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GAYA KA VISHNUPAD MANDIR
Sunday, October 24, 2010
हुक्के की गुड़गुड़ाहट के साथ बिखरे सियासत के रंग
जैसे-जैसे गया जिले में 2010 का विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहा है ग्रामीण इलाकों में चौपालों पर हुक्के की गुड़गुड़ाहट के रंग दिखाने के साथ ही सियासत भी गरमा गयी है। पांचवें चरण में जिले के पांच विधानसभा में नामांकन प्रकिया पूरा होने के बाद कौन-कौन से क्षेत्र से कितने प्रत्याशी और किस से किसकी है टक्कर की चर्चा चौपालों पर जोरो पकड़ने लगी है। जहां चार लोग मिल रहे हैं चौपाल लग जा रही है और देखते ही देखते चुनावी चर्चा में घंटों कब बीत जा रहा पता नहीं चल रहा है। यानि की ये कहें कि गांव की चौपालों पर फिर रौनक लौट आयी है। ग्रामीण क्षेत्रों के अलंबरदारों की चौपाल पर हुक्के के हर कश के साथ राजनीति, प्रत्याशी और क्षेत्र में हुए विकास कार्यो की चर्चा की ही चर्चा हो रही है। कौन किसके दु:ख-सुख में शरीक हुये सारी गणना चौपाल पर गिर-गिर कर हो रही है। सबसे ज्यादा नाराजगी उन लोगों से है जो कभी जितने के बाद उन लोगों से मिल तक नहीं हैं। लोगों का कहना है कि जीता कर भेजा था इस बार हम लोग ही उसे उतर भी देंगे। गांव के रास्तों पर वाहनों के काफिले का सिलसिला प्रारंभ हो गया है। विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही जनता के हाथ में एक बार फिर पार्टी और उसके प्रत्याशी की तकदीर लिखने की बागडोर आ गयी है। चुनाव में जनता किसे पसंद करेगी और किसे नापसंद इसका फैसला आने में तो अभी समय है। लेकिन इसका फैसला करने को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में राजनीति गरमाने लगी है। चौपाल जो सूनी पड़ी हुई थी। उनकी रौनक लौट आयी है। शाम होते ही खेती किसानी के कार्य को समाप्त कर गांव की चौपालों और चबूतरों पर हक्कों की गुड़गुड़ाहट के बीच हर कश के साथ सियासत के रंग बिखरने लगते हैं। गांव के बुजुर्ग हो या जवान सभी सियासत की चर्चा में मशगूल हो जाते हैं। राजनीति का क्षेत्र हो या पार्टी का प्रत्याशी। क्षेत्र में विकास कार्य हुए या उपेक्षा। उस सरकारी में कितने घटे बिजली मिली। किसानों को कब खाद मिला कब नहीं। उस समय उस नेता ने यह काम किया यह नहीं किया। किस पार्टी ने क्या काम किया आदि मुद्दों को लेकर जिले से लेकर पूरे सूबे के हालात पर बारी-बारी से रात तक विचार मंथन का दौर चलने लगा है। चौपालों पर ग्रामीण चुनावी समर में कूदे प्रत्याशियों के वोटों के गुणा भाग में भी व्यस्त दिखायी पड़ रहे हैं। 70 साल के सूरजमल ने बताया कि गांव की चौपाल पर लगने वाली पंचायतें व उसके फैसलों का चुनाव में अहम रोल होता है।
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