है। पानी का भूमिगत जलस्तर काफी नीचे रहने के कारण डीजल सेट भी पानी खींचने में नाकामयाब साबित हो रहे है। धान के बिचड़े बचाते बचाते किसान भी मानों झुलस से गए हैं। किसान डीजल चालित पंप सेटों का भी सहारा ले रहे है परंतु आसमान से पानी नहीं होने के कारण अब तक धान की रोपनी शुरू भी नहीं हो सकी है। जहानाबाद जिले के कृषि विभाग के अधिकारियों का भी मानना है िकइस साल जिले में भीषण अकाल की संभावना है। सावन माह भी खत्म होने को आ गया है ऐसे हालात में धान की रोपनी नहीं होने से अब धान की उपज पर पूरी तरह ग्रहण लग सा गया है। जेठुआ और भदई फसलों की रोपाई का काम पानी के बिना पूरा नहीं हो सका है। मानसून की मार ने जहानाबाद में सबको रूला दिया है। पूरे इलाके में बेरोजगारी की मार लोगों को झेलने पड़ रहे हैं। बेरोजगार युवक और खेतीहर मजदूर दूसरे राज्यों के पलायन में लग गए हैं। एक गैर सरकारी संस्था द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार जहानाबाद और अरवल जिले में मात्र एक फीसदी ही धान की रोपायी हो सकी है। बाकी केे 99 प्रतिषत भूभाग अभी परती पड़े हैं। आद्र्रा नक्षत्र में लगाए गए बिचड़े तो पूरी तरह तैयार होकर सूख चुके है। जहानाबाद जिले के 95 प्रतिषत आहर, तालाब आदि जलाषयों में पानी देखने को भी नहीं मिल रहा है। भूर्गभीय जल श्रोतों के इस साल काफी नीचे चले जाने के आसार है। बिहार की मौजूदा हालत यह हो गयी है कि कही बाढ़ से लोग मर रहे हैं तो कही चुल्लु भर पानी नहीं है लोगों के लिए।

सुषासन का मधुषाला
स्कूलों और मंदिरों के बगल में चलते हैं मदिरालय
पटना से मंगलानंद/धर्मेन्द्र कुमार
ये अलग बात है साकी कि मुझे होष नहीं है होष इतना है कि सुषासन मदहोष नहीं है। हमने इतना ख्याल रखा है स्कूल और मंदिरों के बगल में मधुषाला का लाइसेंस आम कर दिया है। इसलिए कि ये बच्चे ही और धर्मगुरू ही देष की रीढ़ हैं। हम लाए थे तुफान से कष्ती निकाल के इस देष को रखना मेरे बच्चों संभाल के। बिहार सरकार का नषा इतना बढ़ गया है कि वो सर चढ़ कर बोल रहा है। इतना होष भी नहीं है कहां स्कूल है और कहां मंदिर है। आप को हर कदम कोई न कोई नाली में गिरा हुआ मिल जाय तो समझ लिजीए आप बिहार में हैं। जहरीली षराब से गुजरात में मौत की लोमहर्षक घटना को हमने देखा और सुना। देष के अन्य जगहो में कुछ इसी तरह की घटनाएं दोहरायी जा रही है । इसके बावजूद मौत का सामान बेचने की नीति को बढावा देने की प्रवृति रूक नहीं रही है। विकास पुरूष नीतीष कुमार बिहार के निर्माण के बजाय पूरे बिहार में षराबखोरी को बढावा देने बाली एैसी नीति (आबकारी नीति-.2007) बनायी है जिससे कृषि प्रधान बिहार में कृषि क्रांति , ष्वेत क्रांति के बजाय मदिरा कं्राति को बढावा मिल रही है। लोग हैरत में है कि कृषि एवं पषुपालन को बढावा देने के वायदे के साथ बनी नीतीष सरकार पूरे बिहार के गांव-गांव में ष्षराबखोरी को बढावा देने बाली नीति पर क्यों कदम आगे बढा रही है ? आखिर सरकार उसी अंतिम व्यक्ति का आर्थिक नुकसान नहीं कर रही है जो किसी तरह नरेगा से सौ-पचास रूपये कमाकर घर लौटता है, लेकिन घर पहंुचने के पहले वह देषी ष्षराब से अपने गले को तर कर लेता है । बीबी -बच्चों के लिए रोजमर्रे की चीजों के प्रबंध करने बजाय वह खाली हाथ घर मदहोष होकर लौटता है। गांधी यह मानते थे जो षराब पीते है उनके परिवार सदा अभाव में जीते है। षराबखोरी से उपजी आर्थिक बदहाली ने ही गांधी को ष्षराबबन्दी हेतु प्रेरित किया था। बुद्व, महावीर की जन्मस्थली और गांधी, बिनोबा एवं जयप्रकाष नारायण की कर्मस्थली बिहार में हिंसा को और हवा देने की घटना हादसे की तरह ही है। हिंसा के लिए बदनाम रही बिहार की छवि बदलने के बजाय प्रदेष सरकार ने हिंसा एवं अपराध को बढावा देने बाली एैसी आबकारी नीति बनाई है जिसके तहत सभी प्रकार की खुदरा षराब दुकानों की बंदोबस्ती अनिवार्य रूप से लाटरी द्वारा की जा रही है। इससे आम व्यवसाइयों के साथ साथ बेरोजगारों को भी इस व्यवसाय से जुडने का मौका मिला है। इस दिषा में सरकारी दावों की माने तो षराब व्यापार के एकाधिकार की समाप्ति होने के साथ ही खुदरा षराब के मूल्य पर नियंत्रण होगी। सरकार ने पंचायतों के लिए लक्ष्य निर्धारित किया है कि पहले 5500 रूपये के बजाय 8500 रूपये तक के षराब बेचे। लोगों को आकषर््िात करने के लिए सेल लगाये जा रहे है।वीडियो का इंस्तेमाल किया जा रहा है । सरकार की इस नीति की आढ में गांव -गांव में अवैध षराब निर्माण एवं बेचने का अभियान सा चल पडा है। हिंसा और अपराध के लिए बदनाम बिहार में विकास और सुषासन के नारों के साथ बनी नीतीष सरकार ने पिछले तीन वर्षों में अपराधियों और बाहुबलियों को सीखचों के अंदर भेजकर यह साबित करने का प्रयास किया कि सूबे में सुसासन स्थापित करने के प्रति वे प्रतिबद्व हैं मगर रेवेन्यू और रोजगार सृजन के नाम पर नीतीष सरकार के इस कवायद ने विरोधाभास की स्थिति पैदा कर दी है। प्रदेष के गांवो में बेतहाषा बढ रही षराब के दुकानों ने षराब पीने बालों की नयी फौज तैयार हो रही है । मद्यनिपेध के विरोध में सक्रिय संगठनों का कहना है कि इससे सर्वाधिक महिला एवं बच्चो के उपर चैतरफा दुप्प्रभाव पड रहा है । बिहार के कई इलाको में पूर्व से चल रहे वैध-अवैध षराब निर्माण के दौरान यह देखा गया है कि ष्षराबखोरी के प्रचलन से सबसे अधिक महिलाओं को जूझना पडता है। कई जगहों पर नये दुकान खोले जाने के खिलाफ नागरिकों ने विरोध प्रदर्षित भी किया है। पिछले कुछ वर्षों से चल रहे अवैध कच्ची षराब निर्माण का कारोबार आज स्थानीय लोगों के लिए बडी समस्या है। कई बार पुलिसिया कार्रबाई भी हुई किन्तु ष्षराब माफिया के सषक्त नेटवर्क ने पुलिस की कार्रवाई को प्रभावहीन कर दिया। ष्षराबनिर्माण के अवैध निर्माण से गांवों के लोग त्रस्त रहे है। पिछले कुछ वर्पो में इन गांवों में षराब के अडडों पर हत्या हो चुकी है ।पुलिस के अनुसार हत्या की वजह पियक्कडों की आपसी कहासुनी तथा षराब निर्माण में लगे बाहुबलियों के बीच वर्चस्व की लडाई रही है। समय-समय पर ग्रामीणों का प्रतिरोध भी होता रहा ह,ै लेकिन अवैध षराबनिर्माण के कारोबार ने पूरे इलाके का अपनी चपेट मे ले लिया। ष्षराब के अड्डों या ष्षराब के दुकानों से होकर महिलाओं या स्कूल की छात्राओं का गुजरना दूभर हो गया है। इन गांवों की महिलाएं आज भी अपने खेतो, खलिहानों, टोलो में खुद को असुरक्षित मानती है। बीते कुछ वर्पों में पूर्व से चल रहे गांवों के करीब पचहत्तर प्रतिषत घरों में पियक्कडो की फौज तैयार हो गयी है जिनके उपर षाम ढलते ही नषे का षुरूर चढ जाता है। रात के अंधेरों में महिलाओं के चीखने- चिल्लाने की आवाजें सुनाई देना आम दिनचर्या का हिस्सा हो गया है। जाहिर है षराबियों का कहर सबसे पहले अपनी पत्नियों के उपर ही टूटता है। ष्षराब के नषे में पति, पत्नी को पीटता है । उसे होष ही नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है। कई बार नषे की हालत में ही दुर्घटना हो जाती है और परिवार बिखर जाता है। इससे मासूम बच्चों के मानसिक दषा का अनुमान भी लगाया जा सकता है।सबसे दुखद बात यह है कि षराब निर्माण में नन्हे गरीब बच्चों को भी लगाया जाता है। कच्ची ष्षराब के अडृडों का जायजा लेने पर अजीबोगरीब दृष्य मिलता है । बजबजाती गंदगी, गंदगी के बीच खेलते बच्चे, भभकती भट्ठियां, षराब निर्माण में लगी महिला एव बच्चे। पास ही पियक्कडो का हुजूम जो बात -बात पर बजबजाती गंदगी से भी अधिक भद्दी गालियां बक रहा होता है। जाहिर है महिला हिंसा के लिए बदनाम बिहार में वर्तमान आबकारी नीति से हिंसा को बढावा ही मिलेगा। है। एन एफ एच एस- 3 के आंकडों के अनुसार राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों मेें 59 प्रतिषत पुरूष अपनी पत्नी को पीटते है। एक ओर नीतीष सरकार महिलाओं के सषक्तिकरण के पचास प्रतिषत आरक्षण भी देती है तो दूसरी ओर इन महिलाओं के मानमर्दन के लिए नषाखोरी को भी बढावा दे रही है। प्रदेष में युवाओं की चालीस प्रतिषत आबादी हैं। आंकडों के हिसाब से युवाओं कीे 4 करोड संख्या है। प्रदेष सरकार के विचाराधीन युवानीति के अभाव मे ंप्रदेष के सर्वांगिण विकास में इनकी भुमिका सुनिष्चित नहीं हो पा रही है एैसे में इन युवाओं में नषे की लत से कम-से-कम समाज का निर्माण तो नहीं ही किया जा सकता। दरअसल तमाम राज्य सरकारें आबकारी नीति घोषित करती है। ष्षराब राज्यों की कमाई का प्रमुख जरिया होती है। हर साल राज्य आबकारी लक्ष्य बढाते हैं। बाकायदा घोषित आबकारी नीति में ं पियक्कडों और ठेकेदारों का ख्याल रखा जाता है। गत वर्ष सरकारी राजस्व में वृद्वि हुई है। सरकारी आंकडों के अनुसार यह वृद्वि पिछले वित्तीय वर्प के अपेक्षाकृत 31.37 प्रतिषत अधिक है यानि बिहार सरकार ने इस वित्तीय वर्प में षराब निर्माण से 417.95 करोड की राजस्व प्राप्त की है। क्या महज राजस्व के लिए मानव संसाधान की इतनी बडे हिस्से के भविष्य के साथ खिलवाड उचित है ?


