पटना : बिहार-झारखंड में भूदान की 43 फीसदी जमीन पर दबंगों का कब्जा है. अब तक यह भूदान कमेटी के कब्जे में नहीं आ सकी है, जिससे इसे लाभार्थियों के बीच नहीं बांटा जा सका है. यह जानकारी भूदान यज्ञ आंदोलन के प्रवर्तक आचार्य विनोबा भावे व जयप्रकाश नारायण के अनन्य सहयोगी रहे बाबूराव चंदावर ने रविवार को प्रभात खबर के साथ विशेष बातचीत में दी. भूमि समस्या एवं भूदान बेदखली निवारण की मांग को लेकर गांधी स्मारक निधि के सभागार में शनिवार की सुबह से अनशन पर बैठे चंदावर ने कहा कि जब तक सरकार से ठोस कार्रवाई का आश्वासन नहीं मिलता, तब तक उनका अनशन जारी रहेगा.भूदान की प्रक्रियाभूदान की जमीन लाभार्थियों (खेतिहर-मजदूरों) के बीच बांटी जानी चाहिए. जो लोग भूदान कमेटी को अपनी जमीन दान करते हैं, उसे राजस्व शाखा कन्फर्म करती है. राजस्व शाखा इसकी छानबीन कर भूदान कमेटी को प्रमाणपत्र देती है, फिर भूदान कमेटी इसे वितरित करती है और उन्हें प्रमाणपत्र प्रदान करती है. इसी प्रमाणपत्र के आधार पर यह जमीन उस लाभार्थी की हो जाती है और इस पर दूसरा कोई मालिकाना हक नहीं जता सकता.उचित कार्रवाई नहींभूदान यज्ञ कमेटी व राज्य सरकार इस दिशा में कोई उचित कार्रवाई नहीं कर पा रही है. जमीन पर दखल दिलाने के लिए वे पिछले पांच वषों से बिहार सवरेदय मंडल के माध्यम से अभियान चला रहे हैं. इसकी शुरुआत उन्होंने सुपौल, मधेपुरा व सहरसा से की थी. चंदावर ने इसके लिए लाभार्थियों से आगे आने की अपील की.प्रायश्चित कर रहे हैंश्री चंदावर ने कहा कि अनशन राज्य सरकार व सवरेदयी नेताओं-कार्यकर्ताओं की विफलता को लेकर एक प्रायश्चित है. दरअसल, भूदान से जुड़े लोग ही भूदान में प्राप्त भूमि को लूट रहे हैं. भूदान यज्ञ कमेटी व राज्य सरकार मूकदर्शक बनी हुई है. कमेटी का कार्य परचा देना व भूमिहीनों को उस पर दखल दिलाना है, लेकिन उस पर नौकरशाही का प्रभाव पड़ चुका है. राज्य सरकार उसे ग्रांट देकर अपना दायित्व भूल जाती है. बिहार सवरेदय मंडल ने इस मुद्दे को लेकर पटना हाइकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. कोर्ट ने भूमि बेदखली के निवारण के लिए कार्रवाई करने का आदेश दिया था. लेकिन, एक वर्ष से अधिक हो चुका है और राज्य सरकार इस दिशा में कोई कदम नहीं बढ़ा पायी है. जिन्हें विनोबा के परिश्रम से जमीन मिली, वह आज उनके पास नहीं है. भूदानी किसान हैं, उनके पास परचा है, प्रमाणपत्र है, लेकिन वे भूमि से बेदखल हैं.चूक हो रही हैऐसे किसानों के सिर्फ सुपौल में 15 हजार से अधिक आवेदन स्थानीय प्रशासन को प्राप्त हुए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. भूदानी किसानों को सरकार का संरक्षण मिलना चाहिए. भूमिहीनों को भूमि प्रदान करना कोई एहसान करना नहीं है, लेकिन हमारे कार्यकर्ता महसूस करते हैं कि यह एहसान है . उनसे कागजात प्राप्त करने से लेकर दखल दिलाने में सहयोग को लेकर पैसे की मांग की जाती है. वे चाहते हैं कि भूदानी भूमि दबा कर रखें, ताकि किसान दबाव में रहे. कहीं -न -कहीं हम सभी से चूक हो रही है, जिससे भूदानी किसान अपने अधिकार से वंचित हो रहे हैं.
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GAYA KA VISHNUPAD MANDIR
Thursday, July 1, 2010
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