‘‘ लुकिंग लंदन गोईंग टोक्यो ’’
गया से नारायण मिश्रा
‘‘ जरा हौले हौले चलांे मेरे साजना हम भी पीछे हैं तुम्हारे ’’ आड़ी तिरछी रफ्तारों के मालिक इनदिनों टिकारी-गया के टेम्पो आपरेटर हो गए हैं। आपको बैठते ही ऐसा महसूस होगा ‘‘ लुकिंग लंदन गोईंग टोक्यो’’ आपको महसूस होने लगेगा कि शायद आप अपनी मंजिल के बगैर कही और जा रहे हैं। शायद यह आखिरी मंजिल भी हो सकती है। अधिकांष टेम्पो चालकों के पास ड्राईविंग लाइसेंस हैं ही नहीं। जिनकी उम्र 18 साल से नीचे हैं। सुबह से लेकर शाम तक छोटे कस्बों से लेकर शहर तक तेज रफ्तार में गाड़ी चलती है। गाड़ी रूकी पैसेंजर सवार हुआ या नहीं ट्रेन की तरह कभी गाड़ी 70 कभी 80 कभी बाऐं कभी दाऐ बैठने वालों का कलेजा मुहं को आ जाता है। जिला प्रषासन को टेम्पो वालों से कोई मतलब नहीं है। ट्राफिक पुलिस वालों का पैसा चाहिए किसकी जान जाएगी और किसकी बचेगी ये डीटीओ साहब तय करेंगे।


आज भी अधूरा है माउंटेन मैन का सपना
विकास को मोहताज है गेहलौर घाटी
गया से नारायण मिश्रा
बिहार सरकार चाहे लाख वादा करे फिर भी गेहलौर घाटी के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों की हालत में सुधार की गंुजाईष नहीं दीखती। कुछ यादें ऐसी होती हैं जो अतीत के गहवारे में ले जाती हैं। शायद गेहलौर घाटी अनाथ हो गया हो। गेहलौर घाटी की हालत बिलकुल वैसी ही हो गयी है जैसे किसी बच्चे के सर से बाप का साया उठ जाना। गांव बिलकुल वीरान हो गया है। ये लगता ही नहीं है कि कभी यहां माउंटेन मैन रहा करते थे। पत्रकारों के अपने दरवाजे पर पहंुचते ही बाबा के चहेरे पर खुषी झलकने लगती थी। वे उम्मीद करने लगते थे उनकी मेहनत पत्रकारों के कलम के द्वारा रंग लाएगी। बिलकुल उसी तरह सम्मान करते थे जैसे सबरी रामजी के लिए बैर चख-चख कर रखती थी। अपनी कुटिया में पत्रकारों को बैठाना और जो उनके वष में हो उसे खिलाकर ही विदा करना लेकिन शायद ये सारी बातें धुंधली हो गयी हैं। दषरथ बाबा भविष्य के गर्भ में समा चुके हैं, गेहलौर घाटी का कोई पुर्सानेहाल नहीं है। शहीदों के मजार पर हर बरस लगेंगे मेले वतन पर मरने वालों की बाकी यहीं निषां होगी ’’ आज बाबा की पहली पुण्यतिथि मनायी गयी, सरकारी अधिकारियों का भाषण और आष्वासन गांव वालों को मिला और सरकारी अधिकारी वापस लौट गए। बाबा का सपना कब और कैसे पूरा होगा ये बिहार सरकार जानती है या जिला प्रषासन। दषरथ बाबा के बिना आज भी गहलौर घाटी सुना-सुना सा लगा। बाबा एक छेनी और एक हथौड़ी के सहारे 20 वर्षों में पहाड़ का सीना चीरकर दो प्रखंडों को जोड़ने वाली सड़क का निर्माण किया था। इस कार्य में न किसी का श्रम लगा और न कोई आर्थिक सहायता मिली वरण इस सड़क के निर्माण होने के बाद इस जिले के वजीरगंज और अतरी प्रखंड की दूरी 80 किलोमीटर से घटकर 14 किलोमीटर हो गयी। 860 फीट लम्बा व 20 फीट चैड़ा सड़क का निर्माण हो गया। इस साहसिक कार्य के लिए 1999 में लिम्का बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में दषरथ मांझी का नाम दर्ज कर लिया गया। इससे प्रभावित होकर मुख्यमंत्री नीतीष कुमार ने दषरथ मांझी को एक दिन अपने कुर्सी पर बैठा दिया। उनका नाम पदम्श्री पुरस्कार के लिए अनुषंसित कर दिया गया था। दषरथ मांझी के अधूरे कार्यो को पूरा करने की सरकारी घोषणा कर दी गयी। आनन-फानन में दषरथ बाबा ने भी सरकार से मिली 5 एकड़ जमीन सरकार को लौटाते हुए उस जगह अस्पताल खोलने की इच्छा व्यक्त कर डाली। इस बीच दषरथ मांझी अस्वस्थ हुए उपचार के लिए राज्य सरकार ने दिल्ली एम्स हाॅस्पीटल भेजा गया। इसी अस्पताल में दषरथ मांझी ने अपनी जिन्दगी की आखरी सांस ली। मौत के एक वर्ष बीत जाने के बाद दिल्ली एम्स हाॅस्पीटल ने दषरथ मांझी के परिवार को एक पत्र भेजा है। जिसमें दषरथ मांझी के उपचार में आयी खर्च का ब्योरा भेजा गया। इस पत्र को लेकर तरह-तरह का कयास लगाया जाता रहा है। समझा जाता है कि पत्र से उत्पन्न भ्रम की स्थिति को दूर करने के उद्देष्य से राज्य सरकार के दो मंत्रियों ने इस गांव का दौरा किया है। डा. गीता प्रसाद निदेषक प्रमुख द्वारा स्थानीय आयुक्त को भेजे गये पत्र में कहा है कि स्वास्थ्य विभाग के संकल्प सं. 2363/ 14 दिनांक 12-02-08 1484/ 14 दिनांक 26-11-07 के प्रसंग में मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष के लिए गठित अधिकृत समिति की स्वीकृति के आधार दषरथ मांझी ग्राम-गहलौर, पो-ऐरु, जिला-गया के स्वयं की कैंसर रोग की एम्स नई दिल्ली अस्पताल में चिकित्सा में हुए व्यय का मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष रुपया 171018/ एक लाख एकहत्तर हजार 18 रुपये को विमुक्त किया जाता है। उक्त राषि जिस मद से आपके द्वारा कर्ज के रुप में ली गई थी उसका सामंजन उपरोक्त स्वीकृत राषि से कर ली जाये। आपके पत्र के नाम से निर्गत उक्त राषि का काॅस चेक संख्या ......... मुल्य रुप में सलंगन है। दषरथ मांझी के स्वयं की चिकित्सोपरान्त चिकित्सा प्रमाण पत्र सम्पूर्ण व्यय ब्यौरा के साथ अनुदान राषि की उपयोगिता का प्रमाण पत्र स्वास्थ्य विभाग पटना को निष्चिित रुप से उपलब्ध कराने का कष्ट करे। जिसे समीक्षा निदेषक प्रमुख स्वास्थ्य सेवाएं बिहार पटना प्रतिहस्ताक्षरित करेगें। बहरहाल आरोपुर गांव में मंगुरा नदी पर पुल निर्माण, पथ निर्माण और गहलौर घाटी में अस्पताल निर्माण कार्य में हाथ नहीं लगाया जा सका है। दषरथ मांझी के पुत्र और पुत्री विकलांग है उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है।





असीम संभावनाओं के बावजूद बांकेधाम का विकास ठप
षेरघाटी से राजेष कुमार/बांकेबाजार से कमल कुमार वर्मा
बांकेधाम में श्रावणी मेला इनदिनों बांकेधाम में जोर पकड़ चुका है और मेले की व्यवस्था के नाम पर कुछ भी ऐसा नहीं हुआ है जिससे यहां आने वाले दर्षनार्थियों को सहुलियतें मिल सके। सरकार चाहे तो बांकेधाम को बिहार का एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल जरूर बनवा सकती है। जिसकी यहां असीम संभावनाऐं हैं। मगध प्रमण्डल के मुख्यालय से पचास किलोमीटर दक्षिण-पष्चिम में अवस्थित बांकेबाजार की पहाड़ी। जिसे अब यहां की जनता बांकेधाम के नाम से पुकारती है। बांकेधाम धरती चप्पा-चप्पा ऐतिहासिक अवषेषों से भरा पड़ा है। प्रकृति की अनुपम छटाओं के बीच पर्यटन एवं पुरातत्व विभाग के उपेक्षा का षिकार है। यहां पर्यटन की असीम संभावनाएं है बांकेधाम में। यह पहाड़ी दो किलोमीटर लम्बी एवं एक किलोमीटर से अधिक चैड़ी है। जिसके पष्चिम कोर पर है मडावर नदी की दक्षिणी वाहिनी धारा प्रवाहित होती रहती है। इन पहाड़ी पर कई श्रृंखलायें है जिन पर मिले भग्नावषेषों एवं नवनिर्मित मंदिरों के आधार पर अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। पहाड़ी के पुरब दूसरी श्रृखंला पर भगवान आषुतोष षिव का भव्य नूतन मंदिर बन चुका है। जहां प्रारंभ में खुदाई में स्लेटी हरि तिमारिये पत्थर का गणेष की द्विमुणी और पार्वती की प्रतिमाएं मिली थी। षिवलिंग का एक प्रस्तर खण्ड से ढका था जिसे हटाने पर नीली आभालिए षिवलिंग अर्धे के साथ निकले। तालाब की खुदाई से एक सिक्का भी प्राप्त हुआ है जिसके एक पहलु पर हनुमानजी का चित्र तो दूसरे पहलु पर श्री राम परिवार लक्ष्मण के साथ है। जिसपर 47340 हनुमान सनू लिखा अष्टधातु के मोटा सिक्का है। जिसे मध्य बिहार ग्रामीण बैंक में सुरक्षित रखा गया है। इस पहाड़ के आस-पास एक सौ एक मंदिर के भी प्रमाण मिलते है और इस पर्वत पर अनेक गुफाएं है जो ऋषि मुनियों के तपोस्थली माना जाता है। जहां से सभी लोगों को देखा जा सकता है, लेकिन उस पर बैठे जगह पर कोई नहीं देख सकता है। पहली पहाड़ी की श्रृखंला पर सूर्यपुरी में सूर्य की तीन मग्न प्रतिमाएं अवस्थित है जो काले पत्थर की बनी सप्त अष्वरथ सारथी के साथ भगवान सूर्य की मूर्ति दिखाई गई है। जिसके दोनों ओर पत्निया संज्ञा और छाया है। एक ओर तालाब के अवषेष निकले है जिसे श्रमदान से खुदाई कर बनाया गया है। सूर्यपुरी के पुरब सपाट चैरस स्थल पर इन के टुकड़े ढ़ेर के रुप में बिखरे पड़े है। इसी के सटे मंदिर के बगल में मंडप बना हुआ है। प्रत्येक वर्ष यहां दान एवं चढ़ावा से लाखों रुपया का आय होता है जिसमें षिव मंदिर, सूर्यमंदिर एवं विषला धर्मषाला का निर्माण कराया गया है। यहां श्रावणी मेला एक माह तक लगता है जिसे मंदिर समिति के अनुवाई में खेल तमाषा एवं मीना बाजार लगाया जाता है। इसके आय से मंदिर के आवष्यकता अनुसार कार्य को कराया जाता है। यद्यपि बांकेधाम को पर्यटन विभाग से विकसित किया जाये तो यह एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल बन सकता है।


गोह में कैसे ढह गया लाल झंडे का गढ़
भाकपा में रामशरण जैसे नेताओं का अभाव
दाउदनगर (औरंगाबाद) से आलोक कुमार
1977 ई0 से गोह विधानसभा भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का गढ़ माना जाता था। आज इसका परिदृश्य ऐसा हो गया है कि लगता है कि अगर भाकपा अपने बूते चुनाव लड़ना चाहे तो शायद जमानत भी बचाना मुश्किल हो जायेगा। आखिर क्यों? जिस समय 1977 में इस विधानसभा क्षेत्र से कम्युनिष्ट रामशरण यादव ने चुनाव लड़ा था उस समय पार्टी का संगठन काफी मजबूत तो था ही रामशरण यादव का व्यक्तित्व भी ऐसा था कि न चाहकर भी जो लोग उन्हंे वोट दे दिया करते थे वहीं कम्युनिष्ट कहीं यादव की जीत का मूल फार्मूला था। जातीय आधार पार्टी का संगठन पिछड़ी, अति पिछड़ी एवं दलितों का समर्थन। इतने लोगों के वोटों पर कम्युनिष्ट यादव को जबर्दस्त पकड़ थी। यही कारण था कि दूसरे उम्मीदवार हाथ-पांव मारने की कोशिश तो करते थे, परंतु उन्हंे सफलता नहीं मिल पाती थी। उनकी जीत का प्रमुख आधार जातीय आधार था। यादव जातीयों ने उन्हें अपना नेता मान लिया था। ऐसे भी इस क्षेत्र में सबसे अधिक वोट यादव जाति का ही है। कम्युनिष्ट, यादव के बाद जो भी यादव जाति से उम्मीदवार आये उन्हें यहां के यादवों ने पचा नहीं सका। दूसरे दो-तीन उम्मीदवार होने की वजह से आपस में वोटों का विखराव होता रहा और तीसरा यह कि कम्युनिष्ट रामशरण यादव को अन्य जितनी जातियों का समर्थन मिलते रहा था, नहीं मिला। परिणामस्वरूप पराजय का ही मुंह हमेशा देखना पड़ा। ऐसे भी कम्युनिष्ट रामशरण यादव जब-जब चुनाव लड़े थे तो उनके साथ भुमिहार जाति के भी उम्मीदवार चुनाव लड़ते रहे थे। इस बीच राजपूत जातियों ने अपना खेल खेलना नहीं छोड़ा था। राजपूत जाति भूमिहार को वोट देना नहीं चाहते थे। इसलिए, वह उस वोट का कम्युनिष्ट रामशरण यादव को मिल जाया करता था और इनकी जीत पक्की हो जाया करती थी। इसी बीच 1985 ई0 में भूमिहार जाति से एक लोकप्रिय नेता डी0 के0 शर्मा चुनाव लड़ने आये थे। उनमें लोकप्रियता का अजीब जादू था। मिलने जूलने और लोगों को प्रभावित करने की अजीब तरकीब थी। उस दौरान शर्मा को अन्य तमाम जातियों का वोट तो मिला ही था कुशवाहा और राजपूत जातियों का भी वोट मिला था। फलस्वरूप, चुनाव जितने में सफल हो गये थे। फिर दूसरी बार वे चुनाव हार गये थे। परन्तु तीसरी बार उनके द्वारा किये गये विकास के नाम पर फिर उनकी जीत हुयी थी। परन्तु इस बार लोगों की उम्मीद पर पानी फिर गया। जब 2005 मंें चुनाव हुआ तो गोह विधानसभा क्षेत्र से लोजपा के टिकट पर रंजीत कुशवाहा को चुनाव लड़ जाने से और दो-दो यादव जातियों का उम्मीदवार बनने का सीधा लाभ जदयू प्रत्याशी डा0 रणविजय कुमार को मिला था और वे चुनाव जीत गये। इस दरम्यान न कम्युनिष्ट रामशरण यादव इस दुनिया में रहे न हीं डी0 के शर्मा। कई टर्म तक कम्युनिष्ट रामशरण यादव को इस विधानसभा क्षेत्र से प्रतिनिधित्व करते रहने से इससे भाकपा का गढ़ माना जाता था। जबकि, काॅ0 रामशरण यादव पार्टी गत आधार पर विधायक नहीं बने थे। यह सबकुछ उनके व्यक्तिगत व्यक्तित्व का परिणाम था। वे ऐसे व्यक्ति थे जो गरीब-अमीर सभी के दिलों पर राज करते थे। हां इतना जरूर है कि वे जबतक इस क्षेत्र का विधायक रहे तबतक भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का जनाधार सुदृढ़ जरूर रहा था। पार्टी में अनुशासन तो था ही पार्टी काफी सक्रिय थी। कम्युनिष्ट रामशरण यादव को इस दुनिया से कूच करते ही भाकपा का जनाधार भी कूच कर गया। अब पार्टी में वैसी सक्रियता भी नहीं रही। न रामशरण यादव की तरह व्यक्तित्व वाले पार्टी में नेता ही हैं जो अपनी लोकप्रियता से पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलितों और राजपूतों के वोट को प्रभावित कर सकें। वैसे तो भाकपा में कई नेताओं ने कम्युनिष्ट रामशरण यादव बनने का स्वांग रचा। परन्तु उनके व्यक्तित्व को समाहित नहीं कर सका। आज पार्टी का जनाधार भी काफी खिसक चुका है। पार्टी में पूर्व की तरह अनुशासन भी नहीं है। इससे नहीं लगता है कि आने वाले दिनों में पुनः गोह विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का सुनहला अवसर भाकपा को मिल सकती है। अगर कोई सोंच रहा होगा तो वह दिवास्वपन्न की तरह ही होगा।



हाय रे भगवान इंद्र तुम्हे दया क्यों नहीं आती !
जहानाबाद में अकाल से तबाही शुरू
इंद्र को मनाने के लिए लड़कियों ने खेतों में नंगा हो चलाया हल
पटना से मंगलानंद/जहानाबाद से संजय कुमार
भगवान इंद्र को मनाने के लिए किसानों के पास जितना जतन था सब करके थक चुके हैं। भगवान इंद्र को मनाने के लिए यहां तक हुआ कि नाबालिग लड़कियों ने खेतों में नंगे होकर हल तक चलाया परंतु भगवान इंद्र हैं कि उन्हें दया आती नहीं। रात के 12 बजे जब सारा गांव सो रहा था तो गया-जहानाबाद जिले के कई गांवों में गांव की लड़कियां खेतों में नंगी हो हल चला रही थी। बिहार की पुरानी परंपराओं में यह भी एक बड़ी परंपरा रही है। पुरानी पंरपराओं के अनुसार गांवों में हर प्रकार के अनुष्ठान हुए परंतु नतीजा कुछ भी नहीं निकला। भगवान इंद्र ने भी सारी परीक्षाऐं ली परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। कम बारिष ने गया-जहानाबाद के किसानों के चेहरे पर उदासी ला दी है। किसानों को रात में न चैन है न दिन में। हर समय किसान बादलों की ओर टकटकी लगाए रूंआसे हो भगवान इंद्र को कोस रहे हैं। कम बारिष के कारण किसानों को इस बार भीषण तबाही झेलनी पड़ रही है। पानी का भूमिगत जलस्तर काफी नीचे रहने के कारण डीजल सेट भी पानी खींचने में नाकामयाब साबित हो रहे है। धान के बिचड़े बचाते बचाते किसान भी मानों झुलस से गए हैं। किसान डीजल चालित पंप सेटों का भी सहारा ले रहे है परंतु आसमान से पानी नहीं होने के कारण अब तक धान की रोपनी शुरू भी नहीं हो सकी है। जहानाबाद जिले के कृषि विभाग के अधिकारियों का भी मानना है िकइस साल जिले में भीषण अकाल की संभावना है। सावन माह भी खत्म होने को आ गया है ऐसे हालात में धान की रोपनी नहीं होने से अब धान की उपज पर पूरी तरह ग्रहण लग सा गया है। जेठुआ और भदई फसलों की रोपाई का काम पानी के बिना पूरा नहीं हो सका है। मानसून की मार ने जहानाबाद में सबको रूला दिया है। पूरे इलाके में बेरोजगारी की मार लोगों को झेलने पड़ रहे हैं। बेरोजगार युवक और खेतीहर मजदूर दूसरे राज्यों के पलायन में लग गए हैं। एक गैर सरकारी संस्था द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार जहानाबाद और अरवल जिले में मात्र एक फीसदी ही धान की रोपायी हो सकी है। बाकी केे 99 प्रतिषत भूभाग अभी परती पड़े हैं। आद्र्रा नक्षत्र में लगाए गए बिचड़े तो पूरी तरह तैयार होकर सूख चुके है। जहानाबाद जिले के 95 प्रतिषत आहर, तालाब आदि जलाषयों में पानी देखने को भी नहीं मिल रहा है। भूर्गभीय जल श्रोतों के इस साल काफी नीचे चले जाने के आसार है। बिहार की मौजूदा हालत यह हो गयी है कि कही बाढ़ से लोग मर रहे हैं तो कही चुल्लु भर पानी नहीं है लोगों के लिए।

सुषासन का मधुषाला
स्कूलों और मंदिरों के बगल में चलते हैं मदिरालय
पटना से मंगलानंद/धर्मेन्द्र कुमार
ये अलग बात है साकी कि मुझे होष नहीं है होष इतना है कि सुषासन मदहोष नहीं है। हमने इतना ख्याल रखा है स्कूल और मंदिरों के बगल में मधुषाला का लाइसेंस आम कर दिया है। इसलिए कि ये बच्चे ही और धर्मगुरू ही देष की रीढ़ हैं। हम लाए थे तुफान से कष्ती निकाल के इस देष को रखना मेरे बच्चों संभाल के। बिहार सरकार का नषा इतना बढ़ गया है कि वो सर चढ़ कर बोल रहा है। इतना होष भी नहीं है कहां स्कूल है और कहां मंदिर है। आप को हर कदम कोई न कोई नाली में गिरा हुआ मिल जाय तो समझ लिजीए आप बिहार में हैं। जहरीली षराब से गुजरात में मौत की लोमहर्षक घटना को हमने देखा और सुना। देष के अन्य जगहो में कुछ इसी तरह की घटनाएं दोहरायी जा रही है । इसके बावजूद मौत का सामान बेचने की नीति को बढावा देने की प्रवृति रूक नहीं रही है। विकास पुरूष नीतीष कुमार बिहार के निर्माण के बजाय पूरे बिहार में षराबखोरी को बढावा देने बाली एैसी नीति (आबकारी नीति-.2007) बनायी है जिससे कृषि प्रधान बिहार में कृषि क्रांति , ष्वेत क्रांति के बजाय मदिरा कं्राति को बढावा मिल रही है। लोग हैरत में है कि कृषि एवं पषुपालन को बढावा देने के वायदे के साथ बनी नीतीष सरकार पूरे बिहार के गांव-गांव में ष्षराबखोरी को बढावा देने बाली नीति पर क्यों कदम आगे बढा रही है ? आखिर सरकार उसी अंतिम व्यक्ति का आर्थिक नुकसान नहीं कर रही है जो किसी तरह नरेगा से सौ-पचास रूपये कमाकर घर लौटता है, लेकिन घर पहंुचने के पहले वह देषी ष्षराब से अपने गले को तर कर लेता है । बीबी -बच्चों के लिए रोजमर्रे की चीजों के प्रबंध करने बजाय वह खाली हाथ घर मदहोष होकर लौटता है। गांधी यह मानते थे जो षराब पीते है उनके परिवार सदा अभाव में जीते है। षराबखोरी से उपजी आर्थिक बदहाली ने ही गांधी को ष्षराबबन्दी हेतु प्रेरित किया था। बुद्व, महावीर की जन्मस्थली और गांधी, बिनोबा एवं जयप्रकाष नारायण की कर्मस्थली बिहार में हिंसा को और हवा देने की घटना हादसे की तरह ही है। हिंसा के लिए बदनाम रही बिहार की छवि बदलने के बजाय प्रदेष सरकार ने हिंसा एवं अपराध को बढावा देने बाली एैसी आबकारी नीति बनाई है जिसके तहत सभी प्रकार की खुदरा षराब दुकानों की बंदोबस्ती अनिवार्य रूप से लाटरी द्वारा की जा रही है। इससे आम व्यवसाइयों के साथ साथ बेरोजगारों को भी इस व्यवसाय से जुडने का मौका मिला है। इस दिषा में सरकारी दावों की माने तो षराब व्यापार के एकाधिकार की समाप्ति होने के साथ ही खुदरा षराब के मूल्य पर नियंत्रण होगी। सरकार ने पंचायतों के लिए लक्ष्य निर्धारित किया है कि पहले 5500 रूपये के बजाय 8500 रूपये तक के षराब बेचे। लोगों को आकषर््िात करने के लिए सेल लगाये जा रहे है।वीडियो का इंस्तेमाल किया जा रहा है । सरकार की इस नीति की आढ में गांव -गांव में अवैध षराब निर्माण एवं बेचने का अभियान सा चल पडा है। हिंसा और अपराध के लिए बदनाम बिहार में विकास और सुषासन के नारों के साथ बनी नीतीष सरकार ने पिछले तीन वर्षों में अपराधियों और बाहुबलियों को सीखचों के अंदर भेजकर यह साबित करने का प्रयास किया कि सूबे में सुसासन स्थापित करने के प्रति वे प्रतिबद्व हैं मगर रेवेन्यू और रोजगार सृजन के नाम पर नीतीष सरकार के इस कवायद ने विरोधाभास की स्थिति पैदा कर दी है। प्रदेष के गांवो में बेतहाषा बढ रही षराब के दुकानों ने षराब पीने बालों की नयी फौज तैयार हो रही है । मद्यनिपेध के विरोध में सक्रिय संगठनों का कहना है कि इससे सर्वाधिक महिला एवं बच्चो के उपर चैतरफा दुप्प्रभाव पड रहा है । बिहार के कई इलाको में पूर्व से चल रहे वैध-अवैध षराब निर्माण के दौरान यह देखा गया है कि ष्षराबखोरी के प्रचलन से सबसे अधिक महिलाओं को जूझना पडता है। कई जगहों पर नये दुकान खोले जाने के खिलाफ नागरिकों ने विरोध प्रदर्षित भी किया है। पिछले कुछ वर्षों से चल रहे अवैध कच्ची षराब निर्माण का कारोबार आज स्थानीय लोगों के लिए बडी समस्या है। कई बार पुलिसिया कार्रबाई भी हुई किन्तु ष्षराब माफिया के सषक्त नेटवर्क ने पुलिस की कार्रवाई को प्रभावहीन कर दिया। ष्षराबनिर्माण के अवैध निर्माण से गांवों के लोग त्रस्त रहे है। पिछले कुछ वर्पो में इन गांवों में षराब के अडडों पर हत्या हो चुकी है ।पुलिस के अनुसार हत्या की वजह पियक्कडों की आपसी कहासुनी तथा षराब निर्माण में लगे बाहुबलियों के बीच वर्चस्व की लडाई रही है। समय-समय पर ग्रामीणों का प्रतिरोध भी होता रहा ह,ै लेकिन अवैध षराबनिर्माण के कारोबार ने पूरे इलाके का अपनी चपेट मे ले लिया। ष्षराब के अड्डों या ष्षराब के दुकानों से होकर महिलाओं या स्कूल की छात्राओं का गुजरना दूभर हो गया है। इन गांवों की महिलाएं आज भी अपने खेतो, खलिहानों, टोलो में खुद को असुरक्षित मानती है। बीते कुछ वर्पों में पूर्व से चल रहे गांवों के करीब पचहत्तर प्रतिषत घरों में पियक्कडो की फौज तैयार हो गयी है जिनके उपर षाम ढलते ही नषे का षुरूर चढ जाता है। रात के अंधेरों में महिलाओं के चीखने- चिल्लाने की आवाजें सुनाई देना आम दिनचर्या का हिस्सा हो गया है। जाहिर है षराबियों का कहर सबसे पहले अपनी पत्नियों के उपर ही टूटता है। ष्षराब के नषे में पति, पत्नी को पीटता है । उसे होष ही नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है। कई बार नषे की हालत में ही दुर्घटना हो जाती है और परिवार बिखर जाता है। इससे मासूम बच्चों के मानसिक दषा का अनुमान भी लगाया जा सकता है।सबसे दुखद बात यह है कि षराब निर्माण में नन्हे गरीब बच्चों को भी लगाया जाता है। कच्ची ष्षराब के अडृडों का जायजा लेने पर अजीबोगरीब दृष्य मिलता है । बजबजाती गंदगी, गंदगी के बीच खेलते बच्चे, भभकती भट्ठियां, षराब निर्माण में लगी महिला एव बच्चे। पास ही पियक्कडो का हुजूम जो बात -बात पर बजबजाती गंदगी से भी अधिक भद्दी गालियां बक रहा होता है। जाहिर है महिला हिंसा के लिए बदनाम बिहार में वर्तमान आबकारी नीति से हिंसा को बढावा ही मिलेगा। है। एन एफ एच एस- 3 के आंकडों के अनुसार राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों मेें 59 प्रतिषत पुरूष अपनी पत्नी को पीटते है। एक ओर नीतीष सरकार महिलाओं के सषक्तिकरण के पचास प्रतिषत आरक्षण भी देती है तो दूसरी ओर इन महिलाओं के मानमर्दन के लिए नषाखोरी को भी बढावा दे रही है। प्रदेष में युवाओं की चालीस प्रतिषत आबादी हैं। आंकडों के हिसाब से युवाओं कीे 4 करोड संख्या है। प्रदेष सरकार के विचाराधीन युवानीति के अभाव मे ंप्रदेष के सर्वांगिण विकास में इनकी भुमिका सुनिष्चित नहीं हो पा रही है एैसे में इन युवाओं में नषे की लत से कम-से-कम समाज का निर्माण तो नहीं ही किया जा सकता। दरअसल तमाम राज्य सरकारें आबकारी नीति घोषित करती है। ष्षराब राज्यों की कमाई का प्रमुख जरिया होती है। हर साल राज्य आबकारी लक्ष्य बढाते हैं। बाकायदा घोषित आबकारी नीति में ं पियक्कडों और ठेकेदारों का ख्याल रखा जाता है। गत वर्ष सरकारी राजस्व में वृद्वि हुई है। सरकारी आंकडों के अनुसार यह वृद्वि पिछले वित्तीय वर्प के अपेक्षाकृत 31.37 प्रतिषत अधिक है यानि बिहार सरकार ने इस वित्तीय वर्प में षराब निर्माण से 417.95 करोड की राजस्व प्राप्त की है। क्या महज राजस्व के लिए मानव संसाधान की इतनी बडे हिस्से के भविष्य के साथ खिलवाड उचित है ?


‘‘ लुकिंग लंदन गोईंग टोक्यो ’’
गया से नारायण मिश्रा
‘‘ जरा हौले हौले चलांे मेरे साजना हम भी पीछे हैं तुम्हारे ’’ आड़ी तिरछी रफ्तारों के मालिक इनदिनों टिकारी-गया के टेम्पो आपरेटर हो गए हैं। आपको बैठते ही ऐसा महसूस होगा ‘‘ लुकिंग लंदन गोईंग टोक्यो’’ आपको महसूस होने लगेगा कि शायद आप अपनी मंजिल के बगैर कही और जा रहे हैं। शायद यह आखिरी मंजिल भी हो सकती है। अधिकांष टेम्पो चालकों के पास ड्राईविंग लाइसेंस हैं ही नहीं। जिनकी उम्र 18 साल से नीचे हैं। सुबह से लेकर शाम तक छोटे कस्बों से लेकर शहर तक तेज रफ्तार में गाड़ी चलती है। गाड़ी रूकी पैसेंजर सवार हुआ या नहीं ट्रेन की तरह कभी गाड़ी 70 कभी 80 कभी बाऐं कभी दाऐ बैठने वालों का कलेजा मुहं को आ जाता है। जिला प्रषासन को टेम्पो वालों से कोई मतलब नहीं है। ट्राफिक पुलिस वालों का पैसा चाहिए किसकी जान जाएगी और किसकी बचेगी ये डीटीओ साहब तय करेंगे।


आज भी अधूरा है माउंटेन मैन का सपना
विकास को मोहताज है गेहलौर घाटी
गया से नारायण मिश्रा
बिहार सरकार चाहे लाख वादा करे फिर भी गेहलौर घाटी के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों की हालत में सुधार की गंुजाईष नहीं दीखती। कुछ यादें ऐसी होती हैं जो अतीत के गहवारे में ले जाती हैं। शायद गेहलौर घाटी अनाथ हो गया हो। गेहलौर घाटी की हालत बिलकुल वैसी ही हो गयी है जैसे किसी बच्चे के सर से बाप का साया उठ जाना। गांव बिलकुल वीरान हो गया है। ये लगता ही नहीं है कि कभी यहां माउंटेन मैन रहा करते थे। पत्रकारों के अपने दरवाजे पर पहंुचते ही बाबा के चहेरे पर खुषी झलकने लगती थी। वे उम्मीद करने लगते थे उनकी मेहनत पत्रकारों के कलम के द्वारा रंग लाएगी। बिलकुल उसी तरह सम्मान करते थे जैसे सबरी रामजी के लिए बैर चख-चख कर रखती थी। अपनी कुटिया में पत्रकारों को बैठाना और जो उनके वष में हो उसे खिलाकर ही विदा करना लेकिन शायद ये सारी बातें धुंधली हो गयी हैं। दषरथ बाबा भविष्य के गर्भ में समा चुके हैं, गेहलौर घाटी का कोई पुर्सानेहाल नहीं है। शहीदों के मजार पर हर बरस लगेंगे मेले वतन पर मरने वालों की बाकी यहीं निषां होगी ’’ आज बाबा की पहली पुण्यतिथि मनायी गयी, सरकारी अधिकारियों का भाषण और आष्वासन गांव वालों को मिला और सरकारी अधिकारी वापस लौट गए। बाबा का सपना कब और कैसे पूरा होगा ये बिहार सरकार जानती है या जिला प्रषासन। दषरथ बाबा के बिना आज भी गहलौर घाटी सुना-सुना सा लगा। बाबा एक छेनी और एक हथौड़ी के सहारे 20 वर्षों में पहाड़ का सीना चीरकर दो प्रखंडों को जोड़ने वाली सड़क का निर्माण किया था। इस कार्य में न किसी का श्रम लगा और न कोई आर्थिक सहायता मिली वरण इस सड़क के निर्माण होने के बाद इस जिले के वजीरगंज और अतरी प्रखंड की दूरी 80 किलोमीटर से घटकर 14 किलोमीटर हो गयी। 860 फीट लम्बा व 20 फीट चैड़ा सड़क का निर्माण हो गया। इस साहसिक कार्य के लिए 1999 में लिम्का बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में दषरथ मांझी का नाम दर्ज कर लिया गया। इससे प्रभावित होकर मुख्यमंत्री नीतीष कुमार ने दषरथ मांझी को एक दिन अपने कुर्सी पर बैठा दिया। उनका नाम पदम्श्री पुरस्कार के लिए अनुषंसित कर दिया गया था। दषरथ मांझी के अधूरे कार्यो को पूरा करने की सरकारी घोषणा कर दी गयी। आनन-फानन में दषरथ बाबा ने भी सरकार से मिली 5 एकड़ जमीन सरकार को लौटाते हुए उस जगह अस्पताल खोलने की इच्छा व्यक्त कर डाली। इस बीच दषरथ मांझी अस्वस्थ हुए उपचार के लिए राज्य सरकार ने दिल्ली एम्स हाॅस्पीटल भेजा गया। इसी अस्पताल में दषरथ मांझी ने अपनी जिन्दगी की आखरी सांस ली। मौत के एक वर्ष बीत जाने के बाद दिल्ली एम्स हाॅस्पीटल ने दषरथ मांझी के परिवार को एक पत्र भेजा है। जिसमें दषरथ मांझी के उपचार में आयी खर्च का ब्योरा भेजा गया। इस पत्र को लेकर तरह-तरह का कयास लगाया जाता रहा है। समझा जाता है कि पत्र से उत्पन्न भ्रम की स्थिति को दूर करने के उद्देष्य से राज्य सरकार के दो मंत्रियों ने इस गांव का दौरा किया है। डा. गीता प्रसाद निदेषक प्रमुख द्वारा स्थानीय आयुक्त को भेजे गये पत्र में कहा है कि स्वास्थ्य विभाग के संकल्प सं. 2363/ 14 दिनांक 12-02-08 1484/ 14 दिनांक 26-11-07 के प्रसंग में मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष के लिए गठित अधिकृत समिति की स्वीकृति के आधार दषरथ मांझी ग्राम-गहलौर, पो-ऐरु, जिला-गया के स्वयं की कैंसर रोग की एम्स नई दिल्ली अस्पताल में चिकित्सा में हुए व्यय का मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष रुपया 171018/ एक लाख एकहत्तर हजार 18 रुपये को विमुक्त किया जाता है। उक्त राषि जिस मद से आपके द्वारा कर्ज के रुप में ली गई थी उसका सामंजन उपरोक्त स्वीकृत राषि से कर ली जाये। आपके पत्र के नाम से निर्गत उक्त राषि का काॅस चेक संख्या ......... मुल्य रुप में सलंगन है। दषरथ मांझी के स्वयं की चिकित्सोपरान्त चिकित्सा प्रमाण पत्र सम्पूर्ण व्यय ब्यौरा के साथ अनुदान राषि की उपयोगिता का प्रमाण पत्र स्वास्थ्य विभाग पटना को निष्चिित रुप से उपलब्ध कराने का कष्ट करे। जिसे समीक्षा निदेषक प्रमुख स्वास्थ्य सेवाएं बिहार पटना प्रतिहस्ताक्षरित करेगें। बहरहाल आरोपुर गांव में मंगुरा नदी पर पुल निर्माण, पथ निर्माण और गहलौर घाटी में अस्पताल निर्माण कार्य में हाथ नहीं लगाया जा सका है। दषरथ मांझी के पुत्र और पुत्री विकलांग है उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है।





असीम संभावनाओं के बावजूद बांकेधाम का विकास ठप
षेरघाटी से राजेष कुमार/बांकेबाजार से कमल कुमार वर्मा
बांकेधाम में श्रावणी मेला इनदिनों बांकेधाम में जोर पकड़ चुका है और मेले की व्यवस्था के नाम पर कुछ भी ऐसा नहीं हुआ है जिससे यहां आने वाले दर्षनार्थियों को सहुलियतें मिल सके। सरकार चाहे तो बांकेधाम को बिहार का एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल जरूर बनवा सकती है। जिसकी यहां असीम संभावनाऐं हैं। मगध प्रमण्डल के मुख्यालय से पचास किलोमीटर दक्षिण-पष्चिम में अवस्थित बांकेबाजार की पहाड़ी। जिसे अब यहां की जनता बांकेधाम के नाम से पुकारती है। बांकेधाम धरती चप्पा-चप्पा ऐतिहासिक अवषेषों से भरा पड़ा है। प्रकृति की अनुपम छटाओं के बीच पर्यटन एवं पुरातत्व विभाग के उपेक्षा का षिकार है। यहां पर्यटन की असीम संभावनाएं है बांकेधाम में। यह पहाड़ी दो किलोमीटर लम्बी एवं एक किलोमीटर से अधिक चैड़ी है। जिसके पष्चिम कोर पर है मडावर नदी की दक्षिणी वाहिनी धारा प्रवाहित होती रहती है। इन पहाड़ी पर कई श्रृंखलायें है जिन पर मिले भग्नावषेषों एवं नवनिर्मित मंदिरों के आधार पर अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। पहाड़ी के पुरब दूसरी श्रृखंला पर भगवान आषुतोष षिव का भव्य नूतन मंदिर बन चुका है। जहां प्रारंभ में खुदाई में स्लेटी हरि तिमारिये पत्थर का गणेष की द्विमुणी और पार्वती की प्रतिमाएं मिली थी। षिवलिंग का एक प्रस्तर खण्ड से ढका था जिसे हटाने पर नीली आभालिए षिवलिंग अर्धे के साथ निकले। तालाब की खुदाई से एक सिक्का भी प्राप्त हुआ है जिसके एक पहलु पर हनुमानजी का चित्र तो दूसरे पहलु पर श्री राम परिवार लक्ष्मण के साथ है। जिसपर 47340 हनुमान सनू लिखा अष्टधातु के मोटा सिक्का है। जिसे मध्य बिहार ग्रामीण बैंक में सुरक्षित रखा गया है। इस पहाड़ के आस-पास एक सौ एक मंदिर के भी प्रमाण मिलते है और इस पर्वत पर अनेक गुफाएं है जो ऋषि मुनियों के तपोस्थली माना जाता है। जहां से सभी लोगों को देखा जा सकता है, लेकिन उस पर बैठे जगह पर कोई नहीं देख सकता है। पहली पहाड़ी की श्रृखंला पर सूर्यपुरी में सूर्य की तीन मग्न प्रतिमाएं अवस्थित है जो काले पत्थर की बनी सप्त अष्वरथ सारथी के साथ भगवान सूर्य की मूर्ति दिखाई गई है। जिसके दोनों ओर पत्निया संज्ञा और छाया है। एक ओर तालाब के अवषेष निकले है जिसे श्रमदान से खुदाई कर बनाया गया है। सूर्यपुरी के पुरब सपाट चैरस स्थल पर इन के टुकड़े ढ़ेर के रुप में बिखरे पड़े है। इसी के सटे मंदिर के बगल में मंडप बना हुआ है। प्रत्येक वर्ष यहां दान एवं चढ़ावा से लाखों रुपया का आय होता है जिसमें षिव मंदिर, सूर्यमंदिर एवं विषला धर्मषाला का निर्माण कराया गया है। यहां श्रावणी मेला एक माह तक लगता है जिसे मंदिर समिति के अनुवाई में खेल तमाषा एवं मीना बाजार लगाया जाता है। इसके आय से मंदिर के आवष्यकता अनुसार कार्य को कराया जाता है। यद्यपि बांकेधाम को पर्यटन विभाग से विकसित किया जाये तो यह एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल बन सकता है।


गोह में कैसे ढह गया लाल झंडे का गढ़
भाकपा में रामशरण जैसे नेताओं का अभाव
दाउदनगर (औरंगाबाद) से आलोक कुमार
1977 ई0 से गोह विधानसभा भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का गढ़ माना जाता था। आज इसका परिदृश्य ऐसा हो गया है कि लगता है कि अगर भाकपा अपने बूते चुनाव लड़ना चाहे तो शायद जमानत भी बचाना मुश्किल हो जायेगा। आखिर क्यों? जिस समय 1977 में इस विधानसभा क्षेत्र से कम्युनिष्ट रामशरण यादव ने चुनाव लड़ा था उस समय पार्टी का संगठन काफी मजबूत तो था ही रामशरण यादव का व्यक्तित्व भी ऐसा था कि न चाहकर भी जो लोग उन्हंे वोट दे दिया करते थे वहीं कम्युनिष्ट कहीं यादव की जीत का मूल फार्मूला था। जातीय आधार पार्टी का संगठन पिछड़ी, अति पिछड़ी एवं दलितों का समर्थन। इतने लोगों के वोटों पर कम्युनिष्ट यादव को जबर्दस्त पकड़ थी। यही कारण था कि दूसरे उम्मीदवार हाथ-पांव मारने की कोशिश तो करते थे, परंतु उन्हंे सफलता नहीं मिल पाती थी। उनकी जीत का प्रमुख आधार जातीय आधार था। यादव जातीयों ने उन्हें अपना नेता मान लिया था। ऐसे भी इस क्षेत्र में सबसे अधिक वोट यादव जाति का ही है। कम्युनिष्ट, यादव के बाद जो भी यादव जाति से उम्मीदवार आये उन्हें यहां के यादवों ने पचा नहीं सका। दूसरे दो-तीन उम्मीदवार होने की वजह से आपस में वोटों का विखराव होता रहा और तीसरा यह कि कम्युनिष्ट रामशरण यादव को अन्य जितनी जातियों का समर्थन मिलते रहा था, नहीं मिला। परिणामस्वरूप पराजय का ही मुंह हमेशा देखना पड़ा। ऐसे भी कम्युनिष्ट रामशरण यादव जब-जब चुनाव लड़े थे तो उनके साथ भुमिहार जाति के भी उम्मीदवार चुनाव लड़ते रहे थे। इस बीच राजपूत जातियों ने अपना खेल खेलना नहीं छोड़ा था। राजपूत जाति भूमिहार को वोट देना नहीं चाहते थे। इसलिए, वह उस वोट का कम्युनिष्ट रामशरण यादव को मिल जाया करता था और इनकी जीत पक्की हो जाया करती थी। इसी बीच 1985 ई0 में भूमिहार जाति से एक लोकप्रिय नेता डी0 के0 शर्मा चुनाव लड़ने आये थे। उनमें लोकप्रियता का अजीब जादू था। मिलने जूलने और लोगों को प्रभावित करने की अजीब तरकीब थी। उस दौरान शर्मा को अन्य तमाम जातियों का वोट तो मिला ही था कुशवाहा और राजपूत जातियों का भी वोट मिला था। फलस्वरूप, चुनाव जितने में सफल हो गये थे। फिर दूसरी बार वे चुनाव हार गये थे। परन्तु तीसरी बार उनके द्वारा किये गये विकास के नाम पर फिर उनकी जीत हुयी थी। परन्तु इस बार लोगों की उम्मीद पर पानी फिर गया। जब 2005 मंें चुनाव हुआ तो गोह विधानसभा क्षेत्र से लोजपा के टिकट पर रंजीत कुशवाहा को चुनाव लड़ जाने से और दो-दो यादव जातियों का उम्मीदवार बनने का सीधा लाभ जदयू प्रत्याशी डा0 रणविजय कुमार को मिला था और वे चुनाव जीत गये। इस दरम्यान न कम्युनिष्ट रामशरण यादव इस दुनिया में रहे न हीं डी0 के शर्मा। कई टर्म तक कम्युनिष्ट रामशरण यादव को इस विधानसभा क्षेत्र से प्रतिनिधित्व करते रहने से इससे भाकपा का गढ़ माना जाता था। जबकि, काॅ0 रामशरण यादव पार्टी गत आधार पर विधायक नहीं बने थे। यह सबकुछ उनके व्यक्तिगत व्यक्तित्व का परिणाम था। वे ऐसे व्यक्ति थे जो गरीब-अमीर सभी के दिलों पर राज करते थे। हां इतना जरूर है कि वे जबतक इस क्षेत्र का विधायक रहे तबतक भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का जनाधार सुदृढ़ जरूर रहा था। पार्टी में अनुशासन तो था ही पार्टी काफी सक्रिय थी। कम्युनिष्ट रामशरण यादव को इस दुनिया से कूच करते ही भाकपा का जनाधार भी कूच कर गया। अब पार्टी में वैसी सक्रियता भी नहीं रही। न रामशरण यादव की तरह व्यक्तित्व वाले पार्टी में नेता ही हैं जो अपनी लोकप्रियता से पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलितों और राजपूतों के वोट को प्रभावित कर सकें। वैसे तो भाकपा में कई नेताओं ने कम्युनिष्ट रामशरण यादव बनने का स्वांग रचा। परन्तु उनके व्यक्तित्व को समाहित नहीं कर सका। आज पार्टी का जनाधार भी काफी खिसक चुका है। पार्टी में पूर्व की तरह अनुशासन भी नहीं है। इससे नहीं लगता है कि आने वाले दिनों में पुनः गोह विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का सुनहला अवसर भाकपा को मिल सकती है। अगर कोई सोंच रहा होगा तो वह दिवास्वपन्न की तरह ही होगा।




















Friday, August 12, 2011

मिनी बाबा धाम के नाम से विख्यात है शिवगादी का बाबा गाजेश्वरनाथ

LILI HANSDA बाबा गाजेश्वरनाथ धाम शिवगादी में सावन माह के अलावा वर्ष भर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। मिनी बाबा धाम के नाम से मशहूर बाबा गाजेश्वर नाथ धाम शिवगादी में आज से बीस वर्ष पूर्व जाने के लिए लोगों को काफी कष्ट का सामना करके पैदल जाना पड़ता था। पर जैसे-जैसे इस क्षेत्र में प्रगति हुई वैसे वैसे भक्तों की भीड़ लगना भी शुरू हो गया। स्थानीय बुद्धिजीवी प्रदीप डोकानियां, विभूति व‌र्द्धन, प्रदीप, भीष्मपदो नाथ सहित दर्जनों लोगों ने बताया कि शिवगादी के निरंतर विकास के लिए बरहेट के लोगों ने काफी योगदान दिया है। पहले शिवगादी मंदिर में चढ़ने के लिए पहाडें की तलहटी तक जाने के लिए पत्थर नुमा सीढ़ी पर चढ़ कर उपर पहुंचा जाता है। स्थानीय भक्तों की मदद से उपर में एक धर्मशाला का निर्माण कराया गया। आज से दस साल पूर्व गुमानी नदी को पार कर नांव में चढ़ कर भक्त उस पार पहुंच कर शिवगादी पैदल जाते थे। फिर गुमानी नदी पर पुल बन जाने के बाद शिवगादी धाम दिनों दिन विकसित होने लगा। जिला प्रशासन की पहल पर शिवगादी के विकास के लिए धर्मशाला, प्रवेश द्वार, सीढ़ी का सौन्दर्यीकरण, शिवगंगा तक सीढ़ी निर्माण के अलावा सांसद, विधायक द्वारा समय समय पर विकास के प्रति लगाव के चलते आज शिवगादी में श्रावणी मेला में हर वर्ष लाखों लोग यहां जलाभिषेक करने पहुंच रहे है। वहीं प्रबंध समिति द्वारा कांवरियों की सेवा के लिए हमेशा सक्रिय है। बाबा गाजेश्वर नाथ धाम शिवगादी में सावन माह में तीन गंगाघाट साहिबगंज, राजमहल व फरक्का से श्रद्धालु गंगाजल लेकर पहुंचते है और पूजा अर्चना करते है। किन्तु राजमहल का उत्तर वाहिनी गंगा घाट जलाभिषेक के लिए सबसे शुद्ध माना जाता है।यहां से श्रद्धालु तीनपहाड़ तक पैदल फिर सड़क मार्ग से शिवगादी पहुंचते है। जबकि फरक्का एवं साहिबगंज से सड़क मार्ग होते हुए पैदल यात्रा कर भक्त शिवगादी पहुंचते है। सावन माह में यहां की खूबसूरत छटा देखते ही बनता है।

बहुत मीठा है अपना मिठाई बाजार

बहुत मीठा है अपना मिठाई बाजार। मिठा और खास इस लिए है कि शहर की कई मिठाइयों की पहचान दूर-दराज में भी बन गयी है। यही नहीं, स्थानीय कारीगरों ने भी कुछ नयी मिठाइयां तैयार की है रक्षाबंधन पर्व को देखते हुए। फिलहाल मिठाई बाजार रक्षाबंधन पर्व के लिए सज कर तैयार है। खपत भी शुरू है। रक्षाबंधन की पूर्व संध्या पर ही मिठाई दुकानों पर लोगों की भीड़ काफी रही। जिसको देखते कारीगर किस्म-किस्म के मिठाई बनाने में दिन-रात जुटे रहे। शुक्रवार को शहर के हर मिठाई दुकानदार को तो अब सिर्फ बेसव्री से इंतजार है तो शनिवार (यानी की आज)का। जब मिठाई के हर शहरी दुकानों पर पहुंचेंगे। जानकारों के अनुसार शहर में कुल मिलाकर 300 मिठाई की दुकान हैं। जहां रक्षाबंधन पर्व पर 20 लाख से ऊपर के कारोबार होने की उम्मीद जातीय जा रही है। विक्रेता विपिन के मुताबिक बड़ी दुकानों में जहां 70 से 75 हजार से ऊपर का कारोबार होगा वहीं छोटे दुकान में भी 10 से 20 हजार रुपये की मिठाई की बिक्री होगी। रसगुल्ला, बरर्फी, कलाकंद, मिठाइयों की तो जमकर बिक्री होने की उम्मीद है। इसी तरह गुजिया, अनरसा, काजू गजक, बादम पिस्ता की पहचान दूसरे शहरों में भी होने के कारण रक्षाबंधन की पूर्व संध्या पर लाखों का कारोबार हो गया। खास-खास पर्व पर गया के लोग अपने रिश्तेदारों को भेजते है। व्रिकेता नरेश के मुताबिक पश्चिम बंगाल, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कई शहरों तक इनकी पहुंच बन चुकी है। बिल्कुल गया के तिलकुट की तरह। बढि़या मिठाई 150 से 580 रुपये प्रति किलो की दर पर उपलब्ध है। मिल्क पुडिंग, काजू गजक और पतीशा जैसी मिठाइयां रक्षाबंधन को देखते हुए कारीगरों ने पहली बार बनाई है। स्वाद की चर्चा भी खूब हो रही है। वहीं खोया और छेना से तैयार की गई है एक से एक मिठाईयां। खोया और छेना की मिठाईयां का भाव 160 से 180 रुपये प्रति किलो तक है।

रक्षा सूत्र में सही उम्र, सही तोहफा!

Shyakuddin रक्षा जैसे खास मौके पर आप अपने भाई-बहन को कुछ ऐसा दे सकते हैं, जिससे उनका मन जुड़ा हो। कुछ ऐसा, जिसे देखकर उनके चेहरे पर खुशियों की लकीरें अठखेलियां करने लगें। बचपन से आप अपनी बहन को जानते हैं। आप उसकी पसंद और नापसंद भी आपको जरूर मालूम होगी। कुछ भी खरीदते समय ध्यान रखें कि वक्त के साथ बहन की पसंद भी बदली होगी। इसलिए वो लें, जो उसे अब पसंद हो। यहां दिए गए विकल्प भी आपकी मदद कर सकता है। फैंसी हो जिसका मिजाज यदि आपकी बहन शुरू से ही फैशन के अनुसार चलने की शौकीन है, तो उन्हें उन्हीं के हिसाब से गिफ्ट देने का मन बनाएं। आप उन्हें फैशन के अनुकूल फैंसी घड़ी, नये माडल के मोबाइल, डियोड्रेंट, परफ्यूम और बेल्ट आदि दे सकते हैं। जब भी ये सामान चुनें, तो बहन के द्वारा प्रयोग की जानी वाली सामान को ध्यान में रखें। इससे आपको उसकी पसंद-नापसंद समझ में आ जाएगा। बड़ी बहन, जिन्हें सौम्यता हो पसंद अब हर किसी को फैशनेबल लुक पसंद नहीं आता और वे साधारण रहना पसंद करती है, तो उन्हें गलती से भी कुछ ऐसी चीज न दें, जिसका वो प्रयोग न करें। उन्हें कपड़े गिफ्ट में देना अच्छा रहेगा। क्योंकि कपड़े लड़कियों की सबसे बड़ी कमजोरी होती है। देखा गया है कि लड़कियों के पास कई कपड़े विभिन्न डिजाइन की हैं। लेकिन कोई अगर दे, और भाई दे तो फिर चेहरे पर खुशी न जाने की बात ही नहीं है। रक्षाबंधन को ले बाजार में कपड़ों की कई विकल्प मौजूद हैं। इसके साथ-साथ आप उन्हें प्लानर डायरी, दस्तावेजों के लिए फाइल भी दे सकते हैं। पढ़ने वाली बहन के लिए यदि आपकी बहन अभी स्कूल या कालेज में है, तो आप उसे ऐसा सामान दें, जो उसके काम आए। जैसे रेफ्रैस बुक, पेन, मनपसंद कलर या कोई ऐसा गेम जो उसे पसंद हो। और यदि बहन छोटी को खुश करना हो तो आप उसकी मनपसंद गेम्स सीडीज और वीडियो गेम्स दे सकते हैं। इसके साथ-साथ चाकलेट और अन्य खिलौने दे सकती हैं। जब बहन शादीशुदा हो शादीशुदा भाई के लिए आपके पास ढेरों विकल्प हैं। आप चाहें, तो उनके काम से जुड़ा कोई सामान या फिर उनके घर के लिए भी सामान दे सकती हैं। सीडी केस, लैपटाप केस, ट्रैवलिंग बैग, साड़ी और घड़ी आदि विकल्प हो सकते हैं। यात्रा, जो यादगार बन जाए आपको याद होगा, जब बचपन में मम्मी- पापा किसी ट्रिप ले जाया करते थे, और वो ट्रिप आपकी यादों में अभी तक बसी होगी। अपने भाई-बहन के लिए बिना बताए परिवार के अन्य लोगों के सहयोग से एक ट्रिप या पिकनिक प्लान करें। आपके भाई-बहन इस सरप्राइज ट्रिप को बहुत पसंद करेंगे।

अधिकारियों के जनता दरबार में पहुंचे 66 फरियादी

प्रमंडलीय आयुक्त विवेक कुमार सिंह एवं मगध क्षेत्र के पुलिस उप महानिरीक्षक नैयर हसनैन खां के समक्ष जनता दरबार में 66 फरियादी शुक्रवार को पहुंचे। आयुक्त श्री सिंह 'जनता के दरबार में प्रमंडलीय आयुक्त' कार्यक्रम के तहत 26 नागरिकों से भेंट की। आयुक्त श्री सिंह ने प्राप्त आवेदनों को संबंधित विभाग के अधिकारियों के पास त्वरित व विधि सम्मत कार्रवाई के लिए भेजा। वहीं डीआईजी श्री खां ने बताया कि 'जनता केदरबार में डीआईजी' कार्यक्रम के तहत 40 लोगों से भेंट की। उन्होंने कहा कि अधिकांश मामले पुलिस थानों में दर्ज कांड से संबंधित था। डीआईजी श्री खां ने पूछे जाने पर बताया कि जनता दरबार में चाकंद ओपी थानाध्यक्ष व अन्य अधिकारियों के खिलाफ आवेदन प्राप्त हुआ। डीआईजी श्री खां ने कहा कि प्राप्त आवेदन को एसएसपी, गया के पास जांच के लिए भेजा गया है। उन्होंने कहा कि यदि जांच में आरोप की पुष्टि हुई तो संबंधित पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई सुनिश्चित करायी जायेगी।

Sunday, October 24, 2010

बावन से बरंडी बराज बनते आया मुद्दा

बरंडी बराज जलाशय परियोजना बाराचट्टी विधान सभा क्षेत्र की चुनावी फिजां में एक बार फिर इस क्षेत्र के किसान मतदाता इसे सबसे ज्वलंत मुद्दा बनाने की सोच बना रखा है। 1952 के विधान सभा से अब तक यह परियोजना चुनावों में मुद्दा बनते आ रहा है। वोट मांगने के दौरान जब यहां की जनता पिछले चुनावों मे परियोजना से जुड़ी बात को रखते थे तो उम्मीदवारों की जुबान लड़खड़ाने लगती थी। यह कड़वी सच्चाई है कि परियोजना बाराचट्टी विधानसभा क्षेत्र के लिए एक बड़ा मुद्दा है। वर्ष 1985 में तत्कालीन सिंचाई मंत्री रामाश्रय सिंह ने इसका शिलान्यास किया था। 1885 में ही बिहार के पंच वर्षीय योजना में मोहाने जलाशय के नाम से इसकी स्वीकृति मिली थी। जहां इसे तीन भाग में बांट दिया था। आरमे दाग जो झारखंड के इटखोरी ब्लाक में पड़ता है। दूसरा भलुआचट्टी तथा तीसरा बरंडी बराज जलाशय परियोजना है। उस वक्त इस कार्य को प्रगति पर लगने के लाने के लिए विभाग द्वारा 1 करोड़ रुपये की मंजूरी भी दी गयी थी। मोहनपुर प्रखंड के दुहोवार निवासी भुनेश्वर सिंह बताते हैं कि बरंडी बराज जलाशय परियोजना को मोहाने नदी के पूरबी तथा पश्चिमी छोर से नहर निकालकर मोहनपुर प्रखंड तथा फतेहपुर का पश्चिमी भाग होते हुए टनकुप्पा, मुफ्फसिल, वजीरगंज, खिजरसराय तक की समुचित भूमि को सिंचित किया जा सकता था। इसके कारण आज तक यहां विकास भी नदारद है। यहां के ग्रामीण सुरेश यादव, नग्गू मांझी, सीता देवी, श्यामफूल देवी कहती है कि चार-पांच साल पहले नेता जी देखने आये थे। उसके बाद न तो कोई विधायक यहां आते हैं। रही बात पदाधिकारियों की तो यहां कभी कोई प्रशासनिक पदाधिकारी नहीं पहुंचे है। भाकपा-माओवादी के आधार वाले इलाके कारण इस जगह तक सिर्फ पुलिस बल के जवान एवं इनके पदाधिकारियों का आना- जाना यदा-कदा होता रहता है। लगभग 19 हजार मत विधायक की कुर्सी को यहां बरकरार रख सकती है या फिर यहां से धक्का मारकर हटा सकती है। बावजूद इन मतदाताओं के वोट का मलाल यहां के नेताओं में नहीं होती है। फलस्वरूप चुनाव जीतकर जाने के बाद विधायक या सांसद वोट के दलालों को छोटी-छोटी शुभ फलदायक योजना देकर उसकी एहसान का कर्ज उतार लेते हैं। और खामियाजा यहां के 40 हजार से अधिक के ग्रामीण आज तक भुगत रहे हैं।

मंत्री डा.प्रेम कुमार की गिरफ्तारी की मांग को लेकर हंगामा

गया शहरी विधान सभा क्षेत्र के भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी सह सूबे के पथ निर्माण मंत्री डा. प्रेम कुमार अदालत द्वारा फरार घोषित है। ऐसे में डा. कुमार को पुलिस गिरफ्तार करे। यह मांग शहरी क्षेत्र के निर्वाची अधिकारी सह अनुमंडल पदाधिकारी सदर पारितोष कुमार से कांग्रेस (ई), लोजपा के राजकुमार प्रसाद उर्फ राजू वर्णवाल, निर्दलीय सुरेन्द्र सिंह व अन्य प्रत्याशियों की थी। शनिवार को एसडीओ कार्यालय में नामांकन पत्र की स्क्रूटनी के मौके पर उपरोक्त बातें सामने आयी। विपक्षी प्रत्याशियों के तेवर को देख भाजपा प्रत्याशी सह मंत्री डा. प्रेम कुमार निर्वाची पदाधिकारी के कार्यालय से निकलकर अज्ञात स्थान की ओर चल दिये। इसके बाद हंगामा और शोर-शराबा होने लगा। विपक्षी प्रत्याशियों का आरोप था कि पुलिस की चाक-चौबंद व्यवस्था के बावजूद अदालत द्वारा फरार घोषित भाजपा प्रत्याशी डा. कुमार को गिरफ्तार न कर निर्वाची अधिकारी व पुलिस ने भागने का मौका दे दिया। निर्वाची अधिकारी श्री कुमार ने भाजपा प्रत्याशी डा. कुमार के नामांकन पत्र को रद्द करने के संबंध में दिये गये आवेदन को रद्द कर दिया। निर्वाची अधिकारी श्री कुमार ने अपने आदेश में कहा कि निर्वाची अधिकारी को यह देखना है कि प्रत्याशी के नामांकन पत्र व शपथ पत्र में त्रुटि है या नहीं? निर्वाची अधिकारी के फैसले के बाद कई प्रत्याशी अपने समर्थकों के साथ वरीय पुलिस अधीक्षक से मिलने एसपी आफिस गये। इस संबंध में एसएसपी अमित लोढ़ा ने बताया कि प्रेम कुमार के खिलाफ कोतवाली थाना कांड संख्या 303/91 दर्ज है। इस मामले में ट्रायल नंबर 118/96 में अदालत द्वारा संचिका में आदेश है कि 'अदालत ने आरोपी जमानत के बाद उपस्थित हुए फिर वे उपस्थित नहीं हो रहे हैं। संभावना नहीं है कि उपस्थित होंगे। ऐसे में आरोपी का नाम फरारी सूची में शामिल किया जाए।' एसएसपी श्री लोढ़ा ने कहा कि अदालत द्वारा उपरोक्त मामले में कोई गिरफ्तारी/कुर्की जप्ती वारंट निर्गत नहीं है। और ना ही उपरोक्त मामले में वारंट किसी थाने में अनुपालन के लिए लंबित है।

हुक्के की गुड़गुड़ाहट के साथ बिखरे सियासत के रंग

जैसे-जैसे गया जिले में 2010 का विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहा है ग्रामीण इलाकों में चौपालों पर हुक्के की गुड़गुड़ाहट के रंग दिखाने के साथ ही सियासत भी गरमा गयी है। पांचवें चरण में जिले के पांच विधानसभा में नामांकन प्रकिया पूरा होने के बाद कौन-कौन से क्षेत्र से कितने प्रत्याशी और किस से किसकी है टक्कर की चर्चा चौपालों पर जोरो पकड़ने लगी है। जहां चार लोग मिल रहे हैं चौपाल लग जा रही है और देखते ही देखते चुनावी चर्चा में घंटों कब बीत जा रहा पता नहीं चल रहा है। यानि की ये कहें कि गांव की चौपालों पर फिर रौनक लौट आयी है। ग्रामीण क्षेत्रों के अलंबरदारों की चौपाल पर हुक्के के हर कश के साथ राजनीति, प्रत्याशी और क्षेत्र में हुए विकास कार्यो की चर्चा की ही चर्चा हो रही है। कौन किसके दु:ख-सुख में शरीक हुये सारी गणना चौपाल पर गिर-गिर कर हो रही है। सबसे ज्यादा नाराजगी उन लोगों से है जो कभी जितने के बाद उन लोगों से मिल तक नहीं हैं। लोगों का कहना है कि जीता कर भेजा था इस बार हम लोग ही उसे उतर भी देंगे। गांव के रास्तों पर वाहनों के काफिले का सिलसिला प्रारंभ हो गया है। विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही जनता के हाथ में एक बार फिर पार्टी और उसके प्रत्याशी की तकदीर लिखने की बागडोर आ गयी है। चुनाव में जनता किसे पसंद करेगी और किसे नापसंद इसका फैसला आने में तो अभी समय है। लेकिन इसका फैसला करने को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में राजनीति गरमाने लगी है। चौपाल जो सूनी पड़ी हुई थी। उनकी रौनक लौट आयी है। शाम होते ही खेती किसानी के कार्य को समाप्त कर गांव की चौपालों और चबूतरों पर हक्कों की गुड़गुड़ाहट के बीच हर कश के साथ सियासत के रंग बिखरने लगते हैं। गांव के बुजुर्ग हो या जवान सभी सियासत की चर्चा में मशगूल हो जाते हैं। राजनीति का क्षेत्र हो या पार्टी का प्रत्याशी। क्षेत्र में विकास कार्य हुए या उपेक्षा। उस सरकारी में कितने घटे बिजली मिली। किसानों को कब खाद मिला कब नहीं। उस समय उस नेता ने यह काम किया यह नहीं किया। किस पार्टी ने क्या काम किया आदि मुद्दों को लेकर जिले से लेकर पूरे सूबे के हालात पर बारी-बारी से रात तक विचार मंथन का दौर चलने लगा है। चौपालों पर ग्रामीण चुनावी समर में कूदे प्रत्याशियों के वोटों के गुणा भाग में भी व्यस्त दिखायी पड़ रहे हैं। 70 साल के सूरजमल ने बताया कि गांव की चौपाल पर लगने वाली पंचायतें व उसके फैसलों का चुनाव में अहम रोल होता है।

म्यांमार एयरवेज की गया-यंगून विमान सेवा

म्यांमार एयरवेज इंटरनेशनल की यंगून-गया-यंगून के बीच सीधी उड़ान शनिवार से आरंभ हुयी। म्यांमार एयरवेज की पर्यटन मौसम की पहली उड़ान 8 एम- 601 से 157 यात्री गया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पर 10 बजकर 30 मिनट पर उतरे। एयरवेज के स्टेशन प्रबंधक दिलीप कुमार सिन्हा ने बताया कि म्यांमार एयरवेज की उक्त उड़ान हर शनिवार को गया उपरोक्त समयनुसार आयेगीऔर 11:30 बजे 8 एम- 602 उड़ान के तहत यंगून के लिए वापसी उड़ान भरेगी। ज्ञात हो कि इस बार के पर्यटन मौसम मेंगया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा से यंगून के लिए एयर इंडिया, म्यांमार एयरवेज और एयरबगान की उड़ानें सप्ताह में तीन दिन सुलभ है।

घर से खींच कर ले जा रही युवती को ग्रामीणों ने बचाया

गुरुआ थाना के परसांवा गांव से एक किशोरी को शादी की नीयत से जबरन खींच कर घर से ले जाने का विरोध करने पर लड़की की मां को शरारती लड़कों ने मारपीट किया। शनिवार को बांकेबाजार थाना क्षेत्र के लाला बिगहा से रंजन पासवान पिता रामस्वरूप पासवान के साथ अन्य छ: सहयोगियों के साथ परसांवा पहुंचा। राजकुमार पासवान (किशोरी के पिता) के घर गया। जहां दरवाजे पर फुआ से लड़की का नाम बताकर बात करने के लिए कहा। नाम, गांव पूछने पर फुआ को गाली-गलौज करते हुए घर में प्रवेश किया। मां और बेटी घर में दरवाजा बंद कर ली। शरारती लड़कों ने दरवाजा तोड़कर मां के साथ मारपीट कर घायल कर दिया और लड़की को खींच कर ले जा रहे थे। मां द्वारा शोरगुल किये जाने के बाद ग्रामीण को जुटते देख शरारती लड़के भाग निकले। बताया जाता है कि रंजन का उस गांव में रिश्तेदारी था। घायलावस्था में लड़की की मां जमतिया देवी गुरुआ थाने में आकर आपबीती सुनाई। पत्रकारों द्वारा डीएसपी से इसकी सूचना के बाद थानाध्यक्ष को फटकार लगी और फिर प्राथमिकी दर्ज हुआ

शेरशाह का शेरघाटी सियासत की सूर्खियों में

शेरशाह सूरी के नाम से चर्चित शेरघाटी को बरसों बाद अपने नाम का नया विधानसभा मिला है। कभी राजाओं का पड़ाव रहा शेरघाटी की ये नगरी इन दिनों राजनीतिक गलियारों में काफी चर्चा में है। आजादी से पहले (अंग्रेजों के जमाने) में शेरघाटी जिला मुख्यालय था। जिसका जिक्र इतिहास के पन्नों में अंकित है। बहरहाल हम बात कर रहे हैं लोकतंत्र के महावर्प की तो ये बताना जरूरी है कि शेरघाटी को देश की आजादी के महज चार वर्ष बाद 1951 में विधानसभा का दर्जा प्राप्त हुआ। 1951 में शेरघाटी, इमामगंज को मिलाकर शेरघाटी नया विधानसभा बनाया गया। 1951 के विधानसभा चुनाव में यहां से देवधारी एवं जगलाल महतो ने यहां का प्रतिनिधित्व किया। 1957 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर कैप्टन शाहजहां यहां के विधायक बने। 1962 के विधानसभा चुनाव में भी उन्हें ही जीत मिली। 1967 में इस सीट से एम.एम. खान चुनाव जीते। 1969 में इस सीट पर जय राम गिरि ने अपना कब्जा जमा लिया। 1972 के चुनाव में भी जयराम गिरि ही इस सीट से विजयी घोषित हुए। 1977 के चुनाव में शेरघाटी विधानसभा विलुप्त होकर बोधगया विधानसभा में जुट गया। 1977 से लेकर 2005 तक डोभी प्रखंड, शेरघाटी प्रखंड और बोधगया प्रखंड को मिलाकर बोधगया विधानसभा रहा। सन 1977 के विधानसभा चुनाव में राजेश कुमार यहां के विधयक चुने गये वो बोधगया विधानसभा के प्रथम विधायक बने। 1980 के विधानसभा चुनाव में बालिक राम (सीपीआई) की टिकट पर चुनाव जीता। 1985 में पुन: राजेश कुमार (जनता दल) की टिकट पर यहां से चुनाव जीते। 1990 में फिर बालिक राम ने यहां रिकार्ड जीत दर्ज किया। 1995 में निर्दलीय उम्मीदवार मालती देवी यहां की विधायक बनी। कुछ माह तक विधायक रहने के बाद राजद ने उन्हें नवादा से लोकसभा चुनाव का टिकट दिया और वो चुनाव जीत गयी। इस सीट पर हुए उप चुनाव में जीएस रामचंद्र दास ने अपना कब्जा जमा लिया। 2000 में इस विधानसभा से जीतन राम मांझी (राजद) के सिम्बल पर चुनाव जीते। 2005 के विधानसभा चुनाव में फूलचंद मांझी (राजद) की टिकट पर चुनाव जीत गये। 2005 में जब सरकार नहीं बन सकी तो उप चुनाव हुआ जिसमें भाजपा के हरि मांझी यहां से विधायक चुने गये। हरि मांझी विधायक रहते हुए वर्ष 2008 में गया संसदीय क्षेत्र से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा और वो चुनाव जीत गये। उनके सांसद बनने के बाद पुन: जब इस सीट पर उप चुनाव हुआ तो यहां से लोजपा प्रत्याशी के रूप में कुमार सर्वजीत चुनाव जीते। 1972 के बाद शेरघाटी पुन: 2010 में नया विधानसभा बना है, जिससे यहां काफी खुशी देखी जा रही है।

दूसरे चरण में नौ बजे तक 9 फीसदी वोटिंग

kumar manglam पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के तहत 45 सीटों पर रविवार सुबह सात बजे शुरू हुई मतदान की प्रक्रिया फिलहाल थोड़ी धीमी है, पर अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए मतदान केंद्रों पर लोगों की लंबी कतारें देखने को मिल रही है। सुबह नौ बजे तक नौ प्रतिशत मतदान हुआ है। राज्य के अतिरिक्त मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कुमार अंशुमाली ने बताया कि मतदान शांतिपूर्ण जारी है और सुबह नौ बजे तक नौ प्रतिशत मतदान की सूचना है। गौरतलब है कि दूसरे चरण में 45 विधानसभा सीटों के लिए मतदान हो रहा है। 46 महिलाओं सहित 623 उम्मीदवार चुनाव मैदान में है। नक्सलियों द्वार चुनाव बहिष्कार की घोषणा के मद्देनजर सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए गए हैं। गौरतलब है कि बिहार विधानसभा के लिए छह चरण में मतदान कराया जा रहा है। पहले चरण का मतदान 21 अक्टूबर को हो गया। रविवार को सात बजे कड़ी सुरक्षा के बीच मतदान आरंभ हो गया। दूसरे चरण में होने वाले चुनाव के अधिकांश इलाके मिथिलांचल और तिरहुत क्षेत्र के है। इस चरण के चुनाव में 10,315 मतदान केंद्रों पर 99,49,873 मतदाता 46 महिलाओं सहित कुल 623 प्रत्याशियों के भविष्य का फैसला करेंगे। सुरक्षा के दृष्टिकोण से पांच विधानसभा क्षेत्र पारू, मीनापुर, साहेबगंज, शिवहर और बेलसंड विधानसभा क्षेत्र में सुबह सात बजे से तीन बजे तक मतदान होगा जबकि अन्य 40 क्षेत्रों में पांच बजे तक मत डाले जाएंगे। दूसरे चरण में जिन 45 सीटों पर चुनाव हो रहे है वे पूर्वी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर जिला के अंतर्गत आते है। मतदान केंद्रों पर सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए गए है। उल्लेखनीय है कि प्रथम चरण के तहत गुरुवार को 47 सीटों पर मतदान कराया गया था जिसमें 54 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। राज्य के पुलिस महानिदेशक नीलमणि ने बताया कि शांतिपूर्ण एवं निष्पक्ष ढंग से मतदान संपन्न कराए जाने के लिए चाक-चौबंद और पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था की गई है। नीलमणि ने बताया कि नक्सल प्रभावित मतदान केंद्रों पर शत-प्रतिशत अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गई है। जिन छह जिलों में आज चुनाव जारी है उनमें से एक समस्तीपुर को छोड़कर बाकी अन्य जिले मुजफ्फरपुर, शिवहर, सीतामढ़ी, दरभंगा और पूर्वी चंपारण कमोबेश नक्सल प्रभावित हैं। शिवहर जिले में नक्सलियों ने बारूदी सुरंग विस्फोट कर छह पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी। नीलमणि ने बताया कि वहां के 96 प्रतिशत मतदान केंद्रों पर अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गई है। नीलमणि ने कहा कि चुनाव के दौरान गड़बड़ी और हिंसा फैलाने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा। बिहार के छह जिलों के जिन 45 विधानसभा क्षेत्रों में आज मतदान जारी है उनमें शिवहर जिला का एक विधानसभा क्षेत्र, सीतामढ़ी के 8, मुजफ्फरपुर के 11, पूर्वी चंपारण के 5 तथा दरभंगा एवं समस्तीपुर के दस-दस विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। नीलमणि ने कहा कि मतदान के दौरान हेलिकाप्टर से भी चुनाव प्रक्रिया पर निगरानी रखी जा रही है और माओवादी गतिविधियों पर पुलिस पैरलल फोन लाईन टै्रकिंग और गुगल अर्थ सिस्टम के जरिए नजर रख रही है तथा अब बिहार पुलिस को सेटेलाईट फोन भी उपलब्ध हो गया है। राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी सुधीर कुमार राकेश ने बताया कि 45 विधानसभा क्षेत्रों के 10,315 मतदान केंद्रों पर 11,351 ईवीएम नियंत्रण इकाई और 13674 बैलट इकाइयों की व्यवस्था की गई है तथा 44 हजार मतदानकर्मियों को मतदान कार्य में लगाया गया है। विकलांग मतदाताओं के लिए प्रत्येक मतदान केंद्रों पर रैंप की व्यवस्था की गई है तथा दृष्टिहीन मतदाताओं के लिए हर मतदान केंद्र पर डमी बैलट शीट का इंतजाम किया गया है।

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